Tuesday, October 11, 2016



A Football Match

Games and sports are an important part if life. Life would be dull without games. In fact, life itself is a game. I love to play games. Football is my favourite game. Last Sunday, my friend and I went to see a football match. It was played between out college team and the Government college team. It was played on our school ground. Both the teams were in uniforms. Both the teams were equally strong. The referee blew a long whistle. There was a toss. We won the toss. Both the teams took their sides. The match started. For some time, the game was slow. But soon it became very brisk. The ball was changing sides again and again. Our players moved as one man. They put up a good show. Then our captain got a chance. He kicked the ball so hard that it passed right through the goal posts. There were loud cheers from all sides. Our Players were mad with joy. Soon there was the interval. Both the teams were given light refreshment. Sides were changed after the interval. The referee blew the whistle and the match started again. The other team tried hard to equalise. But all their efforts were unsuccessful. The referee blew a long whistle. The match was over. Our team won the match by one goal. The students of our college were beside themselves with joy. The next day was declared a holiday. We came back home happily.




A One Day Cricket Match

Cricket has its own glories and wonders. It is really an interesting game. Nothing can be more exciting than a One-Day Cricket match between India and Pakistan. I was glued to the T.V. set right from the first half. I was disappointed and disgusted to find that the entire Indian team was bundled out for just 173 runs in 45.3 overs. The stadium was resounding with the shouts of ‘Pakistan zindabad.’ Pakistan’s green flag was in sight everywhere. India’s tricolour had simply vanished. Our fielders took the field. But the very first delivery by the opening bowler up-rooted Pakistani opener’s middle-stump. The Indian spectators work up. A few tri-colors popped up. But nothing happened for the next fifty runs until a young. Left arm spinner from South India, making a debut at Lahore, took over. This young boy brought about the collapse of Pakistan with two consecutive hat tricks. The stadium became  alive with slogans of ‘Hindustan Zindabaad’. The entire Pakistan team was out in just 35.2 overs for 172 runs. My father joined me in the patriotic dance of excitement in from of the T.V set. The young bowler who tore apart the Pakistani batting was declared ‘Man of the Match’. It was really an exciting and unforgettable match.


Sunday, October 09, 2016




जीवन में खेलों का महत्व 

खेलों का महत्व – खेल मनोरंजन और शक्ति के भंडार हैं | खेलों से खिलाड़ियों का शरीर स्वस्थ और मज़बूत बनता है | खेलों के द्वारा उनके शारीर में चुस्ती, स्फूर्ति, शक्ति आती है | पसीना निकलने से अन्दर के मल बाहर निकल जाते हैं | हड्डियाँ मज़बूत हो जाती हैं | शरीर हलका-फुलका बन जाता है | पाचन क्रिया तेज हो जाती है |

खेलों का दुस्ता लाभ यह है ये मन को रमाते हैं | खिलाड़ी खेल के मैदान में खेलते ही शेष दुनिया के तनावों को भुल जाते हैं | उनका ध्यान फुटबाल, गेंद या खेल में लीन रहता है | संसार के चक्करों को भूलने में उन्हें गहरा आनंद मिलता है |

खेल और चरित्र – खेलों की महिमा का वर्णन करते हुए स्वामी विवेकानंद खा करते थे – “मेरे नवयुवक मित्रो ! बलवान बनो | तुमको मेरी यही सलाह है | गीता के अभ्यास की अपेक्षा फुटबाल खलेने के दुवारा तुम स्वर्ग के अधिक निकट पहुँच जाओगे | तुम्हारी कलाई और भुजाएँ अधिक मज़बूत होने पर तुम गीता को अधिक अच्छी तरह समझ सकोगे |’’ स्पष्ट है कि खेलों से मनुष्य का चरित्र ऊँचा उठता है | स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन और स्वस्थ आत्मा निवास करती है | स्वस्थ व्यक्ति ही दुनिया से अन्याय, शोषण और अधर्म को हटा सकता है |
महापरुषों के जीवन पर दृष्टि डालें | जिन्होंने समाज में बड़े-बड़े परिवर्तन किए, वे स्वयं बलवान व्यक्ति थे | स्वामी विवेकानंद, दयानंद, रामतीर्थ, महाराणा प्रताप, शिवाजी, भगवान् कृषण, प्रुशोतम राम, युधिष्ठिर, अर्जुन सभी शक्तिशाली महापरुष थे | वे किसी-न-किसी प्रकार की शरीरक विद्या में अग्रणी थे | इसी कारण वे यशस्वी बन सके | बीमार व्यकित तो स्वयं ही अपने ऊपर बोझ होता है |

खेल-भावना का विकास – खेल-भावना का अर्थ है – हार-जीत में एक-समान रहना | इसी से आदमी दुश-सुख में एक-समान रहना शीखता है | यह खेल-भावना खेलों द्वारा सीखी जा सकती है | रोज़-रोज़ हारना और हर को सहजता से झेलना, रोज़-रोज़ जितना और जीत को सहजता से लेना-ये दोनों गुण की देन हैं | अतः खेल जीवन के लिए अनिवार्य है |





बीजिंग ओलंपिक में भारत

बीजिंग अलोंपिक का परिचय – 29वें अलोंपिक खेल चीन के बीजिंग नामक महानगर में आयोजित किय गए | इनका सुभारंभ 08-08-08 को रात के 8 बजकर 8 मिनट 8 सैकंड पर चीनी राष्ट्रपति हु जिंताओं ने किया | 90000 से अधिक दर्शकों की उपस्थिति में इसका भव्य उद्घाटन हुआ | इसमें अब तक के सबसे अधिक 205 देशों के सबसे अधिक 302 खेलों में 11000 (सर्वाधिक) खिलाडियों ने भाग लिया | चीन के 639 खिलाडियों का दल सबसे बड़ा था |

भारतीय दल के खिलाड़ी – भारतीय दल में 56 खिलाड़ी थे | उन्होंने कुल 12 प्रतियोगिताओं में भाग लिया | इनमें निशानेबाजी, कुश्ती तथा मुक्केबाजी के एक-एक खिलाड़ी सल्फल होकर लौटे | बैडमिंटन, टेनिस, टेबल टेनिस, एथलेटिक्स, रोइंग, तैराकी, तीरंदाजी के खिलाड़ी सल्फ्ना नहीं पा सके | भारत के खिलाडियों की कम संख्या होना चिंताजनक है | उनके पदकों की संख्या का होना भी उत्साहप्रद नहीं है | परंतु पहली बार तीन पदक प्राप्त करनी आशाजनक है | इससे पहले भारत ने तीन पदक कभी नहीं जीते थे | लगता है, यहाँ से भारतीय खिलाडियों की विकास-गाथा शुरू होगी |

स्वर्ण-पदक – भारत में एकमात्र स्वर्णपदक निशानेबाजी में आया है | इससे जितने का शेत्र पंजाब में चंडीगढ़ के 25 वर्षीय खिलाड़ी अभिनव बिंद्रा को जाता है | उन्होंने 10 मीटर एयर रायफल में स्वर्ण पदक जीतकर भारत का पहला एकल स्वर्णपदक विजेता होने का गौरव प्राप्त किया | उन्होंने 11 अगस्त, 2008 को चीन तथा फिनलैंड के निशानेबाजों को पछाड़ते हुए यह उपलब्धि प्राप्त की | उनकी विजय का समाचार सुनते ही भारत में ख़ुशी की लहर दौड़ गई | राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर सामान्य जनता ने उन्हें जोरदार बधाइयाँ दीं | भारत सरकार, पंजाब सरकार, हरियाणा, बिहार, उतराखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु सरकारों ने उन पर पुरस्कारों ने उन पर पुरस्कारों की वर्षा कर दी | उद्योगपति पक्ष्मी मितल ने उन्हें डेढ़ करोड़ का पुरस्कार प्रदान किया |

कांस्य पदक – इस बार कुश्ती में दिल्ली (नजफगढ़) के खिलाड़ी सुशील कुमार ने 66 किलोग्राम वर्ग में बेलारुम, अमेरिका तथा कजाख्स्तान के पहलवानों को हराकर भारत के लिए रजत पदक जीता | परिणामस्वरुप सीलन-भरे कमरे में दिन गुजारने वाला सुशील कुमार भी करोड़ों रुपयों का मालिक हो गया | दिल्ली, हरियाणा तथा अन्य सरकारों ने उस पर नोट-वर्षा की |

कांस्य पदक लाने वालों में एक अन्य महतवपूर्ण नाम है – हरियाणा (भिवानी) के मुक्केबाज विजेंदर सिंह का | मॉडलिंग के शौकीन विजेंदर ने 75 किलोग्राम वर्ग में क्यूबाई मुक्केबाज से संघर्ष करते हुए कांस्य पदक प्राप्त किया | उसे भी हरियाणा ने 50 लाख रूपये, इस्पात मंत्रालय ने 10 लाख रूपये, रेल तथा वायु-यात्रा की मुफ्त सुविधा के अतिरिक्त अन्य अनेक पुरस्कार दिए गए | इस बार की एक सफलता यह भी रही कि हॉकी के क्षेत्र में सतेंद्र सिंह को लगातार दूसरी बार अंपायर की भूमिका प्रदान की गई |

असफल खिलाड़ी – भारत के असफल खिलाडियों की सूचि बहुत लंबी है | आठ बार स्वर्ण पदक जितने वाली हॉकी टीम बीजिंग के लिए क्वालीफाई ही नहीं कर पाई | पिछली बार के रजत पदक विजेता राज्यवर्द्धन सिंह राठौर 15वें स्थान पर सिमट गए | लिएंडर पेस और महेश भूपति की ‘इंडियन एकस्प्रैस’ जोड़ी क्वाटर्र फाइनल से आगे नहीं बढ़ सकी | सानिया मिर्ज़ा, नेहा अग्रवाल, सुनीता राव, डोला बैनर्जी जैसे खिलाड़ी कुछ कर नहीं सके |

निष्कर्ष – कुल मिलाकर बीजिंग अलोंपिक का संदेश यही है कि भारतीय खेलों का सुर्यद्य हुआ है | पहला एकल स्वर्ण निराह्सा की काली घटा तोड़कर निकल आया है | पहली बार पदकों की संख्या तीन हुई है | यह संकेत है कि आने वाला कल भारतीय खेलों के लिए स्वर्णिम है |




ओलंपिक खेलों में भारत

भूमिका – पिछले हजार वर्षों का गुलाम भारत अगर हँस-खेल न पाया हो तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए | परतंत्र भारत में खेलों का विकास नहीं पाया | हमारे खिलाडियों को विश्वस्तरीय सुविधाएँ ही नहीं सामान्य सुविधाएँ भी नहीं मिल सकीं | आज़ादी के बाद भारत को गरीबी, जनसंख्या, निरक्षरता आदि बीमारयों ने एसा घेरा कि वह खेल-कूद की और पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाया | यही कारण है कि अरबों की आबादी होने के बावजूद भारत के खिलाड़ी विश्व-खेलों में धाक नहीं जमा पाए |

अलोंपिक में भारत का इतिहास – भारत ने अधिकारिक रूप से 1920 के अलोंपिक खेलों में पहली बार भाग लिया था | 1928 के अलोंपिक में हमने हॉकी में स्वर्ण पदक प्राप्त किया | उसके बाद 1932, 1936, 1948, 1952, 1956, 1964 और 1980 के अलोंपिक में हॉकी में वह दबदबा कायम रहा | एक ही खेल में आठ स्वर्णपदक पाकर एक प्रकार से हॉकी का नाम भारत के साथ जुड़ गया | भारत के कप्तान ध्यानसिंह को हॉकी का जादूगर कहा गया | 1980 के बाद एस खेल प्र काले बदल छाने लगे | 2008 के चीन अलोंपिक में तो भारतीय हॉकी टीम क्वालीफाई ही नहीं कर पाई | हॉकी के नाम पर कहने को यह गौरव हमारे पास रहा कि भारतीय अंपायर सतेन्द्र सिंह को लगतार दुरी बार अलोंपिक खेलों में अंपायर होने का अवसर मिला |

व्यक्तिगत पदक – व्यक्तिगत खेलों में पदक प्राप्त करने की कोई सुदीर्घ परंपरा भारत की झोली में नहीं है | सन 1952 में पहली बार के.डी. जाधव ने हेलसिंकी अलोंपिक में कुश्ती में कांस्य पदक प्राप्त किया था | उसके बाद हमारे पहलवान विजय के पायदान पर चढ़ने के लिए 56 साल लंबी प्रतीक्षा करते रहे | 2008 के बीजिंग अलोंपिक में डेल्ही के सुशिल कुमार ने फ्री-स्टाइल कुश्ती के 66 किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक प्राप्त किया | उन्होंने रेपचेज की सुभिदा का लाभ उठाते हुए बोलारुस, अमेरिका और कजाख्स्तान के पहलवानों को हराकर यह पदक भारत के नाम किया |

भारत को टेनिस का एकमत्र कांस्य पदक 1996 के अलोंपिक में प्राप्त हुआ था | भारोतोलन में भी भारत ने एकलौता कांस्य पदक प्राप्त किया है | यस पदक 2000 के अलोंपिक खेलों में हरियाणा के ही मुक्केबाज विजेंदर सिंह ने 75 किलोग्राम वर्ग में सेमी फाइनल में जगी बनाई तथा क्यूबाई मुक्केबाज से संघर्ष करते हुए रजत पदक प्राप्त किया |

निशानेबाजी का खेल पिछले दो अलोंपिक में भारत के लिए फलदायी सिद्ध हुआ है | 2004 के अलोंपिक में राजस्थान के राज्यवर्द्धन सिंह राठौर ने डबल ट्रैप निशानेबाजी में रजत पदक प्राप्त किया था | इस बार पंजाब के अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर एयर रायफल स्पर्धा में स्वर्णपदक प्राप्त करके भारत के लिए नया इतिहास रच दिया है | वे एकल स्पर्द्धामें पहला स्वर्णपदक जीतने वाले पहले और अकेले यशस्वी निशानेबाज खिलाड़ी हो गए हैं | उन्होंने निराशा में डूबे भारत के लिए आशा की किरण जगाई है | भारत भी विश्व-खेलों में पाँव जमा सकता है, इसका विश्वास उन्होंने जग दिया है | आशा है, भारत के उभरते हुए खिलाड़ी इस परंपरा को और अधिक बाढाएँगे |

निष्कर्ष – यह सच है कि भारत जैसे निशल देश के लिए दो-तीन पदक ऊँट के मुँह में जीरा भी नहीं है | इस बार 12 खेलों के लिए 56 खिलाड़ियों का एक दल बीजिंग अलोंपिक में गया था | उसमें से एक स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक हुआ है | यस परिणाम बहुत आशाजनक न होते हुए भी पिछले सालों की तुलना में प्रेरणादायी है |


Saturday, October 08, 2016




 To
The S.D.O. (Electricity),
P.S.E.B.
X Y Z City.

Subject : Complaint against frequent breakdown of electricity in Rainak Bazaar Area.
Sir,
I, on behalf of my locality, with to draw your kid attention towards frequent breakdown of electricity in Rainak Bazar Area. The low voltage and frequent tripping of electricity in this area has become almost a daily routine. During the three hour daily cut, no one expects the supply of electricity. But the unannounced frequent breakdown of electricity is simply nightmarish. At night, one is left half through the meals at the dining table. During the day, there is no rest, no comfort, no protection from the sultry weather.

Besides this, low voltage of electricity has damaged electric lamps, tubes and other electric appliances. Fans do not give proper air owing to low voltage. Many times complaints have been lodged with your office but no permanent solution to this menace has been found. It is a pity that even when there is supply of electricity in other localities, our locality remains dark. The wires through which electricity is supplied to our locality, are old and worn out, the transformer where from the electricity is supplied to us, is also an old one. There is always some defect in wires or in the transformer. In fact, all the wires as well as the transformer need to be replaced. Only then the proper supply of electricity can be restored to this locality.

I hope you would look into the matter at the earliest and redress our grievance.
Thanking you,

Yours faithfully,
Parvez.
Auguest 25, 20….







Malviya Nagar,
New Delhi.
August 4, 20….

To
The Postmaster General,
Delhi.
Sir,
About five weeks ago, I sent a money order for Rs.500/- to my younger brother Mr. Rajiv Malhotra, 36, Green Park, Kanpur. He is a student at Santa Maria Institute of Technology there. It is over a month now and my brother writes that he has not received the amount. I have enquired several times from the post office, but no proper answer was ever given to me.

It seems that the M.O. has been delivered to a wrong person or it has been sent to some wrong destination. The address was written legibly on the money order form. It is a pity that postal service in India is so disgusting. I request you to make proper inquiries and let me know the fate of the money order. The number of the M.O. receipt is 5723 dated 15th June and it carries the stamp of the New Delhi Post office.

I shall be grateful if you kindly look into the matter at your earliest.

Yours faithfully,
Sanddep Malhotra.




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