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Friday, October 21, 2016



मोबाइल फोन संपति और विपति की तरह ही सुखद और दुखद है 

मोबाइल फोन – एक सुविधा या संपति – मोबाइल फोन मनुष्य के हाथों में खेलने वाला चोबिसों घंटों का नौकर है |उसकी हैसियत इनती भर है कि वह मनुष्य की जेब में जाता है |  वहीँ से बैठा-बैठा वह बताता रहता है कि कोई आपका अपना आपसे बात करना चाहता है | अब आपकी इछ्चा है कि आप बात करें या न करें, या प्रतीक्षा के लिए कहें | वास्तव में मोबाइल के माध्यम से सारी दुनिया आपकी जेब में रहती है |

आज मोबाइल फोन बहुत सस्ता हो गया है | केवल कुछ रुपयों में देश-विदेश में बातें हो सकती हैं | संदेश भेजता तो लगभग मुफ्त है | कोई व्यक्ति एक-साथ सैंकड़ों लोगों को कुछ ही मिनटों में संदेश भेज सकता है, वह भी बहुत कम मूल्य पर | यह संदेश-माध्यम डाक-घर के पोस्टकार्ड से भी सस्ता और विश्वसनीय बन गया है | यहाँ तक कि ‘मिस्ड काल’ के माध्यम से बिना पैसा खर्च किए भी अनेक संदेश लिए-दिए जा सकते हैं |

संपर्क का सस्ता और सुलभ साधन – मोबाइल फोन संचार का माध्यम तो है ही, साथ ही वह घड़ी, टोर्च, संगणक, कैमरा, संस्मारक, रेडियो, खेल, मनोरंजन आदि की भी भूमिका निभाता है | वास्तव में वह अलादीन का चिराग है | मोबाइल फोन में शक्तिशाली कैमरा फिट हैं जिनके माध्यम से आप संवाद-सहित पुरे दृश्य कैमरे में कैद कर सकते हैं | अँधेरे में वह टोर्च का काम करता है तो सोते हुए अलार्म घड़ी का | वह आपको महतवपूर्ण पल याद कराने वाला स्मारक मित्र भी है और कलेंडर भी | गणता से लेकर टाइम-कीपिंग तक का काम मोबाइल फोने द्वारा ललिया जा सकता है |

विप्तियाँ – अनचाहा खल डालने का साधन – मोबाइल फोन के अभिशाप भी कम नहीं हैं | यह मनुष्य को चोबिसों घंटे व्यस्त रखता है | इसके कारण हमें अनचाहे लोगों से अनचाहे समय में बातें करनी पड़ती हैं | आप पूजा में बैठे हैं या गहन अध्ययन में मग्न हैं कि इसकी घंटी हमारा ध्यान भंग कर देती हैं | हम खीझ उठते हैं, किंतु कर कुछ नहीं सकते | यदि अपने मित्र-बंधू असमय में फोन करें तो भी बुरा नहीं लगता | बुरा तब लगता है जबकि दिनभर विज्ञापन-कंपनियों ने विज्ञापन या निवेश-कंपनियों के आफर आपको परेशान करते रहते हैं | गलत नंबर मिलना, अनावश्यक संदेशों का आना और उसे मिटाना भी अलग से एक काम है जिसके कारण जीवन का कुछ समय व्यर्थ में बर्बाद हो जाता है |

अपराधियों के लिए वरदान – मोबाइल फोन की विप्तियों का दर्द युवतियाँ और लडकियाँ अधिक झेलती हैं | उन्हें अनजान शरारती तत्वों की बेतुकी बातें से पिंड छुड़ाना बहुत भारी पड़ता है | आजकल मोबाइल फोन के कारण अपराधियों के गिरोह अपने कम को आसानी से अंजाम तक पहुँचाते हैं | अनेक बदमाश जेलों में बंद होते हुए भी मोबाइल के माध्यम से आतंक फैलाते हैं |

मोबाइल फोन इलेक्ट्रॉनिक किरणों से चलते हैं | इसलिए इसकी घातक किरणे ह्रदय तथा मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव डालती हैं | जो लोग मोबाइल का बहुत अधिक उपयोग करते हैं उनके मस्तिष्क की नसें उत्तेजित होकर अनके बीमारियों को जन्म देती हैं |

निष्कर्ष – मोबाइल फोन वरदान है | इसके अभिशापों को समझदारी से समाप्त किया जा सकता है | यदि मनुष्य इसके उपयोग को अपने अनुसार नियंत्रित कर ले तो इसके कारण होने वाली मुसीबतों से बहुत सीमा तक बचा जा सकता है |




कंप्यूटर और टी.वी. का प्रभाव

कंप्यूटर और टी.वी. का बढ़ता प्रचलन – कंप्यूटर और टी.वी. आधुनिक युग के सबसे बढ़े वरदान हैं | इन दोनों ने इतनी रोचक और उपयोगी दुनिया बसा ली है कि आदमी इन्हीं की दुनिया में खोया रहना चाहता है | उन्नति की धरा के साथ चलने वाला हर मनुष्य दैनिक इन दोनों की सेवाएँ अवश्य लेता है |

सकारात्मक प्रभाव – कंप्यूटर ने सांसारिक यात्रा को बहुत सरल और सुगम बना दिया है | कंप्यूटर से बैंक, तेल-सेवा, बिल-अदायगी जैसी सेवाएँ सरल, त्वरित और निर्देष हो गई हैं | अब बैंकों के ए.टी.एम. बिना भेदभाव के चोबिसों घंटे पैसे उपलब्ध करवाते हैं | कंप्यूटर और इंटरनेट के शेयर हम घर बैठे-बैठे अपने सभी बिल जमा करवा सकते हैं तथा यात्रा-टिकट ले सकते हैं | यहाँ तक कि खरीददारी भी ऑन लाइन हो गई है | इंटरनेट ने ज्ञान के विपुल भंडार मुफ्त उपलब्ध करा दिया हैं | कोई जिज्ञासु चाहे तो इंटरनेट के माध्यम से विश्व-भर की छोटी-से-छोटी जानकारी भी प्राप्त कर सकता है |दूरदर्शन भी ज्ञान का स्त्रोत है किंतु लोग इसे मनोरंजन के साधन के उप में स्वीकार करते हैं | उन्हें सुनकर मनुष्य की चेतना विकसित होती है |

नकारात्मक प्रभाव – कंप्यूटर और टी.वी. के नकारात्मक प्रभाव भी सामने हैं | ये दोनों साधन दर्शक को एक जगह पर बाँध कर बिठा देते हैं और उसकी चेतक को पूरी तरह केंद्रित कर लेते हैं | परिणामस्वरुप लोग दैनिक कई घंटे इनमें खर्च कर देते हैं | सच मायनों में दिन में 24 नहीं 20-21 घंटे रह गए हैं |एक कारण बच्चों के खेल खत्म हो गए हैं, रिश्ते-नाते कम हो गए हैं, समाजिक संबंद ढीले पड़ गए हैं | दूरदर्शन और कंप्यूटर से संलिप्त व्यक्ति अकेल्ली दुनिया की सुरंग में खोया हुआ अजनबी हो गया है जिसे सारी दुनिया को मुट्ठी में करके की ललक तो है किंतु किसी से बात करने की फुर्सत नहीं है | इस कारण लोगों की आँखों पर चश्मे चढ़ गए हैं, पेट में चर्बी चढ़ गई है | मोटापा, ह्रदयाघात, सुगर, तनाव जैसे बीमारियाँ बढ़ने लगी हैं | अशोक सुमित्र से नहीं कहा है –

कंप्यूटर और टी.वी. ने ऐसे छेड़ी तान |
पंछी पिंजरों में घुसे, भूल गए हैं उड़ान ||

इन दोनों साधनों का सबसे नकारात्मक प्रभाव है – अश्लीलता और अपसंस्कृति का प्रसार | बच्चे तड़क-भड़क वाले उतेजत कार्यक्रमों तथा नग्न दृश्यों में रूचि लेने लगे हैं | इस कारण समाज में छेड़छाड़, बलात्कार, चोरी, लुट आदि की आपराधिक घटनाएँ बढ़ने लगी हैं |

नकारात्मक प्रभाव से बचने के उपाय – नकारात्मक प्रभावों से बचने का सर्वोतम उपाय है-आत्म-संयम | आज अच्छे और बुरे-सब प्रकार के कार्यक्रम दूरदर्शन और इंटरनेट पर उपलब्ध हैं | ये आगे भी उपलब्ध रहेंगे | इनमें से अच्छे कार्यक्रम में रस लेना, उसका सीमित उपयोग करना उपभोक्ता पर निर्भर है और रहेगा | अश्लील कार्यक्रमों पर रोक लगाने में सरकार की, मीडिया की, जनमत की, सामजिक संघठनों की भी भूमिका हो सकती है | सरकार को चाहिए कि वह सेंसर का प्रभावी प्रयोग करके नकारात्मक प्रभावों को रोकने के लिए कदम उठाए |




टी.वी. वरदान या अभिशाप

विवाद का विषय – दूरदर्शन विद्यार्थी के लिए लाभदायक है या हानिकारक ; यह प्रशन विवाद का विषय है | दूरदर्शन के लाभ तथा हानियों को हम इस प्रकार समझ सकते हैं |

ज्ञान-वृद्धि – दूरदर्शन समूची मनुष्य-जाति के लिए वरदान है | दूरदर्शन में दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों में देश-विदेश की, जल-थल-नभ की, पहाड़ों और नदियों की, समुंद्र और रेगिस्तान की, नगर और ग्राम की, इतिहास और वर्तमान की कितनी ही झाँकियाँ दिखलाई जाति हैं | ये सब झाँकियाँ विद्यार्थी का ज्ञानवर्द्धन करती हैं | दूरदर्शन में जीती-जागती वास्तु हमारे सामने साकार रख दी जाती हैं | इसलिए उसका प्रभाव अधिक होता है |

पाठ्यक्रम-संबंदी कार्यक्रम – आजकल दूरदर्शन के माध्यम से छात्रों के पाठ्यक्रम संबंदी कार्यक्रम भी प्रसारित किए जाते हैं | दूरदर्शन के सहारे पाठ्यक्रम दूर-दराज के गाँवों तक भी पहुँच सकता है | इससे दूरस्थ शिक्षा के नए द्वार खुल गए हैं |

हानियाँ – व्यवहार में एक बात देखने में आती है कि दूरदर्शन छात्रों के लिए सहायक न बनकर बाधा के रूप में सामने आता है | अधिकतर छात्र दूरदर्शन के रोचक, सरस कार्यक्रमों में रूचि लेते हैं, जिनका संबंद पाठ्यक्रम या ज्ञान से ण होकर मनोरंजन से होता है | फिल्में, खेल, सीरियल आदि उनका मन मोहे रहते हैं | ऐसी स्थिति में वे पढ़ाई में रूचि नहीं ले पाते; या अधिक समय मनोरंजन में खर्च कर देते हैं | दुसरे, दूरदर्शन से चार्टों को छल, फरेब झूठ, बेईमानी के सरे तरीके पता चल जाते हैं | वे चालाकी, शरारत और उद्दंडता का पाठ सीखते हैं |

निष्कर्ष – दूरदर्शन के विरोध में दिए जाने वाले तर्क आधारहीन हैं | ये तर्क दूरदर्शन के विरोध में नहीं, उन कार्यक्रमों के विरोध में हैं जो छात्रों को आकर्षण के जाल में फँसाते हैं | इस बारे में यही कहा जा सकता है कि छात्रों को दूरदर्शन का सही उपयोग करना चाहिए | उन्हें पढ़ाई को ध्यान में राखते हुए स्वयं पर संयम रखना चाहिए | दूरदर्शन के गलत उपयोग को रोककर उसके लाभ लिए जा सकते हैं | किंतु उसे नकार देने से उसके सभी लाभ समाप्त हो जाएँगे |


Sunday, October 16, 2016



जीवन में कंप्यूटर का महत्व

कंप्यूटर युग – इक्कीसवीं सदी कंप्यूटर की सदी है | कंप्यूटर विज्ञान का अत्यधिक विकसित एवं बुद्धिमान यंत्र है | इसके पास ऐसा मशीनी मस्तिक है जो लाखों-करोड़ों गणनाएँ पलक झपकते ही कर देता है | जिन गणनाओं को करने के लिए मुनीम, लेखपाल और बड़े-बड़े अधिकारी दिन-रात परिशम करके भी गलतियाँ किया करते थे, उन्हें यह यंत्र निर्दोष रूप से तुरंत हल कर देता है |

रेल-सेवाओं में आसामी – आप रेलवे बुकिंग-केंद्र पर जाएँ | पहले मीलों लंबी लाइनों में प्रतीक्षा करनी पड़ती थी | अब कंप्यूटर की कृपा से आप देश कीकिसी भी कोम्पुटरीकृत खिड़की से कहीं से कहीं की टिकट बुक करा सकते हैं | पूरा देश कंप्यूटर द्वारा जुड़ गया है |

मुद्रण में क्रांति – मुद्रण क्षेत्र में आएँ | एक बटन दबाते ही सारे अक्षरों को मोटा, पतला, टेढ़ा या मनचाहा बना सकते हैं | मुद्रण इतना कलात्मक, साफ-सुथरा और वैविध्य-भरा हो गया है कि पुरानी मशीनों अब बाबा आदम के जमाने की लगती हैं |

संचार-क्रांति में सहायक – संचार-क्षेत्र में कंप्यूटर ने क्रांति उपस्थित कर दी है | टेलीफोन, फैक्स, पोज़िग, मोबाइल के बाद इंटरनेट ने मनो सारा संसार अपने ड्राईंग रूम में कैद कर दिया है | इंटरनेट पर आप विश्व की कोई भी जानकारी घर बैठे-बैठे ले सकते हैं | विश्व के किसी कोने की पुस्तक या समाचार-पत्र पढ़ सकते हैं | कोई लिखित सामग्री हाथों-हाथ दूरस्थ संबंदी को भेज सकते हैं |

रक्षा-उपकरणों में उपयोगिता – रक्षा के उन्नत उपकरणों में, हवाई-यात्राओं में कंप्यूटर-प्रणाली अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई है | भारत ने परमाणु-विस्फोट अत्यंत उन्नत कंप्यूटर प्रणाली से किया | कंप्यूटर की सहायता से ही हज़ारों किलोमीटर दूर ठिक निशाने पर वार करने की बिधियाँ विकसित हुई हैं |

स्वास्थ्य-सेवा में सहयोग – स्वास्थ्य के क्षेत्र में कंप्यूटर ने अदभुत सेवाएँ प्रदान की हैं | बीमारी की जाँच करने, संपूर्ण स्वास्थ्य परीक्षण करने, ह्रदय-गति मापने आदि में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका है | आज ज्योतिषी भी कंप्यूटरीकृत जन्म-पत्रियाँ बनाने लगे हैं | इस प्रकार दैनिक जीवन में कंप्यूटर का उपयोग बढ़ गया है |




दैनिक जीवन में विज्ञान

जन-जीवन में क्रांति – विज्ञान के विकास से जन-जीवन में क्रांति आ गई है | विज्ञान ने बड़े-बड़े उद्योगों को जन्म दिया है | यातायात, संचार और श्रम के क्षेत्र में अभूतपूर्व सुविधाएँ प्रदान की हैं | वैज्ञानिक साधनों के कारण आज पूरा विश्व कुटुंब की भांति बन गया है | विश्व की कोई भी घटना मिनटों-सैकड़ों में विश्वभर में फैल जाती है | दूरदर्शन, रेडियो, दूरभाष, इंटरनेट और उपग्रह-संचार से सारा विश्व मानो जुड़ गया है |

वैज्ञानिक उत्पादन में वृद्धि – आज से कुछ वर्ष पहले बिजली का अविष्कार नहीं हुआ था | तब न स्वचालित मशीनें थी, न रातें प्रकाशमान थीं | नगर और ग्राम संध्या होते ही अँधेरे से घिर जाते थे | आज हमारी रातें रोशन हैं | दिन में ही नहीं, रात में भी रोशनियाँ जगमगाती हैं | कारखाने दिन-रात उत्पाद उगलते हैं | मनुष्य की क्षमता कितनी बढ़ गई है !

स्वास्थ्य और चिकित्सा से सुधर – विज्ञान के कारण हमने अनेक बीमारियों पर विजय पा ली है | मृत्यु-दर को काफी मात्रा में नियंत्रण पा लिया है | जीवन का स्तर सुधार लिया है | बाढ़, सूखा, महामारी जैसी प्राक्रतिक विपदाओं पर भी काफी मात्रा में नियंत्रण पा लिया है  | पोलियो, मलेरिया, चेचक जैसी अनेक बीमारियों के विरूद्ध अभियान छेड़कर जनजीवन को सुरक्षित बनाने के प्रयास जारी हैं |

तार्किक चिंतन का विकास – विज्ञान व्यक्ति के चिंतन पर भी प्रभाव डालता है | वह तथ्यों को महत्व देता है | इसका लाभ यह है कि मनुष्य अपनी रुढियों के जंजाल से मुक्त होता है | उसकी कपोल-कल्पनाएँ नष्ट होती हैं | जिन भ्रामक धारणाओं के कारण उसका जीवन नष्ट होता था, उसने उसे मुक्ति मिलती है |

विज्ञान सत्य की खोज का सबसे सशक्त साधन है | एक उदाहरण पर्याप्त है | क्रिकेट के मैच में लैग-अंपायर संदिग्ध कैच और रन-आउट के सूक्ष्म अंतर को पकड़ने में गलतियाँ कर जाता था | अतः उसकी छोटी- सी गलती किसी भी टीम या खिलाड़ी का मनोबल तोड़ देती थी | परंतु आज मशीन की सहायता से यह गलती टल जाती है | इस प्रकार विज्ञान अनेक रोगों की सही पहचान कराके हमें अनेक बीमारयों से बचा लेता है | सचमुच विज्ञान वरदान है |




विज्ञान : वरदान या अभिशाप

विज्ञान एक वरदान – अर्केडियन फरार लिखते हैं- “विज्ञान ने अंधों को आँखों दी हैं और बहरों को सुनने की शक्ति | उसने जीवन को दीर्घ बना दिया है, भय को कम कर दिया है | उसने पागलपन को वश में कर लिया है और रोग को रौंद डाला है |” यह उक्ति सत्य है | विज्ञान की सहायता से असाध्य रोगों के इलाज ढूंढ लिए गए हैं | कई बिमारियों को समूल नष्ट कर दिया गया है |

रसोई-घर से लेकर मुर्दाघर तक सब जगह विज्ञान ने वरदान ही वरदान बाँटे हैं | विज्ञान की सयाहता से पूरी दुनिया एक परिवार बन गई है | जब चाहे, तब मनुष्य अपने प्रियजनों से बात कर सकता है | घंटे भर में दुनिया का चक्कर लगा सकता है | सैकेंडों में दुनिया-भर को कोई संदेश दिया जा सकता है |

विज्ञान ने दूरदर्शन, रेडियो, विडियो, ऑडियो, चलचित्र आदि के द्वारा मनुष्य के नीरस जीवन को सरस बना दिया है | चोबिसों घंटे चलने वाले कार्यक्रम, नए-नए सुंदर सुस्वादु  व्यंजन, सुखदायक रंगीन वस्त्र, सौंदर्य-वर्द्धक साधन विज्ञान की ही देन हैं |

विज्ञान : एक अभिशाप – विज्ञान का सबसे बड़ा कहता है – पर्यावरण प्रदूषण | इसके कारण आज शहरों में साँस लेना दूभर हो गया है | हर जगह शोर, गंदगी और बिमारियों का साम्राज्य-सा फैल गया है | कृत्रिम खादों, दवाइयां के कारण भूमि से उत्पन्न अन्न-फल तक दूषित हो गए हैं |

विज्ञान की सहायता से मनुष्य ने खतरनाक बम बना लिए हैं | इससे अनेक बार विषैली गैसों तथा रेडियोधर्मी किरने विकीर्ण हो चुकी हैं | भोपाल गैस कांड और ओजोन गैस की परत का फटना इसके ज्वलंत उदाहरन हैं | यातायात की तेज गति के कारण भी मौतें होने लगी हैं | लोगों के शरीर पंगु होने लगे हैं | ये सब जीवन पर अभिशाप हैं |

अमानवीयता – आज का वैज्ञानिक मानव स्वार्थी, छली, चालाक, कृत्रिम और विलासी हो गिया है | दया, मानवता, श्रद्धा, आदर, कोमलता जैसे मानवीय गुणों से उसका नाता टूट गया है | ये बातें मनुष्य के लिए अशुभ हैं | विज्ञान ने मनुष्य को बेरोज़गार बना दिया है | सैंकड़ो आदमियों का कम करने वाली मशीनों ने कारीगरों के हाथ बेकार कर दिए हैं |

निष्कर्ष – सच बात यह है कि विज्ञान के सदुपयोग या दुरुपयोग को ही वरदान या अभिशाप कहते हैं | विज्ञान का संतुलित उपयोग जीवनदायी है | उसका अंधाधुंद दुरुपयोग विनाशकारी है |




किसी खेल (मैच) का आँखों देखा वर्णन

भारत-इंग्लैंड एकदिवसीय क्रिकेट-श्रंखला का पाँचवाँ मैच – 2 सितंबर, 2007 को भारत-इंग्लैंड एकदिवसीय क्रिकेट-श्रंखला का पाँचवाँ मैच होना था | इससे पहले भारत टेस्ट क्रिकेट-श्रंखला जीत चूका था | बदले में इंग्लैंड ने 3-1 से एकदिवसीय श्रंखला में बढ़त ले ली थी | भारत पर ‘करो या मरो’ का संकल्प सवार था |

भारत की शुरुआत-बैटिंग पारी – टॉस इंग्लैंड ने जीता | भारत को बल्लेबाजी के लिए उतरा गया | विश्व की सबसे प्रसिद्ध सलामी जोड़ी-यानि सचिन और सौरव बल्लेबाजी के लिए उतरे | भारत के दो-दो यशस्वी भूतपूर्व कप्तान संग-संग जूझ रहे थे | सचिन ने एक-एक करके इंग्लैंड के सभी गेंदबाजों जो धुन डाला | उन्होंने प्रसिद्ध गेंदबाज लेविस के छठे ओवर में चार चौके जड़ दिए | उधर गांगुली भी फार्म में आ गए | उन्होंने मिड आन के ऊपर से चक्का मारा तो कप्तान कोलिनबुड खुद गेंदबाजी करने लगे | सलामी जोड़ी ने 116 रन बना डाले | यह उनकी विश्व-रिकार्ड बनाने वाली 19वीं शतकीय पारी थी | कोलिनबुड की गेंद पर सचिन लपके गए | उधर पनेसर की गेंद पर छक्का मारने के प्रयास में सौरव भी लपके गए | उसके बाद युवराज सिंह ने छक्के-चौकों की आतिशी बल्लेबाजी से 72 रन बनाकर सबको मंत्रमुग्ध कर लिया | भारत पर रन बनाने का भुत इतना सवार था कि कप्तान  राहुल रन आउट हो गए | एक खाली गेंद पर ही खिलाडियों ने भागकर दो रन बना लिया | अंतिम गेंद पर भी चौका जड़ा गया |

इंग्लैंड की पारी – इससे पहले कि इंग्लैंड की पारी शुरू होती, बारिश शुरू हो गई | बारिश रुकी तो इंग्लैंड को 45 ओवेरों में 311 रन बनाने का लक्ष्य दिया गया | इंग्लैंड के बल्लेबाज शुरू से ही आक्रामक खेल खेले | उन्होंने साढ़े छ: रन प्रति ओवर की गति बनाकर राखी कि ज़हीर खान के एक ओवर में सचिन ने हाथ में आई कैच छोड़ दी | भारत को झटका लगा | परंतु सात रन पर उनके सलामी बल्लेबाज कुक को विकेटकीपर धोने ने कैच-आउट कर दिया | उसके बाद आए बेल ने शानदार पारी खेली | दुर्भाग्य से सौरव गांगुली और अजित अगरकर ने हाथ में आए दो कैच और छोड़कर गेंदबाजों को और निराश कर दिया | यहाँ तक कि खीझ में आकर ज़हीर खान ने गेंद को पैर की ठोकर मारकर एक अतिरिक्त रन दे दिया |

अगले ही क्षण धोनी ने बेल को खूबसूरती से स्टंप आउट कर दिया | अगले ही ओवर में धोनी ने विकेट के पीछे एक और कैच लपका | तीन विकेट गिरते ही भारत का उत्साह बढ़ गया | वह दिन मानो धोनी के नाम था | उसने तीन और कैच लपके | इस प्रकार उसने एक ही मैच में 6 विकेट लेकर विश्व-रिकार्ड की बराबरी कर ली | इधर इंग्लैंड के कप्तान कोलिनबुड उन्मादी क्रिकेट खेलकर भारत के गेंदबाजों की धज्जियाँ उड़ा रहे थे | उन्होंने सभी दिशाओं में हवाई छक्के लगाए | 91 रनों की बेहतरीन पारी खेलते हुए वे बावड ही थे कि फिर से बारिश शुरू हो गई | अभी 39 ओवर हुए थे और इंग्लैंड ने 8 विकेट  पर 242 रन बना लिए थे | निश्चित रूप से यह मैच भारत की झोली में था | निर्णायकों ने डकवर्थ लुईस नियम के अनुसार भारत को बिजयी घोषित कर दिया | इस प्रकार आगामी दो मैचों का संघर्ष और भी रोचक हो गया | भारत ने श्रंखला जीतनी है तो उसे अपने दोनों मैच जीतने होंगे |

स्मरणीय बातें – इस मैच में सचिन-सौरव की सलामी बल्लेबाजी और छोड़ी हुई कैचें और एक युवराज और कोलिनबुड के रोमांचक छक्के याद रहेंगे | सबसे ज्यादा यद् रहेंगी धोनी की 5 शानदार कैचों और एक स्टंप | सौरव ने गेंदबाजी और बल्लेबाजी दोनों में सुंदर प्रद्शन किया | इसलिए उन्हें मैन ऑफ़ द मैच घोषित क्या गया |


Sunday, October 09, 2016




जीवन में खेलों का महत्व 

खेलों का महत्व – खेल मनोरंजन और शक्ति के भंडार हैं | खेलों से खिलाड़ियों का शरीर स्वस्थ और मज़बूत बनता है | खेलों के द्वारा उनके शारीर में चुस्ती, स्फूर्ति, शक्ति आती है | पसीना निकलने से अन्दर के मल बाहर निकल जाते हैं | हड्डियाँ मज़बूत हो जाती हैं | शरीर हलका-फुलका बन जाता है | पाचन क्रिया तेज हो जाती है |

खेलों का दुस्ता लाभ यह है ये मन को रमाते हैं | खिलाड़ी खेल के मैदान में खेलते ही शेष दुनिया के तनावों को भुल जाते हैं | उनका ध्यान फुटबाल, गेंद या खेल में लीन रहता है | संसार के चक्करों को भूलने में उन्हें गहरा आनंद मिलता है |

खेल और चरित्र – खेलों की महिमा का वर्णन करते हुए स्वामी विवेकानंद खा करते थे – “मेरे नवयुवक मित्रो ! बलवान बनो | तुमको मेरी यही सलाह है | गीता के अभ्यास की अपेक्षा फुटबाल खलेने के दुवारा तुम स्वर्ग के अधिक निकट पहुँच जाओगे | तुम्हारी कलाई और भुजाएँ अधिक मज़बूत होने पर तुम गीता को अधिक अच्छी तरह समझ सकोगे |’’ स्पष्ट है कि खेलों से मनुष्य का चरित्र ऊँचा उठता है | स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन और स्वस्थ आत्मा निवास करती है | स्वस्थ व्यक्ति ही दुनिया से अन्याय, शोषण और अधर्म को हटा सकता है |
महापरुषों के जीवन पर दृष्टि डालें | जिन्होंने समाज में बड़े-बड़े परिवर्तन किए, वे स्वयं बलवान व्यक्ति थे | स्वामी विवेकानंद, दयानंद, रामतीर्थ, महाराणा प्रताप, शिवाजी, भगवान् कृषण, प्रुशोतम राम, युधिष्ठिर, अर्जुन सभी शक्तिशाली महापरुष थे | वे किसी-न-किसी प्रकार की शरीरक विद्या में अग्रणी थे | इसी कारण वे यशस्वी बन सके | बीमार व्यकित तो स्वयं ही अपने ऊपर बोझ होता है |

खेल-भावना का विकास – खेल-भावना का अर्थ है – हार-जीत में एक-समान रहना | इसी से आदमी दुश-सुख में एक-समान रहना शीखता है | यह खेल-भावना खेलों द्वारा सीखी जा सकती है | रोज़-रोज़ हारना और हर को सहजता से झेलना, रोज़-रोज़ जितना और जीत को सहजता से लेना-ये दोनों गुण की देन हैं | अतः खेल जीवन के लिए अनिवार्य है |





बीजिंग ओलंपिक में भारत

बीजिंग अलोंपिक का परिचय – 29वें अलोंपिक खेल चीन के बीजिंग नामक महानगर में आयोजित किय गए | इनका सुभारंभ 08-08-08 को रात के 8 बजकर 8 मिनट 8 सैकंड पर चीनी राष्ट्रपति हु जिंताओं ने किया | 90000 से अधिक दर्शकों की उपस्थिति में इसका भव्य उद्घाटन हुआ | इसमें अब तक के सबसे अधिक 205 देशों के सबसे अधिक 302 खेलों में 11000 (सर्वाधिक) खिलाडियों ने भाग लिया | चीन के 639 खिलाडियों का दल सबसे बड़ा था |

भारतीय दल के खिलाड़ी – भारतीय दल में 56 खिलाड़ी थे | उन्होंने कुल 12 प्रतियोगिताओं में भाग लिया | इनमें निशानेबाजी, कुश्ती तथा मुक्केबाजी के एक-एक खिलाड़ी सल्फल होकर लौटे | बैडमिंटन, टेनिस, टेबल टेनिस, एथलेटिक्स, रोइंग, तैराकी, तीरंदाजी के खिलाड़ी सल्फ्ना नहीं पा सके | भारत के खिलाडियों की कम संख्या होना चिंताजनक है | उनके पदकों की संख्या का होना भी उत्साहप्रद नहीं है | परंतु पहली बार तीन पदक प्राप्त करनी आशाजनक है | इससे पहले भारत ने तीन पदक कभी नहीं जीते थे | लगता है, यहाँ से भारतीय खिलाडियों की विकास-गाथा शुरू होगी |

स्वर्ण-पदक – भारत में एकमात्र स्वर्णपदक निशानेबाजी में आया है | इससे जितने का शेत्र पंजाब में चंडीगढ़ के 25 वर्षीय खिलाड़ी अभिनव बिंद्रा को जाता है | उन्होंने 10 मीटर एयर रायफल में स्वर्ण पदक जीतकर भारत का पहला एकल स्वर्णपदक विजेता होने का गौरव प्राप्त किया | उन्होंने 11 अगस्त, 2008 को चीन तथा फिनलैंड के निशानेबाजों को पछाड़ते हुए यह उपलब्धि प्राप्त की | उनकी विजय का समाचार सुनते ही भारत में ख़ुशी की लहर दौड़ गई | राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर सामान्य जनता ने उन्हें जोरदार बधाइयाँ दीं | भारत सरकार, पंजाब सरकार, हरियाणा, बिहार, उतराखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु सरकारों ने उन पर पुरस्कारों ने उन पर पुरस्कारों की वर्षा कर दी | उद्योगपति पक्ष्मी मितल ने उन्हें डेढ़ करोड़ का पुरस्कार प्रदान किया |

कांस्य पदक – इस बार कुश्ती में दिल्ली (नजफगढ़) के खिलाड़ी सुशील कुमार ने 66 किलोग्राम वर्ग में बेलारुम, अमेरिका तथा कजाख्स्तान के पहलवानों को हराकर भारत के लिए रजत पदक जीता | परिणामस्वरुप सीलन-भरे कमरे में दिन गुजारने वाला सुशील कुमार भी करोड़ों रुपयों का मालिक हो गया | दिल्ली, हरियाणा तथा अन्य सरकारों ने उस पर नोट-वर्षा की |

कांस्य पदक लाने वालों में एक अन्य महतवपूर्ण नाम है – हरियाणा (भिवानी) के मुक्केबाज विजेंदर सिंह का | मॉडलिंग के शौकीन विजेंदर ने 75 किलोग्राम वर्ग में क्यूबाई मुक्केबाज से संघर्ष करते हुए कांस्य पदक प्राप्त किया | उसे भी हरियाणा ने 50 लाख रूपये, इस्पात मंत्रालय ने 10 लाख रूपये, रेल तथा वायु-यात्रा की मुफ्त सुविधा के अतिरिक्त अन्य अनेक पुरस्कार दिए गए | इस बार की एक सफलता यह भी रही कि हॉकी के क्षेत्र में सतेंद्र सिंह को लगातार दूसरी बार अंपायर की भूमिका प्रदान की गई |

असफल खिलाड़ी – भारत के असफल खिलाडियों की सूचि बहुत लंबी है | आठ बार स्वर्ण पदक जितने वाली हॉकी टीम बीजिंग के लिए क्वालीफाई ही नहीं कर पाई | पिछली बार के रजत पदक विजेता राज्यवर्द्धन सिंह राठौर 15वें स्थान पर सिमट गए | लिएंडर पेस और महेश भूपति की ‘इंडियन एकस्प्रैस’ जोड़ी क्वाटर्र फाइनल से आगे नहीं बढ़ सकी | सानिया मिर्ज़ा, नेहा अग्रवाल, सुनीता राव, डोला बैनर्जी जैसे खिलाड़ी कुछ कर नहीं सके |

निष्कर्ष – कुल मिलाकर बीजिंग अलोंपिक का संदेश यही है कि भारतीय खेलों का सुर्यद्य हुआ है | पहला एकल स्वर्ण निराह्सा की काली घटा तोड़कर निकल आया है | पहली बार पदकों की संख्या तीन हुई है | यह संकेत है कि आने वाला कल भारतीय खेलों के लिए स्वर्णिम है |




ओलंपिक खेलों में भारत

भूमिका – पिछले हजार वर्षों का गुलाम भारत अगर हँस-खेल न पाया हो तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए | परतंत्र भारत में खेलों का विकास नहीं पाया | हमारे खिलाडियों को विश्वस्तरीय सुविधाएँ ही नहीं सामान्य सुविधाएँ भी नहीं मिल सकीं | आज़ादी के बाद भारत को गरीबी, जनसंख्या, निरक्षरता आदि बीमारयों ने एसा घेरा कि वह खेल-कूद की और पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाया | यही कारण है कि अरबों की आबादी होने के बावजूद भारत के खिलाड़ी विश्व-खेलों में धाक नहीं जमा पाए |

अलोंपिक में भारत का इतिहास – भारत ने अधिकारिक रूप से 1920 के अलोंपिक खेलों में पहली बार भाग लिया था | 1928 के अलोंपिक में हमने हॉकी में स्वर्ण पदक प्राप्त किया | उसके बाद 1932, 1936, 1948, 1952, 1956, 1964 और 1980 के अलोंपिक में हॉकी में वह दबदबा कायम रहा | एक ही खेल में आठ स्वर्णपदक पाकर एक प्रकार से हॉकी का नाम भारत के साथ जुड़ गया | भारत के कप्तान ध्यानसिंह को हॉकी का जादूगर कहा गया | 1980 के बाद एस खेल प्र काले बदल छाने लगे | 2008 के चीन अलोंपिक में तो भारतीय हॉकी टीम क्वालीफाई ही नहीं कर पाई | हॉकी के नाम पर कहने को यह गौरव हमारे पास रहा कि भारतीय अंपायर सतेन्द्र सिंह को लगतार दुरी बार अलोंपिक खेलों में अंपायर होने का अवसर मिला |

व्यक्तिगत पदक – व्यक्तिगत खेलों में पदक प्राप्त करने की कोई सुदीर्घ परंपरा भारत की झोली में नहीं है | सन 1952 में पहली बार के.डी. जाधव ने हेलसिंकी अलोंपिक में कुश्ती में कांस्य पदक प्राप्त किया था | उसके बाद हमारे पहलवान विजय के पायदान पर चढ़ने के लिए 56 साल लंबी प्रतीक्षा करते रहे | 2008 के बीजिंग अलोंपिक में डेल्ही के सुशिल कुमार ने फ्री-स्टाइल कुश्ती के 66 किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक प्राप्त किया | उन्होंने रेपचेज की सुभिदा का लाभ उठाते हुए बोलारुस, अमेरिका और कजाख्स्तान के पहलवानों को हराकर यह पदक भारत के नाम किया |

भारत को टेनिस का एकमत्र कांस्य पदक 1996 के अलोंपिक में प्राप्त हुआ था | भारोतोलन में भी भारत ने एकलौता कांस्य पदक प्राप्त किया है | यस पदक 2000 के अलोंपिक खेलों में हरियाणा के ही मुक्केबाज विजेंदर सिंह ने 75 किलोग्राम वर्ग में सेमी फाइनल में जगी बनाई तथा क्यूबाई मुक्केबाज से संघर्ष करते हुए रजत पदक प्राप्त किया |

निशानेबाजी का खेल पिछले दो अलोंपिक में भारत के लिए फलदायी सिद्ध हुआ है | 2004 के अलोंपिक में राजस्थान के राज्यवर्द्धन सिंह राठौर ने डबल ट्रैप निशानेबाजी में रजत पदक प्राप्त किया था | इस बार पंजाब के अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर एयर रायफल स्पर्धा में स्वर्णपदक प्राप्त करके भारत के लिए नया इतिहास रच दिया है | वे एकल स्पर्द्धामें पहला स्वर्णपदक जीतने वाले पहले और अकेले यशस्वी निशानेबाज खिलाड़ी हो गए हैं | उन्होंने निराशा में डूबे भारत के लिए आशा की किरण जगाई है | भारत भी विश्व-खेलों में पाँव जमा सकता है, इसका विश्वास उन्होंने जग दिया है | आशा है, भारत के उभरते हुए खिलाड़ी इस परंपरा को और अधिक बाढाएँगे |

निष्कर्ष – यह सच है कि भारत जैसे निशल देश के लिए दो-तीन पदक ऊँट के मुँह में जीरा भी नहीं है | इस बार 12 खेलों के लिए 56 खिलाड़ियों का एक दल बीजिंग अलोंपिक में गया था | उसमें से एक स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक हुआ है | यस परिणाम बहुत आशाजनक न होते हुए भी पिछले सालों की तुलना में प्रेरणादायी है |


Wednesday, October 05, 2016




भारतीय खेलों का वर्तमान और भविष्य 

खेल-विमुखता क्यों – जिस देश में बच्चे को खेलता देशकर माता-पिता के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच जाती हों, अध्यापक छात्रों से बचाने का प्रयास करते हों, खिलाडियों को प्रोत्साहन देने की बजाय ताने सुनने को मिलते हों, उस देश का वर्तमान और भविष्य रामभरोसे ही हो सकता है | भारत में भी खेलों का वर्तमान तथा भविष्य रामभरोसे है | आज देश में दिन-प्रतिदिन न्य इंजीनियरिंग कॉलेज, आई.आई.टी., प्रबंधन संस्थान, मेडिकल कॉलेज, मीडिया सेंटर, काल सेंटर आदि खुल रहे हैं | परंतु खेल-सुविधाएँ निरंतर कम हो रही हैं | खेल-संस्थानों में भी परंपरागत सिक्षा को महत्त्व मिलता जा रहा है |

खेलों को प्रोत्साहन कैसे मिले – भारत में खेलों को प्रोत्साहन तभी मिल सकेगा, जबकि भारत सरकार अपनी सिक्षा-निति और खेल निति में परिवर्तन करेगी | आज भूखे बेरोजगार भरक को पेट भरने के लिए आजीविका के साधन चाहिए | इसलिए स्कूल से लेकर घर तक सभी बच्चों को व्यवसायिक सिक्षा दिलाने में लगे हुए हैं | व्यवसायिक सिक्षा पाने वाले छात्र से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह किसी खेल या कला में पारंगत हो | विद्यार्थियों का मुल्यांकन भी केवल शैक्षणिक आधार प्र किआ जाता है | यदि शिक्षा सम्पूर्ण विकास को पाने लक्ष्य बना ले | छात्रों के लिए खेल तथा कलात्मक गतिविधियों में उतीर्ण होना भी अनिवार्य कर दिया जाए तो खेल-जगत में नए अध्याय खुल सकते हैं | तब माता-पिता बचपन से ही बच्चों के लिए पुस्तकें नहीं, गेंद-बल्ला भी लाया करेंगे और उसके साथ खेलकर उनकी रूचि बढ़ाएंगे | 

पुरस्कार और खेल-ढाँचे की व्यवस्था – यदि भारत में नई प्रतिभाओं को खेलों की ओर बढ़ाना है तो उसके लिए गाँवों से लेकर बड़े नगरों तक कुछ मुलभुत सुविधाएँ प्रदान करनी पड़ेंगी | खेल-प्रशिक्षण की नई अकादमियाँ, प्रशिक्षण, धन-राशि, प्रतियोगताओं के आयोजन, पुरस्कार, सम्मान आदि की व्यवस्थाएँ बढ़ानी होंगी | यह अकेले सरकार के भरोसे नहीं हो सकता | जिस प्रकार एक गायक, नर्तक, भजन-मंडली और नाटक मंडली को आगे बढ़ाने के लिए समाज में नए-नए आयोजन होते रहते हैं, उसी प्रकार खेलों में भी ऐसे आयोजन करने पड़ेंगे | लोग इसे मनोरंजन का साधन मानेंगे | और उसमें अपने बच्चों की सहभागिता बढ़ाएंगे तभी इनका विकास हो पाएगा |

हमारा वर्तमान – खेलों में भारत जैसे विशाल राष्ट्र का वर्तमान बहुत निराशाजनक है | केवल क्रिकेट ही ऐसा खेल है जिसमें ग्लैमर के कारण लोग इस पर जान छिडकते हैं | पूरा देश क्रिकेट के पीछे पागल है | यह खेल न तो भारत की परिस्थितयों के अनुकूल है, न इसे खेलने की सुविधाएँ हमारे पास हैं | विश्व में क्रिकेट के सबसे अधिक आयोजन भारत में ही होते हैं | परंतु हॉकी की दुर्दशा देखिए | इसी खेल में भारत ने विश्व-भर में अपनी पहचान बनाई थी | भारत ने इस खेल में आठ ओलंपिक स्वर्ण और दो कांस्य प्राप्त किए हैं | परंतु न तो सरकार ने उसे प्रोत्साहन दिया, न मीडिया और जनता ने बढ़ावा दिया | परिणाम स्वरूप हॉकी के खिलाड़ी हाशिये प्र होते-होते ओलंपिक से ही बाहर ह गए | इसी भाँती हमारे पहलवान, मुक्केबाज, तैराक, निशानेबाज समाज में उतना सम्मान और धन नहीं पा सकते | इस कारण येखेल पिछड़ते गए | बीजिंग के अलोंपिक में भी जिन खिलाडियों ने पुरस्कार जीते, वे अपनी निजी मेहनत के बल पर जीते | उनकी जीत में सरकार और समाज का योगदान बहुत कम है |

भविष्य – यदि बीजिंग अलोंपिक के स्वर्ण पदक ने भारत सरकार और जनता की आँखों को खोलने में सफलता पा ली, तो खेलों का नया अध्याय खुल सकेगा | यदि करोड़ों के पुरस्कार देकर उन्होंने कर्तव्य से छुट्टी पा ल तो फिर ढाक के वही तीन पात रहेंगे | हमें आशा है कि नई जीत से उत्साहित होकर कुछ परिवर्तन अवश्य आएँगे और हम खेलों में आगे बढ़ेंगे |




लड़का-लड़की एक समान, दोनों से ही घर की शान 

लड़का-लड़की में असमानताएँ – लड़का-लड़की की समानताओं को समझने से पहले उनकी असमानताओं को समझना अनिवार्य है | लड़का-लड़की दोनों के कुछ अंगों में अंतर है | परंतु उनके अधिकांश एंड और तंत्र एक जैसे हैं | उनका जन्म, खान-पीन, पाचन-तंत्र, बीमारी, इलाज, मृत्यु आदि लगभग एक-समान हैं | अंतर मात्र प्रजनन-तंत्र का है | उनमें भी वे दोनों सहयोगी हैं | दोनों में से किसी के बिना सृष्टि-तंत्र नहीं चल सकता |

स्वभाव में अंतर – लड़का-लड़की के मन में एक-जैसे भाव होते हैं ; फिर भी उनकी प्रमुखता में अंतर होता है | नारी में कोमलता, भावुकता, व्यवहार-कुशलता अधित होती है | पुरुष में कठोरता, उग्रता, ताकिर्कता अधिक होती है | इस अंतर का मुख्य कारण उनके कर्म हैं | नारी को संतान-पालन का कर्म करना पड़ता है ; इसलिए ईश्वर ने उसे शरीरिक कोमलता और सुकुमारता प्रदान की है | पुरुष को रक्षण और पालन का कर्म  करना पड़ता है, इसलिए उसमें कठोरता अधिक होती है | परंतु ये अंतर मुलभुत नहीं हैं | परंतु समाज बस इतने-से अंतर से ही लड़के-लड़की में जमीन-आसमान का अंतर कर देता है |

लड़के को महत्व मिलने का कारण – भारतीय समाज पुरुष-प्रधान है | इसमें पुरुषों को अधिक महत्व दिया जाता है | लड़कियों को मात्र ‘खर्चा’ माना जाता है | इसलिए वे ‘कामधेनु’ जैसी होती हुई भी ‘बोझ’ मानी जाती हैं | धर्म-क्षेत्र में यह धारणा भी प्रचलित है कि पुरुष योनी में ही मोक्ष मिल सकता है | इसलिए लड़के को अनिवार्य माना जाता है | परिवारों में यह धारणा भी प्रचलित है कि लड़के से ही वंश चलता है | व्यावहारिक कारण यह कि लड़की को ‘पराया धन’ मन जाता है | उसे विवाह के बाद पति के घर जाना पड़ता है | अतः हर माता-पिता अपने बुढ़ापे के लिए लड़का चाहते हैं |

लड़की को समान महत्व मिलना चाहिए – लड़के को हर प्रकार अपने लिए उपयोगी मानकर अनके माता-पिता लड़के के लालन-पालन शिक्षा पर अधिक व्यय करते हैं, लड़की पर कम | यस अन्याय है | सौभाग्य से शिक्षित परिवारों में यह अंतर मिटता जा रहा है | आज अवश्यकता एस बात की है कि सभी लोग लड़के-लड़की का अंतर करके लड़की को दबाना उचित नहीं | दोनों को अपनी-अपनी अभिरुचि के अनुसार फलने-फूलने का अवसर दिया जाना चाहिए |


Friday, September 30, 2016



बढ़ती जनसंख्या : एक भयानक समस्या 


भूमिका – भारत के सामने अनेक समस्याएँ चुनौती बनकर खड़ी हैं | जनसंख्या-विस्फोट उनमें से सर्वाधिक है | एक अरब भारतियों के पास धरती, खनिज, साधन आज भी वही हैं जो 50 साल पहले थे | परिणामस्वरूप लोगों के पास जमीन कम, आय कम और समस्याएँ अधिक बढ़ती जा रही हैं |

भारत की जनसंख्या – आज विश्व का हर छठा नागरिक  भारतीय है | चीन के बाद भारत भी आबादी सर्वाधिक है | एक अरब भारतियों के पास धरती, खनिज, साधन आज भी वही हैं जो 50 साल पहले थे | परिणामस्वरूप लोगों के पास जमीन कम, आय कम और समस्याएँ अधिक बढ़ती जा रही हैं |

जनसंख्या-वृद्धि के कारण – भारतीय परंपराओं में बाल-बच्चों से भरा-पूरा घर ही सुख का सागर माना जाता है | इसलिए शादी करना और बच्चों की फौज़ जमा करने में हर नागरिक रूचि लेता है | यहाँ के लोग मानते हैं कि पिता का वंश चलाना हमारा धर्म है | ईश्वर-प्राप्ति के लिए पुत्र का होना अनिवार्य मन जाता है | परिणामस्वरूप लड़कियाँ होने पर संतान बढती जाती है |

दुष्परिनाम – जनसंख्या के दुष्परिणामों की कहानी स्पष्ट और प्रकट है | जहाँ भी देखो, हर जगह भीड़ ही भीड़ का सम्राज्य है | भीड़ के कारण हर जगह गंदगी, अव्यवस्था और हौचपौच है | देश का समुचित विकास नहीं हो पा रहा | खुशहाली की जगह लाचारी बढ़ रही है | बेकारी से परेशान लोग हिंसा, उपद्रव और चोरी-डकैती पर उतर आते हैं |

समाधान – जनसंख्या-वृद्धि रोकने के लिए आवश्यक है कि हर नागरिक अपने परिवार को सीमित करे | एक-से अधिक संतान को जन्म न दे | लड़के-लड़की को एक समान मानने से भी जनसंख्या पर नियंत्रण हो सकता है |

परिवार-नियोजन के साधनों के उचित उपयोग से परिवार को मनचाहे समय तक रोका जा सकता है | आज जनसंख्या रोकना राष्ट्रीय धर्म है | इसके लिए कुछ भी करना पड़े, वह करना चाहिए |




आतंकवाद

भूमिका – आज पुरे विश्व में आतंक का साया मंडरा रहा है | न जाने कैन-सा हवाई जहाज अगुआ कर लिया जाए और किसी गगनचुंबी इमारत से टकरा दिया जाए | न जाने, कब-कहाँ कौन मारा जाए ? जब आतंकवाद के क्रूर पंजों से संसद, विधानसभा और मुख्यमंत्री तक सुरक्षित नहीं तो आम आदमी कहाँ जाए ?

आतंकवाद क्यों – प्रश्न उठता है कि आतंकवाद क्यों फल-फुल रहा है ? इसके कारण अनेक हैं | एक समाज देश या धर्म का दुसरे तो दबाना और दबे हुए का बदले की भावना से हिंसक हो उठना मुख्य कारण है | बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, गरीबी, भूख, क्षेत्रवाद, धर्माधता आदि अन्य कारण हैं | ये कारण इतने जटिल होते हैं कि कैंसर के समान शरीर को खा जाते हैं | कोई दवाई एन पर असर नहीं डाल पाती | एस कारण आतंकवाद फलता-फूलता रहता है |

विश्वव्यापी समस्या – आज आतंकवाद की जड़ें बहुत गहरी और विस्तृत हो गई हैं | अनेक आतंकवादी संगठनों के संपर्क-सूत्र पुरे विश्व में फैल गए हैं | ओसामा बिन लादेन ने अफगानिस्तान में बैठकर जिस तरह अमेरिअक के दो टावरों को ध्वस्त किया ; जिस तरह पाकिस्तानी नागरिकों ने भारत से बहार बैठकर मुंबई, संसद तथा कश्मीर पर आक्रमण किए, उससे उनके अंतरराष्ट्रीय संबंधों का प्रमाण मिल जाता है |

भारत में आतंकबाद – भारत में आतंकबाद का आरंभ स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ-साथ हो गया था | कश्मीर के मुद्दे पर भारत-पाकिस्तान के बीच जो खींचतान हुई, वह धीरे-धीरे हिन्दू-मुसलमान संघर्ष का घिनौना रूप धारण करने लगी | नए-नए आतंकवादी संगठन कुकुरर्मुतों की तरह उग रहे हैं | नागालैंड, मिज़ोरम, सिक्किम, उतर-पूर्व, तमिलनाडु, असम और अब हैदराबाद – सबमें कोई-न-कोई आतंकबादी गतिविधि जारी है | कहीं नक्सली आतंकवादी गुट मुख्मंत्री चंद्रबाबु पर आक्रमण कर रहा है तो कहीं उल्फा या लिट्टे सिरजोर बने हुए हैं |

हानियाँ – आतंकवाद फैलने से चारों अशांति का साम्राज्य हो जाता है | लोग चूहों की भाँती साँस लेते है और मरने को तैयार रहते हैं | वहाँ किसी प्रकार की ख़ुशी और उन्नति पसर नहीं पाती | आतंकवादी का कोई दीन-धर्म नहीं होता | वह अपनों का खून बहाने से भी बाज नहीं आता |

उपाय – आतंकवाद का सफाया करने के लिए जी-जान लगाने की हिम्मत चाहिए | हिम्मत ही नहीं, उसे कुचलने के लिए पूरी सावधानी, कुशलता और तत्परता भी चाहिए | सौभाग्य से अमेरिका के नेतृत्व में ऐसी कुछ शुरुआत हुई है | अगर अन्य देश भी इसी प्रकार संकल्प करके आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने के लिए कुछ ठोस उपाय कर सकें तो एक-न-एक दिन यह विश्व आतंकवाद सुशांत प्रदेश बन सकेगा |




महंगाई

महँगाई की समस्या – वर्तमान की अनेक समस्याओं में से एक महत्वपूर्ण समस्या है – महँगाई | जब से देश स्वतंत्र हुआ है, तब से वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं | रोजमर्रा की चीजों में 150 से 250 गुना तक की कीमत-वृद्धि हो चुकी है |

महँगाई बढ़ने के कारण – बाज़ार में महँगाई तभी बढ़ती है जबकि माँग अधिक हो, किंतु वस्तओं की कमी हो जाए | भारत में स्वतंत्रता के बाद से लेकर आज तक जनसंख्या में तीन गुना वृद्धि हो चुकी है | इसलिय स्वाभाविक रूप से तिन गुना मुँह और पेट भी बढ़ गए हैं | अतः जब माँग बढ़ी तो महँगाई भी बढ़ी | दुसरे, पहले भारत में गरीबी की रेखा के नीचे जीने वाले लोग अधिक थे | परंतु अब ऐसे लोगों की संख्या कम है | अब अधिकतर भारतीय पेट-भर अन्न-जल प् रहे हैं | इस कारण भी वस्तुओं की माँग बढ़ी है | बहुत-सी चीजों पर हम विदेशों पर निर्भर हो गए है | हमारे देश की एक बड़ी धनराशि पेट्रोल पर व्यय होती है | इसके लिए भारत कुछ नहीं कर पाया | अतः रोज-रोज पैट्रोल का भाव बढ़ता जा रहा है | परिणामस्वरूप हर चीज महँगी होती जा रही है | 

कालाबाज़ारी – महँगाई बढ़ने के कुछ बनावटी कारण भी होते हैं | जैसे – कालाबाज़ारी | बड़े-बड़े व्यपारी और पूंजीपति धन-बल पर आवश्यक वस्तुओं का भंडारण कर लेते हैं | इससे बाज़ार में अचानक वस्तुओं की आपूर्ति कम हो जाती है |

परिणाम – महँगाई बढ़ने का सबसे बड़ा दुष्परिनाम गरीबों और निम्न मध्यवर्ग को होता है | इससे उनका आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है | या तो उन्हें पेट काटना पड़ता है, या बच्चों की पढ़ाई-लिखाई जैसी आवश्यक सुविधा छीन लेनी पड़ती है |

उपाय – दैनिक उपयोग की वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि रोकने के ठोस उपाय किए जाने चाहिए | इसके लिए सरकार को लगातार मूल्य-नियंत्रण करते रहना चाहिए | कालाबाज़ारी को भी रोका जा सकता है | एस दिशा में जनता का भी कर्तव्य है कि वह संयम से काम लो |




सामाजिक जीवन में भ्रष्टाचार

भरष्टाचार का बढ़ता स्वरूप – भारत के सामाजिक जीवन में आज भ्रष्टाचार का बोलबाला है | यहाँ का रिवाज़ है – रिश्वत लो और पकड़े जाने पर रिश्वत देकर छुट जाओ | नियम और कानून की रक्षा करने वाले सरकारी कर्मचारी सबसे बड़े भ्रष्टाचारी हैं | केवल तीन करोड़ में देश के सांसदों को खरीदना और उनका बिकना भ्रष्टाचार का सबसे शर्मनाक दृश्य है |

भ्रष्टाचार का प्रवाह ऊपर से नीचे की और बहता है | जब मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री स्वयं भ्रष्टाचार या घोटाले में लिप्त हों तो उस देश का चपरासी तक भ्रष्ट हो जाता है | यही स्थिति भारत की हो चुकी है | सरकारी कार्यलयों में बिना घुस दिए कोई काम नहीं होता | फर्जी बिल बनाए जाते हैं | बड़े-बड़े अधिकारी कागज़ों पर सड़कें, पुल आदि बनाते है और सता पैसा खुद खा जाते हैं | सरकारी सर्वेक्षण बताते हैं कि किसी भी योजना के लिए दिया गया 85% पैसा तो अधिकारी ही खा जाते हैं |

भ्रष्टाचार : एक नियमित व्यवस्था – अब तो प्रीमियम, डोनेशन, सुविधा-शुल्क या नए-नए नामों से भ्रष्टाचार को व्यवस्था का अंग बना दिया गया है | कहने का अर्थ है कि सरकार तक ने इसे स्वीकार कर लिया है | इसलिए व्यापारियों और व्यवसायियों का भी यही ध्येय बन गया है कि ग्राहक को जितना मर्जी लूटो | कर्मचारी ने भी सोच लिया है – खूब रिश्वत लो और काम से बचो |

भ्रष्टाचार : क्यों और कैसे – भ्रष्टाचार मनुष्यों की बदनीयती के कारण बढ़ा और उसमें सुधार करने से ही यह ठीक होगा | समाज के नियमों का पालन करने के लिए परिवार तथा विदयाल में संस्कार दिए जाने चाहिए | दुसरे, प्रशासन को स्वयं शुद्ध रहकर नियमों का कठोरता से पालन कराना चाहिए | हर भ्रष्टाचारी को उचित दंड दिया जाना चाहिए ताकि शेष सबको बाध्य होना पड़े | परंतु प्रशाशन अपनी जिम्मेदारी को नहीं समझ रहा | 

प्रशन यह है कि ऐसा कब हो पायगा ? यह समय पर निर्भर है | जब भी कोई दृढ़ चरित्रवान युवा नेतृत्व आर या पार की भावना से समाज जो प्रेरणा देगा, तभी यह मैली गंगा शुद्ध हो सकेगी |




बेरोज़गारी : समस्या और समाधान

बेकारी की समस्या और अभिप्राय – आज भारत के सामने जो समस्याएँ कण फैलए खड़ी हैं, उनमें से एक चिंतनीय समस्या है – बेकारी | लोगों के पास हाथ हैं, पर काम नहीं है; प्रशिक्षण है, पर नौकरी नहीं है | 
आज देश में प्रशिक्षित और अप्रशिक्षित-दोनों प्रकार के बेरोज़गारों की फौज़ जमा है | फैक्ट्रियों, सड़कों, बाज़ारों में भीड़ है | शहरों में हज़ारों बेकार मज़दूरों के झुंड पर झुंड नज़र आ जाते हैं | रोज़गार कार्यालयों में करोड़ों बेकार युवकों के नाम दर्ज हैं | सौ नौकरियों के लिए हज़ारों से लाखों तक आवेदन-प्रत्र जमा हो जाते हैं | बेकारी का एक दुस्ता प्रकार है – अर्द्ध बेकार | कई लोगों का व्यवसाय वर्ष में छ: मास खाली रहते हैं | इसके अतिरिक्त कई लोग ऐसे हैं जो काम पर होते हुए भी यथायोग्य स्थान पर नियुक्त नहीं हैं |

बेकारी के कारण – बेकारी का सबसे बड़ा कारण है – बढ़ती हुई जनसंख्या | दूसरा कारण है, भारत में विकास के साधनों का आभाव होना | देश के कर्णधारों की गलत योजनाएँ भी बेकारी को बढ़ा रही हैं | गाँधी जी कहा करते थे – “हमारे देश को अधिक उत्पादन नहीं, अधिक हाथों द्वारा उत्पादन चाहिए |” उन्होंने बड़ी-बड़ी मशीनों की जगह लघु उद्योगों को प्रोत्साहन दिया | उनका प्रतीक था – चरखा | परंतु अधिकांश जन आधुनिकता की चकाचोंध में उस सच्चाई के मर्म को नहीं समझे | परिणाम यह हुआ कि मशीनें बढ़ती गई, हाथ खाली होते गए | बेकारों की फौज़ जमा हो गईं | आज के अधिकारी कंप्यूटरों और मशीनों का उपयोग बढ़ाकर रोज़गार के अवसर कम कर रहे हैं | बैंक, सार्वजनिक उद्योग नई नौकरियाँ पैदा करने की बजे अपने पुराने स्टाफ को ही जबरदस्ती निकलने में जुटे हुए हैं | यह कदम देश के लिए घातक सिद्ध होगा | आज भरक को पुन : पैतृक उद्योगों, धंधों, व्यवसायों की आवश्यकता है |

बेकारी बढ़ने का एक अन्य कारण है – बाबूगिरी की होड़ | हमारी दूषित शिक्षा-प्रणाली भी बेकारी बढ़ने का अन्य कारण है | यदि बचपन से ही बच्चे को व्यावसायिक शिक्षा दी जाए तो बेरोज़गारी कम हो सकती है |

समाधान – प्रत्येक समस्या का समाधान उसके कारणों में छिपा रहता है | अतः यदि ऊपर-कथित कारणों प्र प्रभावी रोक लगाई जाए तो बेरोज़गारी की समस्या का काफी सीमा तक समाधान हो सकता है | व्यावसायिक शिक्षा, लघु उद्योगों को प्रोत्साहन, मशिनिकरण प्र नियंत्रण, कंप्यूटरीकरण पर नियंत्रण, रोज़गार के नए अवसरों की तलाश, जनसंख्या पर रोक आदि उपायों को शीघ्रता से लागु किया जाना चाहिए |




सांप्रदायिकता : एक अभिशाप 

सांप्रदायिकता का अर्थ और कारण – जब कोई संप्रदाय स्वयं को सर्वश्रेष्ठ और अन्य स्म्प्दयों को निम्न मानने लगता है, तब सांप्रदायिकता का जन्म होता है | दूसरी तरफ भी कम अंधे लोग नहीं होते | परिणामस्वरूप एक संप्रदाय के अंधे लोग अन्य धर्मांधों से भिड पड़ते है और सारा जन-जीवन लहूलुहान कर देते हैं | इन्हीं अंधों को फटकारते हुए महात्मा कबीर ने कहा है –

हिंदू कहत राम हमारा, मुसलमान रहमाना |
आपस में दोऊ लरै मरतु हैं, मरम कोई नहीं जाना ||

सर्वव्यापक समस्या – सांप्रदायिकता विश्व-भर में व्याप्त बुराई है | इंग्लैंड में रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट ; मुसलिम देशों में शिया और सुन्नी ; भारत में बैाद्ध-वैष्णव, सैव- बैाद्ध, सनातनी, आर्यसमाजी, हिन्दू-सिक्ख झगड़े उभरते रहे हैं | एन झगड़ों के कारण जैसा नरसंहार होता है, जैसी धन-संपति की हानि होती है, उसे देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं |

भारत में सांप्रदायिकता – भारत में सांप्रदायिकता की शुरूआत मुसलमानों के भारत में आने से हुई | शासन और शक्ति के मद में अन्धें आक्रमणकारियों ने धर्म को आधार बनाकर यहाँ के जन-जीवन को रौंद डाला | धार्मिक तीर्थों का तोड़ा, देवी-देवताओं को अपमानित किया, बहु-बेटियों को अपवित्र किया, जान-माल का हरण किया | परिणामस्वरूप हिंदू जाति के मन में उन पाप-कर्मो के प्रति गहरी घ्रणा भर गई, जो आज तक भी जीवित है | बात-बात पर हिंदू-मुसलिम संघर्ष का भड़क उठना उसी घ्रणा का सूचक है |

सांप्रदायिक घटनाएँ – सांप्रदायिकता को भड़कने में अंग्रेज शासकों का गहरा षड्यंत्र था | वे हिन्दू-मुसलिम झगड़े फैलाकर शासक बने रहने चाहते थे | उन्होनें सफलतापूर्वक दोनों को लड़ाया | आज़ादी से पहले अनेक खुनी संघर्ष हुए | आज़दी के बाद तो विभाजन का जो संघर्ष और भीषण नर-संहार हुआ, उसे देखकर समूची मानवता रो पड़ी | शहर-के-शहर गाजर-मुली की तरह काट डाले गए | अयोध्या के रामजन्म-भूमि विवाद ने देश में फिर से सांप्रदायिक आग भड़का दी है | बाबरी मसजिद का ढहाया जाना और उसके बदले सैंकड़ों मंदिरों का ढहाया जाना ताजा घटनाएँ हैं |

समाधान – सांप्रदायिकता की समस्या तब तक नहीं सुलझ सकती, जब रक् कि धर्म के ठेकेदार उसे सुलझाना नहीं चाहते | यदि सभी धर्मों के अनुयायी दूसरों के मत का सम्मान करें, उन्हें स्वीकारें, अपनाएँ, उनके कार्यक्रमों में सम्मिलित हों, उन्हें उत्सवों पर बधाई देकर भाईचारे का परिचय दें | विभिन्न धर्मों के संघषों को महत्व देने की बजाय उनकी समानताओं को महत्व दें तो आपसी झगड़े पैदाही न हों | कभी-कभी ईद-मिलन या होली-दिवाली पर ऐसे दृश्य दिखाई देते हैं तो एक सुखद आशा जन्म लेती है | साहित्यकार और कलाकार भी सांप्रदायिकता से मुक्ति दिलाने में योगदान कर सकते हैं |


Thursday, September 29, 2016




शहरी जवान में बढ़ता प्रदूषण 

शहरों का निरंतर विस्तार और बढ़ती जनशंख्या – आज की सभ्यता को शहरी सभ्यता को शहरी सभ्यता कह सकते हैं | यद्पि भारत की अधिकांश जनता गाँवों में बस्ती है किंतु उसके र्ह्द्यों में बसते – शहर बढ़ रहे है, साथ-साथ जनशंख्या भी तेजी से बढती रही है | हर वर्ष भारत में एक नया ऑस्ट्रेलिया और जुड़ जाता है |

शहरों में बढ़ते विविध प्रकार के प्रदूषण – जन्शंख्या के इस बढ़ते दबाव का सीधा प्रभाव यहाँ के बयुमंडल पर पड़ा है | धरती कम, लोग अधिक | शेरोन की तो दुर्गति हो गई है | दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई जैसे महानगरों में हर प्रकार का प्रदूषण पाँव पसार रहा है | लोगों के पास पर्याप्त स्थान नहीं हैं | लाखों लोग झुग्गी-झोंपड़ियों में निवास करते हैं, जहाँ खुली धुप, वायु और जल तक का प्रबंध नहीं है | न उनके पास रहने को पक्के मकान हैं, न स्नानघ, न शौचालय | इसलिए उनका सारा वातावरण शौचालय जैसा दुर्गन्धपूर्ण हो गया है |

वायु-प्रदूषण – महानगरों की सड़कों के वाहन रोज लाखों गैलन गंदा धुआँ उगलते हैं | व्रक्षों को अभाव में यह धुआँ नागरिकों के फेफड़ों में जाता है और उनका स्वास्थ्य खराब हो गया है |

जल तथा धवनि प्रदूषण -  नगरों में जल के स्त्रोत भी दूषित हो चुके हैं | दिल्ली में बहने वाली यमुना पवित्र 
नदी नहीं, विशाल नाला बन चुकी है | नगरों के आसपास फैले उद्योग इतना रासायनिक कचरा उत्सर्जित करते हैं कि यहाँ की धरती और नदियों का जल प्रदूषित हो चूका है | शोर का कहना ही क्या ! वाहनों का शोर, कल-कारखानों की बड़ी-बड़ी मशीनों का शोर, सघन जनसंख्या का शोर, ध्वनि-विस्तारकों और कर्णबेधक संगीत-वाद्दों का शोर-इन सबके कारण शहरी जीवन तनावग्रस्त हो गया है |

प्रदूषण की रोकथाम के उपाय – शहरों में बढ़ रहे प्रदूषण को रोकने अत्यंत आवश्यक है | इसका सर्वोतम उपाय है – जन्शंख्या पर नियंत्रण | प्रयतन किया जाना चाहिए कि और गाँव तजकर नगरों की और न दौड़े | सरकार को चाहिए कि वह नगरों की सुविधाएँ गाँवों तक पहुँचाये ताकि शहरीकरण की अंधी दौड़ बंद हो |

प्रदूषण रोकने का दुस्ता उपाय है – सुविचार्पूर्ण नियोजन | हरियाली को यथासंभव बढ़ावा देना चाहिय | प्रदूषण बढ़ाने वाली फैक्टरियों को नगरों से बाहर ले जाना चाहिए | फैक्टरियों के प्रदूषित जल और कचरे को संसाधित करने का उचित प्रबंध करना चाहिए | शोर को रोकने के कठोर नियम बनाए जाने चाहिए तथा उन पर अमल किया जाना चाहिए |




प्रदूषण : एक समस्या

पर्यावरण का अर्थ – पर्यावरण का अर्थ है – हमारे चारों और का वातावरण | दुर्भाग्य से हमारा यही पर्यावरण आज दूषित हो गया है | प्रदूषण मुख्यत : तीन प्रकार का होता है – वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण तथा ध्वनि-प्रदूषण |

प्रदूषण के कारण – प्रदूषण का जन्म अंधाधुंध वैज्ञानिक प्रगति के कारण हुआ है | जब से मनुष्य ने प्रकृति के साथ मनचाही छेड़छाड़ की है, तब से प्रकृति मनुष्य पर कुपित है | मनुष्य ने अपने भवन सुंदर बनाने के लिए वन काटे, पहाड़, तोड़े, समतल मैदान बनाए, वृक्ष काटे, ईट-बजरी और तारकोल के निर्माण किए, विदुत-गृह और ताप-घर बनाए, परमाणु-भट्टियाँ बनाई, प्लास्टिक जैसी घातक कृत्रिम बनाएँ बनाई, प्लास्टिक जैसी घातक कृत्रिम बस्तुएँ बनाई, परमाणु हथियारों, बमों, कीटनाशकों का अनावश्यक निर्माण किया |

मनुष्य की इस अंधाधुंध प्रगति का दुष्परिणाम यह हुआ कि हमारा समूचा परिवेश जीवन-घातक तत्वों से भर गया है | महानगरों में स्वच्छ वायु में साँस लेने को तरस गया है आदमी | वायु-प्रदुषण के कारण ऑखों में जलन, तवचा में एलर्जी, साँस में कष्ट, प्लेग, डेंगू आदि कितनी ही प्राणघातक बीमारियाँ जन्म ले रही हैं |

अविवेकपूर्ण औद्योगिकीकरण और परमानिविक प्रयोगों के कारण विश्व-भर का मौसम-चक्र बिगड़ गया है | धरती पर गर्मी बढ़ रही है | वैज्ञानिकों को चेतावनी है कि यदि इसी प्रकार उर्जा का प्रवाह होता रहा तो हिमखंड पिघलेंगे, बाढ़े आएँगी, समुद्र-जल में वृद्धि होगी | रहने-योग्य भूमि और कम होगी | समुद्र ही नहीं, आकाश में फैली ओजोन गैस की सुरक्षा-छतरी में छेद हो जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप धरती का पर्यावरण विषाक्त हो जाएगा |

प्रदूषण का निवारण -  प्रदूषण से मुक्ति का सर्वोतम उपाय है – एस समस्या के प्रति सचेत होना | अन्य उपाय हैं – आसपास पेड़ लगाना, हरियाली को अधिकाधिक स्थान देना | अनावश्यक शोर को कम करना | विलास की वस्तुओं की बजाय सद्गिपूर्ण ढंग से जीवनयापन करना | वनों की कटाई पर रोक लगाना | लकड़ी के नए विकल्प खोजना | फैक्टरियों को दूषित जल और धुएँ के निष्कासन का उचित उपाय खोजना | घातक बीमारियाँ पैदा करने वाले उद्योगों को बंद करना | परमाणु विस्फोटों पर रोक लगाना | एन उपायों को स्वयं पर लागु करना तथा समाज को बाध्य करना ही प्रदूषण से बचने का एकमात्र उपाय है |


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