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Thursday, September 29, 2016



दहेज-प्रथा एक गंभीर समस्या 

दहेज का बदलता स्वरूप -  भारतीय नारी का जीवन जिन समस्याओं का नाम सुनते ही कॉप उठता है – उनमें सबसे प्रमुख है – दहेज | प्ररंभ में दहेज़ कन्या के पिता दुवरा स्वेच्छा-से  अपनी बेटी को दिया जाता था | विवाह के समय बेटी को प्रोमोपहार देना अच्छी परंपरा थी | आज भी इसे प्रेम-उपहार देने में कोई बुराई नहीं है |

दुर्भाग्य से आज दहेज-प्रथा एक बुराई का रूप धारण करती जा रही है | आज दहेज प्रेमवश देने की वास्तु नहीं, अधिकार पूर्वक लेने की वास्तु बनता जा रहा है | आज वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से जबरदस्ती पैसा, वस्त्र और वस्तुएँ माँगते हैं | यह माँग एक बुराई है |

दहेज के दुष्परिणाम - दहेज़ के दुष्परिणाम अनेक हैं | दहेज़ के आभाव में योग्य कन्याएँ अयोग्य वरों को सौंप दी जाती है | दूसरी और, अयोग्य कन्याएँ धन की ताकत से योग्यतम वारों को खरीद लेती हैं | दोनों ही स्थितियों में पारिवारिक जीवन सुखद नहीं बन पाना |

गरीब माता-पिता दहेज के नाम से भी घबराते हैं | वे बच्चों का पेट काटकर पैसे बचाने लगते हैं | यहाँ तक कि रिश्वत, गबन जैसे अनैतिक कार्य करने से भी नहीं चुकते |

दहेज का राक्षसी रूप हमारे सामने तब आता है, जब उसके लालच में बहुओं को परेशान किया जाता है | कभी-कभी उन्हें इतना सताया जाता है कि वे या तो घर छोड़कर मायके चली जाती हैं या आत्महत्या कर लेती हैं | कई दुष्ट वर तो स्व्यं अपने हाथों से नववधू को जला डालते है |

समाधान के उपाय – दहेज की बुराई को दूर करने के सचे उपाय देश के नवयुवकों के हाथ में हैं | अतः वे विवाह की कमान अपने हाथों में लें | वे अपने जीवनसाथी के गुणों को महत्व दें | विवाह ‘प्रेम’ के आधार पर करें, दहेज़ के आधार पर नहीं | कन्याएँ भी दहेज के लालची युवकों को दुत्कारें तो यह समस्या तुरंत हल हो सकती है |

लड़की का आत्मनिर्भर बनना – लड़कियों का आत्मनिर्भर बनना भी दहेज रोकने का एक अच्छा उपाय है | लडकियाँ केवल घरेलू कार्य में ही व्यस्त न रहें, बल्कि आजीविका कमाएँ ; नौकरी या व्यवसाय करें | इससे भी दहेज की माँग में कमी आयगी |

कानून के प्रति जागरूकता – दहेज की लड़ाई में कानून भी सहायक हो सकता है | जब से ‘दहेज निषेद विधेयक’ बना है, तब से वर पक्ष द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों में कम आई है | परंतु इस बुराई का जड़मूल से उन्मूलन तभी संभव है, जब से वर पक्ष द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों में कमी आई है | परंतु इस बुराई का जड़मूल से उन्मूलन तभी संभव है, जब युवक-युवतियाँ स्वयं जाग्रत हों |


Wednesday, September 28, 2016



छात्र और शिक्षक 

घर-प्रारंभिक पाठशाला, माता-पिता प्रथम शिक्षक – पूरा जीवन एक विदायक है | हर व्यक्ति विदार्थी भी है और शिक्षक भी | कोई भी मनुष्य किसी से कुछ सिख सकता है | बच्चे के लिए सबसे पहली पाठशाला होती है – घर | माता-पिता ही उसके प्रथम शिक्षक होते हैं | वे उसे ईमानदारी, सच्चाई या बेईमानी का मनचाहा पथ पढ़ा सकते हैं | वास्तव में माता-पिता जैसा आचरण करते हैं बच्चा उसी को सही मानकर ग्रेहन कर लेता है |

विद्यालय में शिक्षक ही माता-पिता – विद्यालय में शिक्षक ही माता-पिता के समान होते हैं | वे बच्चों को अपनी प्रिय संतान के समान मानते हैं | उन पर बच्चों को संस्कारित करने का दायित्व होता है | इसलिए वे अच्छे कुंभकार के समान बच्चों की बुरी आदतों पर चोट करते हैं तथा अच्छी बातों की प्रशंसा करते हैं | शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों की बुरी आदतों का समर्थन न करें, अपितु उन्हें उचित मार्ग पर लाने का प्रयास करें |

शिक्षक का दायित्व, पढ़ाना, दिशा-निर्देशन, सत्य्कार्यों की प्रेरणा – शिक्षकों का दायित्व केवल पुस्तकें पढ़ाना नहीं है | अपना विषय पढ़ाना उनका प्रथम धर्म है | उन्हें चाहिए कि वे अपने विषय को सरस और सरल ढंग से बच्चों को पढाएँ | उनका दूसरा दय्तिव है – बच्चों को सही दिशा बताना | अच्छे-बुरे की पहचान करना | तीसरा दायित्व है – बच्चों को शुभ कर्मों की प्रेरणा देना |

छात्र का दायित्व, परस्पर संबंद – शिक्षा-प्राप्ति का कर्म छात्रों की सदभावना के बिना पूरा नहीं हो सकता | जब तक छात्र अपने शिक्षक को पूरा सम्मान नहीं देता, तब तक वह विद्या ग्रहण नहीं कर सकता | कहा भी गया है – ‘श्रद्धावान लभते ज्ञ्नाम |’ श्रद्धावान को ही विद्या प्राप्त होती है | अपने शिक्षक पर संपूर्ण विश्वास रखने वाले छात्र ही शिक्षक की वाणी को ह्रदय में उतार सकते हैं | अच्छा छात्र हमेशा यही कहता है –
दोनों परस्पर अपने-अपने दायित्वों की समझें – विद्या-प्राप्ति का कार्य शिक्षक और छात्र दोनों के आपसी तालमेल पर निर्भर है | कबीर कहते है –

सतगुरु बपुरा क्या करै, जे सिष महि चुक 

यदि छात्र में दोष हो तो सतगुरु चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता | इसके विपरीत यदि गुरु अयोग्य हो तो उनकी स्थिति ऐसी हो जाती है –




मेरे जीवन का लक्ष्य या उदेश्य

लक्ष्य का निश्चय – मैं दस्वीं कक्षा का छात्र हूँ | मेरे मन में एक ही सपना है कि मैं इंजीनियर बनूँगा |

लक्ष्यपूर्ण जीवन के लाभ – जब से मेरे भीतर यह सपना जागा है, तब से मेरे जीवन में अनेक परिवर्तन आ गय हैं | अब मैं अपनी पढ़ई की और अधिक ध्यान देने लगा हूँ | पहले क्रिकेट के खिलाडियों और फ़िल्मी तारिकाओं में गहरी रूचि-लेता था, अब ज्यामिति की रचनाओं और रासायनिक मिश्रणों में रूचि लेने लगा हूँ | अब पढ़ाई में रस आने लगा है | निरुदेश्य पढ़ाई बोझ थी | लक्ष्बुद्ध पढ़ाई में आनंद है | सच ही कहा था कलाईल ने – “ अपने जीवन का एक लक्ष्य बनाओ, और इसके बाद अपना सारा शरीरिक और मानसिक बल, जो ईश्वर ने तुम्हें दिया है, उसमें लगा दो |”

मेरा संकल्प – मैंने निश्चय किआ है कि मैं इंजिनियर बनकर एक संसार को नए-नए साधनों से संपन्न करूँगा | मेरे देश में जिस वस्तु की आवश्यकता होगी, उसके अनुसार मशीनों का निर्माण करूँगा | देश में जल-बिजली , सड़क या संचार-जिस भी साधन की आवश्यकता होगी, उसे पूरा करने में अपना जीवन लगा दूँगा |

मैं गरीब परिवार का बालक हूँ | मेरे पिता किराए क एक मकान में रहे हैं | धन की तंगी के कारण हम अपना माकन नहीं बना पाए | यही दशा मेरे जैसे करोंड़ों बालकों की है | मैं बड़ा होकर भवन-निर्माण की ऐसी सस्ती, सुलभ योजनाओं में रूचि लूँगा | जिससे माकनहीनों को मकान मिल सकें |

मैंने सुना है कि कई इंजिनियर धन के लालच में सरकारी भवनों, सड़कों, बाँधों में घटिया सामग्री लगा देते हैं | यस सुनकर मेरा ह्र्दय रो पड़ता है | मैं कदपि यह पाप-कर्म नहीं करूँगा, न अपने होते यह काम किसी को करने दूँगा |

लक्ष्य-पूर्ति का प्रयास – मैंने अपने लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में प्रयास करने आरम्भ कर दिए हैं | गणित और विज्ञान में गहरा अध्ययन कर रहा हूँ | अब मैं तब तक आराम नहीं करूँगा, जब तक कि लक्ष्य को पा न लूँ |
कविता की ये पंक्तियाँ मुझे सदा चलते रहने की प्रेरणा देती हैं –

धनुष से छुटता है बाण कब पथ में ठहरता |
देखते ही देखते वह लक्ष्य का ही बेध करता |
लक्ष्य-प्रेरित बाण हैं हम, ठहरने का काम कैसे ?
लक्ष्य तक पहूँचे बिना, पथ में पथिक विश्राम कैसा ?


Sunday, September 25, 2016



मेरी प्रिय पुस्तक – कुरुक्षेत्र

मेरी प्रिय पुस्तक – कुरुक्षेत्र – मेरी सबसे प्रिय पुस्तक है – रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की ‘कुरुक्षेत्र’ | यह युद्ध और
शांति का समस्या पर आधारित है | इसमें महाभारत के उस प्रसंग का वर्णन है जब युद्ध के समाप्त होने पर भीषण शर-शय्या पर लेते हुए हैं | उधर पांडव अपनी जीत पर प्रसन्न हैं | परंतु धर्मराज युधिष्टर इतने लोगों की मृत्यु और बरबादी पर बहत दुखी हैं | वे पश्चाताप करते हुए भीष्म के पास जाते हैं | वे रोते हुए कहते हैं की उनहोंने युद्ध करके घोर पाप किया है | राज्य पाने के लिए की हिंसा भी पाप है, अन्याय है | इससे अच्छा तो यही होता कि वे भीख माँगकर जी लेते |

युद्ध का दोषी कौन – भीष्म युधिष्टर को कहते हैं कि महाभारत के युद्ध में युधिष्टर का कोई दोष नहीं है | दोष तो पापी दुर्योधन का है, शकुनी का है, चारों और फैली द्वेष-भावना का है, जिसके कारण युद्ध हुआ –

पापी कौन ? मनुज से उसका 
न्याय चुराने वाला |
या कि न्याय खोजते, विघ्न का 
शीश उड़ाने वाला ||

दिनकर स्पष्ट कहते हैं कि अन्याय का विरोध करने वाला पापी नहीं है, बल्कि अन्याय करने वाला पापी है |

न्याय और शांति का संबंध -  इस काव्य में दिनकर ने यह भी प्रश्न उठाया है कि किसी राज्य में शांति कैसे संभव है ? वे कहते हैं –

शांति नहीं तब तक, जब तक 
सुख-भाग न सबका सम हो |
नहीं किसी को बहुत अधिक हो 
नहीं किसी को कम हो ||

संघर्ष की प्रेरणा – इस संदेश के बाद भीष्म युधिष्टर को थपथपी देते हुए कहते हैं कि उसने अन्याय का वीरों करके अच्छा ही किया | भीष्म कहता हैं, अन्याय का विरोध करना तो पूण्य है, पाप नहीं |

छीनता हो स्वत्व कोई, और तू
 त्याग–तप से कम ले, यह पाप है |
पूण्य है विच्छ्न्न कर देना उसे
बढ़ रहा तेरी तरफ़ जो हाथ है |

भीष्म कहते हैं कि अन्यायी को दंड अवश्य मिलना चाहिए | क्षमा, दीनता आदि गुण वीरों के धर्म हैं, कायरों के नहीं |

क्षमा शोभती उस भुजंग को 
जिसके पाप गरल हो |
उसको क्या, जो दंतहीन 
विषहीन विनीत सरल हो ||

ओजस्वी भाषा – दिनकर का यह ग्रंथ प्रेरणा, ओज, वीरता, साहस और हिम्मत का भंडार है | इसकी भाषा आग उगलती है | इस काव्य को पढ़कर मुर्दे में भी जन आ सकती है | इसके वीरता भरे शब्द मुझे बार-बार इसे पढ़ने की प्रेरणा देते हैं |




पुस्तकों का महत्व

पुस्तकें : हमारी मित्र – पुस्तकें हमारी मित्र हैं | वे अपना अमृत-कोष सदा हम पर न्योछावर करने को तैयार रहती हैं | अच्छी पुस्तकें हमें रास्ता दिखाने के साथ-साथ हमारा मनोरंजन भी करती हैं | बदले में वे हमसे कुछ नहीं लेतीं, न ही परेशान या बोर करती हैं | इससे अच्छा और कौन-सा साथी हो सकता है कि जो केवल कुछ देने का हकदार हो, लेने का नहीं |

पुस्तकें : प्रेरणा का स्त्रोत – पुस्तकें प्रेरणा की भंडार होती हैं | उन्हें पढ़कर जीवन में कुछ महान कर्म करने की भावना जागती है | महात्मा गाँधी को महान बनाने में गीता, टालस्टाय और थोरो का भरपूर योगदान था | भारत की आज़ादी का संग्राम लड़ने में पुस्तकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी | मैथलीशरण गुप्त की ‘भारत-भारती पढ़कर कितने ही नौजवानों ने आज़ादी के आदोंलन में भाग लिया था |

पुस्तकें : विकास की सूत्रधार – पुस्तकें ही आज की मानव-सभ्यता के मूल में हैं | पुस्तकों के दुवारा एक पीढ़ी का ज्ञान दूसरी पीढ़ी तक पहुँचते-पहुँचते सरे युग में फ़ैल जाता है | विपिल महोदय का कथन है – “पुस्तकें प्रकाश-गृह हैं जो समयह के विशाल समुद्र में खड़ी की गई हैं |” यदि हज़ारों वर्ष पूर्व के ज्ञान को पुस्तकें अगले युगतक न पहुँचती तो शायद एक वैज्ञानिक सभ्यता का जन्म न होता |

प्रचार का साधन – पुस्तकें किसी भी विचार, संस्कार या भावना के प्रचार का सबसे शक्तिशाली साधन हैं | तुलसी के ‘रामचरितमानस’ ने तथा व्यास-रचित महाभारत ने अपने युग को तथा आने वाली श्तब्दियों की पूरी तरह प्र्भाभित किया | आजकल विभिन्न सामाजिक आंदोलन तथा विविध विचारधाराएँ अपने प्रचार-प्रसार के लिए पुस्तकों को उपयोगी अस्त्र के रूप में अपनाती हैं |

मनोरंजन का साधन  - पुस्तकें मानव के मनोरंजन में भी परम सहायक सिद्ध होती हैं | मनुष्य अपने एकांत क्षण पुस्तकों के साथ गुजार सकता है | पुस्तकों के मनोरंजन में हम अकेले होते हैं, इसलिए मनोरंजन का आनंद और अधिक गहरा होता है | इसलिए किसी ने कहा है – “पुस्तकें जागत देवता है | उनकी सेवा करके तत्काल वरदान प्राप्त किआ जा सकता है |”


Friday, September 23, 2016



छात्र-अनुशासन

अनुशासन का अर्थ और मह्त्व – अनुशासन की पहली पाठशाला है –परिवार | बच्चा अपने परिवार में जैसे देखते है, वैसा ही आचरण करता है | जो माता-पिता अपने बच्चों को अनुशासन में देखना चाहते हैं, वे पहले स्वयं अनुशासन में रहते है |

अनुशासन की प्रथम पाठशाला परिवार – अनुशासन की पहली पाठशाला है – परिवार | बच्चा अपने परिवार मन जैसे देखते है, वैसा ही आचरण करता है | जो माता-पिता अपने बच्चों को अनुशासन में देखते चाहते हैं, वे पहले स्वयं अनुशासन में रहते हैं |

व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के लिए अनुशासन आवश्यक – विद्यार्थी-जीवन में अनुशासन का होना अत्यंत आवश्यक है | विद्या-ग्रहण करने के मार्ग में अनेक बाधाएँ सामने आती हैं | उनमें सबसे बड़ी बाधा है – व्यवस्था | छात्र अपनी दिनचर्या को निश्चित व्यवस्था में नहीं ढाल पाते | कभी-कभी वे व्यवस्था बनाते भी हैं तो उसका पालन नहीं करते | अन्य आकर्षण, चलचित्र, दूरदर्शन के कार्यक्रम, खेल, मनोरंजन, गप्पे, आलस्य, कामचोरी आदि शत्रु उसे मार्ग से भटका देते हैं | इन शत्रुओं से लड़ने का एकमात्र उपाय है – कठोर अनुसाशन | महात्मा गाँधी कहते थे – “अनुशासन अव्यवस्था के लिए बही काम करता है तो तूफान और बाढ़ के समय किला और जहाज़ |”

आज दुर्भाग्य से शिक्ष्ण-संस्थाओं में अनुशासन्हीनता का बोलबाला होता जा रहा है | अधिकतर सरकारी विद्यालयों में किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं दिखाई देती | न अध्यापक कक्षा में पढ़ाने में रूचि लेते हैं, न अधिकारी अनुशासन को महत्व देते हैं | परिणामस्वरूप इनके कारण विद्या-प्राप्ति का मूल लक्ष्य ही नष्ट होता जा रहा है |

अनुसासन-एक महत्वपूरण जीवन-मूल्य – वास्तव में अनुशासन में रहना एक सवभाव है, एक आदत है | यह जीवन जीने का ढंग है | जिस प्रकार मनुष्य गंदगी में नहीं रह सकता, उसी भाँती सभ्य मनुष्य बिना अनुशासन के नहीं रह सकता | आज सभ्यता और अशभ्यता की पहचान ही यही रह गई है – अनुशासन |




मेरा आदर्श अध्यायक

मेरे आदर्श अध्यायक – बचपन से अब तक मैं अनेक अध्यापकों के संपर्क में आया हूं | प्राय: सभी ने मुझे प्रभावित किआ है | परंतु जब मैं अपने आदर्श अध्यापक की खोज करने निकलता हूँ तो मुझे श्री विजयेंद्र जैन का स्मरण ही आता है |

परम स्न्नेही – विजयेंद्र जैन की सबसे बड़ी खूबी यही थी कि वे सब विदेयार्थों से मित्रवत स्नेह रखते थे | वे उनके जीवन में पूरी रूचि लिया करते थे | वे छात्र को अपने पास बुलाकर उसमें अद्दभुत प्रेरणा भर दिया करते थे |

सहयोगी – श्री विजयेंद जैन स्वभाव से ही सहयोगी थे | उनकी आदत थी कि वे छात्रों को भिन्न-भिन्न शेत्रों में जाने के लिए प्रोत्साहित किआ करते थे | आज के युग में छात्रों के लिए इतना करके वाला अध्यपाक ढूंढने से भी नहीं मिलता | उसके सभी छात्र उनके प्रशंसक हैं |

विषय-विशेषज्ञ – श्री विजयेंद्र जैन वनस्पतिशास्त्र के अध्यापक थे | वे अपने विषय में पारंगत थे | वे अपने विषय को कुशलतापूर्वक पढ़ाया करते थे | उनका पढ़ने का ढंग अत्यंत सरल तथा विन्रम था | वे बातचीत की शैली में समझाया करते थे | श्री जैन स्वयं बहुत अध्ययनशील थे | खली समय में हम उन्हें अध्ययन करता हुआ ही देखते थे |

गंभीर और अनुशासनप्रिय – श्री जैन गंभीर और अनुशंप्रिय व्यक्ति थे | वे कभी फालतू बातें नहीं किया करते थे | उनका एक-एक शब्द तुला हुआ होता था | सभी छात्र उनके बचनों का सम्मान करते थे | जैसे वे खुद मितभाषी थे, वैसे ही वे छात्रों से अपेक्षा किया करते थे | वे अपने जीवन में अत्यंत अनुशासित थे | वे कक्षा में कभी देरी से नहीं आए | कभी बिना पढ़ाय कक्षा नहीं छोड़ी |

सादगी, दृढ़ता और सच्चाई – श्री विजयेंद्र जैन सादगी, दृढ़ता और सच्चाई की मूर्ति थे | उनका पहनावा सीधा था | बच्चे उनकी सादगी पर मोहित थे | शायद ही हमारा ध्यान कभी उनके वस्त्रों पर गया हो | उनके मन में सच्चाई का वास था | उनोंहने कभी नक़ल को परोत्साहन नहीं दिया | कितने ही छात्र उनके करीब थे, परंतु किसिस ने उसके सामने नक़ल करने की हिम्मत नहीं की |

हमारा दुर्भाग्य है किवे आज हमारे बीच में नहीं है | परंतु उनकी याद हरेक छात्र के दिल में समाई हुई है | 
ऐसे थे मेरे आदर्श अध्यापक, जिनकी कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता | वे अपनी मिसाल आप ही थे |




आदर्श विद्यार्थी

अर्थ – ‘विद्यार्थी’ का अर्थ है --’ विद्या  प्राप्त करने वाला | ‘ किसी भी प्रकार की विद्या या कला या शास्त्र शीखने में लगा हुआ व्यक्ति विद्यार्थी है |

विद्यार्थी’ के गुण – विद्यार्थी का पहला और सबसे आवश्यक गुण है – जिज्ञासा | जिसे कुछ जानने की इच्छा ही न हो, उसे कुछ भी पढ़ाना व्यर्थ होता है | जिज्ञासा-शून्य छात्र उस औंधे घड़े के समान होता है जो बरसते जल में भी खाली रहता है |

लगन और परिश्रम – विद्यार्थी का दूसरा महत्वपूरण गुण है – परिश्रमी होना | परिश्रम के बल पर मंध्बुधि छात्र भी अच्छे-अच्छे बुद्धिमान छात्रों को पछाड़ देते हैं | इसलिए छात्र को परिश्रमी होना अवश्य होना चाहिए | जो परिश्रम की वजाय सुख-सुविधा, आराम और विलास में रूचि लेता है, वह दुर्भगा कभी सफल नहीं हो सकता |

सादा जीवन, उच्च विचार – विद्यार्थी के लिए आवश्यक है कि वह आधुनिक फैशनपरस्ती, फ़िल्मी दुनिया या अन्य रंगीन आकर्षणों से बचे | विद्यार्थी को इसे मित्रों के साथ संगति करनी चाहिए, जो उसी के समान शिक्षा का उच्च लक्ष्य लेकर चले हों |

श्रद्धावान एवं बिनयी – संस्कृत की एक शुक्ति का अर्थ है – श्रद्धावान को ही ज्ञान की प्राप्ति होती है | जिस छात्र के चित में अपने ज्ञानी होने का घमंड भरा रहता है, वह कभी गुरुओं की बात नहीं सुनता | जो छात्र अपने अध्यापकों तथा अपने से बुद्धिमान छात्रों का सम्मान नहीं करता, वह कभी फल-फूल नहीं सकता |

अनुशासनप्रिय – छात्र के लिए, अनुशासनप्रिय होना आवश्यक है | अनुशासन के बल पर ही छात्र अपने व्यस्त समय का सही सदुपयोग कर सकता है | मनचाही गति से चलने वाले छात्र अपना समय इधर-उधर व्यर्थ करते हैं, जबकि अनुशासित छात्र समय पर पड़ने के साथ-साथ हँस-खेल भी लेते हैं |  

स्वस्थ तथा बहुमुखी प्रतिभावान – आदर्श छात्र पढाई के साथ-साथ खेल-व्ययाम और अन्य गतिविधियों में भी बराबर रूचि लेता है | कहलों से उसका शरीर स्वस्थ बना रहता है | अन्य गतिविधियों-भाषण, नृत्य, संगीत, कविता-पाठ, एन.सी.सी. आदि में भाग लेने से उसका जीवन विकसित होता है |

उच्च लक्ष्य – आदर्श छात्र वाही है जो अपनी विद्या-बुद्धि का उपयोग अपने तथा अपने समाज के विकास के लिए करना चाहता हो | सुभाष चंद्र बोस कहा करते थे—‘’विदेयार्थियों का जीवन-लक्ष्य न केवल परीक्षा में उतीर्ण होना या स्वर्ण-पदक प्राप्त करना है अपितु देश-सेवा की क्षमता एवं योग्यता प्राप्त करना भी है |”




आदर्श नागरिक 

आदर्श नागरिक का अर्थ – ‘आदर्श नागरिक’ से तात्पर्य है – एसा देशवासी, जिसका व्यवहार देश के ; तथा देशवासिओं के हित में हो |

नागरिक तथा देश का अभिन्न संबंध – नागरिक और देश एक-दुसरे से पूरी तरह जुड़े हुए हैं | किसी देश के नागरिक ही उसका मान-सम्मान बढ़ाते या घटाते हैं | नागरिकों से ही देश की पहचान बनती है |

देश के नियमों और कानूनों का पालनकर्ता – आदर्श नागरिक वह है जो अपने देश के सभी नियमों-कानूनों का पूरी तरह पालन करने का तात्पर्य है, वह कानून को धोखा देने की कोशिश ण करे | कानून सभी नागरिकों की सामूहिक इछ्दा को दयां में रखते हुए बनाय जाते हैं | अतः नागरिकों को चाहिए कि वे अपने पर संयम रखते हुए उन नियमों का पूरी तरह पालन करें |

अधिकार और कर्तव्य का संतुलन – केवल कर्तव्य-पालन या केवल अधिकार-भोग-दोनों गलत हैं | कर्तव्य का पालन करने वाला नागरिक श्रेष्ठ होता है | परंतु अधिकारों के प्रति सजग होना भी उसकी खूबी है | नागरिकों को चाहिए कि वे देश से मिलने वाली सुविधाओं में नियमानुसार अपना हिस्सा माँगे | उन्हें राज्य से मिलने वाली सहायता, सड़क, बिजली, पानी आदि की मूल सुविधा-असुविदा के लिए अपनी आवाज़ उठानी चाहिए |

इतिहास उदाहरण है कि महात्मा गाँधी को महान बनाया इसी जागरूकता ने | यदि वे राज्य दुवाना किए गए अन्याय का विरोध न करते तो आज भारत आज़ाद न होता |

राज्य का गौरव बढ़ाने में योगदान – अच्छा नागरिक अपने गुण, धर्म, शक्ति, बुद्धि का निवास करके राज्य का गौरव बढ़ाता है | जहाँ दारासिंह जैसे पहलवान, खुराना जैसे वैज्ञानिक, रफ़ी जैसे गायक, ध्यानचंद जैसे खिलाड़ी, सुष्मिता जैसी सुन्दरियाँ, शंकुंतला देवी जैसी गणितज्ञ, लता जैसी प्रतिभाएँ, पी.टी. ऊषा जैसी धाविकाएँ, सचिन जैसे क्रिकेटर, अमिताभ जैसे अभिनेता, मेधा पाटेकर जैसे समाज-सेवी हों, उस देश का सम्मान अपने-आप बढ़ता है | अतः देश के प्रत्येक नागरिक को चाहिए कि वह अपनी शक्ति को उंचाइयों की और ले जाए जिससे पुरे देश का नाम ऊँचा हो |




भारतीय गाँव और महानगर 

नगर और गाँव की तुलना – भारतीय गाँव महानगर में वही संबंध होते है, जो सीधे-सादे बूढ़े बाप और उनकी अल्ट्रा माडर्न संतान में होता है | गाँव शहरों की सींचते हैं, उने धन, श्रम, माल देते है ; परंतु शहर फिर भी गाँव की और ताकते तक भी नहीं |

गाँव के सुख – भारत की अधिकांश जनता गाँव में रहकर  खेती करती है | गाँव में प्रकति का साथ रहता है | लंबे-चौड़े खेत, बाग़-बगीचे, कोयल की कुक, सर्दी-गर्मी-बरसात का पूरा आनंद ग्रामीण जीवन में ही लिया जा सकता है | प्रकति की गोद में प्रदुषण का नहीं, हरियाली, सवाच्छ्ता और सवास्थ का साम्राज्य रहता है |

गाँव के दुःख – दुर्भाग्य से आज गाँव में आभाव ही आभाव हैं | न सड़कें, न बिजली, न पानी, न आधुनिक वस्तुएँ | सब चीजों के लिए शहरों की और ताकना पड़ता है | डॉक्टरों के नाम पर नीम-हकीम या आर.एम.पी. ; सकूलों के नाम पर अनाथालय से विद्यालय, सफाई के नाम पर कूडे के ढेर, गोबर और कीच से लथपथ जिंदगी को देखकर सचमुच वहाँ रहने का मन नहीं करता |

महानगरों के सुख – महानगरों के पास सरे सुख-साधन तो हैं परंतु फिर भी यहाँ का आदमी सुखी नहीं है | यहाँ निरंतर संधर्ष, होड़, इर्षा, षड्यंत्र, दुर्घटना का बोलबाला है | यहाँ के सभी निवासी ऊँचे उठने योर उड़ने के लिए आतुर हैं | इसके लिए आपसी खींचतान और स्वार्थ का जमकर प्रदर्शन होआ है | महानगरों में रिश्तों के मधुर संबंध गायब हो गए हैं | च्कचोंध के मरे लोग आत्मीयता और सनेह का रस खो बैठे हैं |

प्रदषण – महानगरों में बढता हुआ प्रदषण और बढती हुई दुर्घटनाएँ और भी चिंता का कारण हैं | धुएँ, शोर और कृत्र्मिता के कारण महानगरों में खान-पान, रहन-सहन पवित्र नहीं रह गया है | रोज ढेर सारा धुआँ और पेट्रोल हमारी सांसों में चले जाता है | सड़कों पर भीड़ इतनी बढ़ गई है कि नित्य जानलेवा दुर्घटनाएँ बढ़ रही हैं |

निष्कर्ष – बास्तव में गाँव और महानगर – दोनों के अपने-अपने सुख और दुःख हैं | यदि गावों में महानगरों की सुख-सुविधाएँ बढ़ा दी जाएँ और महानगरों में गाँव की सहजता, सादगी, आत्मीयता उत्पन्न कर दी जाय तो दोनों जगहें आनंदमयी हो सकती हैं |



भारतीय किसान 

कृषक-संस्कृति – गाँधी जी कहा करते थे –“भारत की संस्कृति कृषक-संस्कृति है ----- भारत का ह्रदय गाँवों में बसता है | गाँवों में ही सेवा और परिश्रम के अवतार किसान बसते हैं |  ये किसान नगर्वसियों के अन्नदाता हैं, सृष्टिपालक हैं |”

सादगी को महत्व – भारतीय किसान सीधा-सादा जीवन-यापन करता है | सादगी का यह गुण उसके तन से ही नहीं, मन से भी झलकता है | सच्ची बात को सीधे-सादे शब्दों में कहता उसका स्वभाव है |

परिश्रमी जीवन – भारतीय किसान बड़ा कठोर जीवन जीता है | वह धरती की छाती को अपने परिश्रम के जल से सींचता है | गर्मी की लू, सर्दी की ठंडी रातें, वर्षा की उमड़ती-घुमड़ती घटाएँ उसका रास्ता रोकती हैं किंतु वह किसी की परवाह नहीं करता | हर मौसम में अविचल रहकर कर्म करना उसका सवभाव है |

ह्रष्ट-पुष्ट – किसान शरीर से ह्रष्ट-पुष्ट रहता है | माँ धरती और प्रक्रति की गोद में खेलने के कारण न उसे बिमारियाँ घेरती हैं, न मानसिक परेशानिया |

गरीबी – भारत के अधिकांश किसान गरीबी में जीते हैं | उनके पास थोड़ी ज़मीन है | छोटे किसान दिन-भर मेहनत करके भी भरपेट खाना नहीं कमा पाते | उनके पास खेती के उन्नत साधनों का आभाव रहता है |

किसान की दुर्दशा के कारण – अधिकांश किसान निरक्षर हैं | अज्ञान के कारण वे ओंध्विश्वासों में आस्था रखते हैं | परिणामस्वरुप उसका परिवार बढता जाता है और ज़मीन कम होती जाती है | किसान के अज्ञान के कारणही व्यापारी लोग उन्हें आसानी से लुट लेते हैं |

किसानों की दशा में सुधार – किसानों की दशा मेंसुधार लाने के अनेक उपाय हैं | कृषि को बैंक, सरकार तथा सार्वजानिक संस्थाओं द्वारा मदद दी जाए | किसानों को उन्नत बीज, खाद, कीटनाशक सस्ते दामों पर उपलब्ध कराए जाएँ | उनके बच्चों को सस्ती शिक्षा दी जाय | उनके उत्पादन को ऊँचे दामों पर बेचने का प्रबंध किया जाय | सोभाग्य से भारत की सरकार ये कदम उठा रही है | आशा है, आज का अन्नदाता किसान कल स्वयं भी खुशहाल होगा |




भारतीय मज़दूर 

भारतीय मज़दूर का चित्र – दुख, दरिद्रता, भूख, आभाव, कष्ट, मज़बूरी, शोषण और अथक परिश्रम-इन सबको मिलां दे तो भारतीय मज़दूर की तस्वीर उभर आती है |

भारतीय मज़दूर की मज़बूरी – कोई प्राणी खुश होकर मज़दूर नहीं बनता | भारतीय मज़दूर तो और भी विवश है | उसका इतना अधिक शोषण होता है की वे मुश्किल से दो वक्त का भोजन कर पते हैं | भारत में जनसंख्या इतनी अधिक है कि ढेर सारे मज़दूर खाली रह जाते हैं | परिणामस्वरूप मज़दूरी सस्ती हो जाती है | अब सरकार मज़दूरों के हितों का ध्यान रखते हुए उनका न्यूनतम वेतन तय कर देती है | इससे उन्हें काफी राहत मिलती है |

घोर परिश्रमी – भारतीय मज़दूर का जीवन घोर परिश्रम की कहानी है | वह मुँह-अँधेरे जागता है तथा दिन-भर हाड़-तोड़ परिश्रम करता है | प्रात : 8 से सांय 5 बजे तक अथक शरीरक परिश्रम करने से उनका तन चूर-चूर हो जाता है | उसके पास इतनी ताकत कठिनता से बचती है कि वः आराम की जिंदगी जी सके |

अज्ञान और अशिक्षा – अधिकांश मजदूरों के बच्चे अज्ञान और अशिक्षा में पहले हैं | मज़दूर स्वयं पढ़े-लिखे नहीं होते | न ही उसके पास पढाई के लिए धन और अवसर होता है | इक कारण वे अज्ञान, अशिक्षा और अंधविश्वास में जीते हैं | अज्ञान के ही कारण वे पढ़े-लिखों की दुनिया में ठगे जाते है | डॉक्टर उन्हें अधिक मुर्ख बनाते हैं | दुकानदार भी उनसे अधिक पैसे वसूलते हैं | बस या गाड़ी कहीं भी हों ऊँचे सम्मानपूर्वक बैठने भी नहीं दिया जाता |

प्रसन्नता के शण – मज़ुदुरों की सुखी ज़िंदगी में सुख के हरे-भरे शण तब दिखाई पड़ते है, जब वे रात्रि में ढोलक की ताल पर कहीं नाचते-झूमते नज़र आते हैं यापने देवता के चरणों में गन करते दिखाई देते है |

उत्थान के उपाय – मजदूरों की दशा में सुधार लाने के लिए अनेक मज़दूर-संगठन कार्य कर रहे है | उनके कारण मज़दूरों में नई चेता भी आई है | अभी इस शेत्र में और भी सुधार होने आवश्यक हैं | इसके लिए मजदूरों को संघर्ष करना पड़ेगा |




भारत की राजधानी

दिल्ली-महत्वपूरण नगर – भारत की राजधानी दिल्ली को लोग ‘भारत का दिल’ कहते हैं | भारत की राजधानी अनेक समस्याओं, संस्कृतियों, युगों, बोलीओं, जीवन-सत्रों का संगम है और पुरे भारत की धड़कन है |

सम्पूर्ण भारत की प्रतिनिधि – दिल्ली में हर प्रदेश, प्रांत, जिले, नगर, बोली, भाषा, धर्म, संस्कृति, कला और ज्ञान का संगम मिल जाएगा | एक प्रकार से दिल्ली में पुरे भारत के दर्शन किए जा सकते हैं | यह ‘लघु भारत’ तो है ही, विश्व की प्रमुख संस्कृतियाँ, भी इसकी गोद में खोलदी नज़र अति हैं | 

हलचल से भरी नगरी – दिल्ली वास्तव में दिल की धड़कन है | भारत में कही कोई घटना-दुर्घटना हो, उसकी धड़कन दिल्ली के गलियारों, सड़कों, चोरहों और दीवारों पर नजर अ जाती है | विश्व-कप खेल हों, जैक्सन के अन्तर्राष्ट्रीय शो हों, विश्वविख्यात प्रदर्शनियाँ हों, वैज्ञानिक करिश्मे हों, सबके सब दिल्ली को अपना रूप-वैभव दिखाकर प्रसन्न होते हैं | इस कारण दिल्लीवासियों का जीवन उत्सव-जैसा बीतता है |

शिक्षा की अग्रणी – दिल्ली में शिक्षा के श्रेष्ठतम संसथान उपलब्ध हैं | भारत की सभी विद्याएँ यहाँ के विश्व्विधायलों में पदाई जाती है | यहाँ तक कि विश्व की अनेक भाषाएँ तथा ज्ञान की शाखाएँ भी यहाँ रहकर सीखी जा सकती हैं |

मनोरंजन का खज़ाना – मनोरंजन के शेत्र में दिल्ली के पास अनंत साधन हैं | बुद्ध-जयंती उपवन, लोधी उपवन, नेहरु गार्डन, राष्ट्रपति उद्धान, कालिंदी कुंज यहाँ के प्रसिद्ध उपवन हैं | लालकिला, जामा मसजिद, बिड़ला मंदिर, जंतर-मंतर, क़ुतुब मीनार, चिड़ियाघर, अप्पूघर, राष्ट्रीय संग्रहालय, बाल-भवन आदि ऐसे अनगिनत भवन यहाँ के निवासियों का नित्य मनोरंजन करते हैं | इसके अतिरिक्त मंडी हाउस, सप्रू हाउस जैसे विकसित नाट्य-ग्रृह, विज्ञान-भवन जैसे सभा-ग्रृह, विभिन्य प्रदर्शनियाँ और प्रदर्शनी-स्थल मंत्र-मुग्ध कर देते हैं | सचमुच दिल्ली मनोरंजन का जुलाई पिटारा है |

व्यापर और तकनीक – दिल्ली में चाँदनी चौक, कनाट प्लेस, पालिका बाज़ार, साउथ एक्सटेशन, करोल बाग़ जैसे अति व्यस्त, भव्य और आधुनिकतम बाज़ार हैं जहाँ विश्व की प्र्तियेक वास्तु मिल जाती है | ऐसी बात नहीं कि दिल्ली केवल अमीरों के लिए हो | गरीब लोग पटरियों, रविवारीय बाज़ारों से सस्ते दामों पर माल खरीद पाते हैं |




गणतंत्र दिवस 

गणतंत्र दिवस का अर्थ – हम 26 जनवरी का दिन समूचे भारत के लिए राष्र्टीय उल्लास का संविधान बनकर लागु हुआ | भारत ने अपने देश में ‘राजतंत्र’ की बजाय ‘गणतंत्र’ लागु किया | इसलिए 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस कहा जाता है |

राष्ट्रीय उल्लास का दिन – 26 जनवरी का दिल समूचे भारत के लिए राष्ट्रीय उल्लास का दिन माना जाता है | इस दिन सबी राज्य सरकारों तथा केंद्रीय सर्कार अपनी-अपनी राजधानियों में शानदार उत्सव मानती है | सभी जिला मुख्यालयों में तथा राष्ट्रिय महत्त्व के कार्यालयों में राष्ट्रय ध्वज फहराया जाता है |

दिल्ली का उत्सव – 26 जनवरी की प्रातः दिल्ली के विजय-चौक से समारोह का आरंभ होता है | सर्वप्रथम राष्ट्रपति समारोह-स्थल पर ध्वजारोहण करते हैं | उन्हें 31 तोपों की सलामी देकर यह विश्वास दिलाया जाता है कि भारत की तीनों सेनाएँ अपने कर्तव्य को निभाने के लिए सदा तैयार हैं | पुष्प-वर्षो के बीच राष्ट्रपति जल, थल , वायु सेनाओं का अभिवादन स्वीकार करते हैं |

सैन्य-प्रदर्शन – दिल्ली के उत्सव पर भारतीय सैनिक शानदार सैन्य-प्रदर्शन करके भारतवासियों का मन मोह लेते हैं | भरपूर शाश्त्र-अस्त्र और आकर्षक वेशभूषा से सजे सैनिक जब पुरे अनुशासन में परेड करते हैं तो देशवासियों का सीना गर्व से फूल उठता है | इस दिन वायु सेन के लड़ाकू जहाज़ अपनी जाबाजी अदभुत प्रदर्शन करते हैं | विभिन्न नए टेंकों व शस्त्रास्त्रों का प्रदर्शन किया जाता है |

स्कूलों तथा कॉलजों के छात्र-छात्राएँ भी इस दिन अपनी संगठित शक्ति का परिचय देते हैं | एन.सी.सी., एन.एस.एस. के जवान यह विश्वास दिलाते हैं कि देश की नई पीढ़ी भी देश का भार सँभालने के लिए तैयार करते हैं | 

संस्कृतिक कार्यक्रम तथा झाकियाँ -  26 जनवरी के उत्सव पर विभिन्न प्रांत अपने-अपने प्रांत की प्रगति, संस्कृत, सभ्यता और विशेषता को दर्शाते हुए झाकियाँ निकलते है | विभिन्न प्रदेशों की नृत्य-मंडलियाँ अपने मोहक नृत्य दिखाकर उत्सव में उल्लास भर देती हैं | इस दिन राष्ट्रपति विभिन्न शेत्रों में महत्वपूरण कम करने वालों को पुरस्कार से सम्मानित करते हैं | इस दिन को उत्साह से मानना हर नागरिक का राष्ट्रिय कर्तव्य है | 


Thursday, September 22, 2016



राष्ट्रीय एकता 

एकता में बल है – हिंदी के कहानीकार सुदर्शन लिखते है – “ओस की बूंद से चिड़िया भी नहीं भीगती किंतु मेंह से हाथी भी भीग जाता है | मेंह बहुत कुछ कर सकता है |” शक्ति के लिए एकता आवश्यक है | विखराव या अलगाव शक्ति को कर करते है तथा ‘एकता’ उसे मज़बूत करती है |

राष्ट्र के लिए ‘एकता’ आवश्यक – किसी भी राष्ट्र के लिए एकता का होना अत्यंत आवश्यक है | भारत जैसे विविधताओं भरे देश में तो राष्ट्रिय एकता ही सीमेंट का कम कर सकती है | पिछले कई वर्षो से पाकिस्तान भारत में हिन्दू-सिख या हिन्दू-मुसलमान का भेद खड़ा करके इसी सीमेंट को उखाड़ना चाह रहा है | अंग्रेजों ने हिन्दू और मुसलमान का भेद खड़ा करके भारत पर सैंकड़ो वर्ष तक राज किया | परंतु जब भारत की भोली जनता ने अपने भेद-भाव भुलाकर ‘भारतीयता’ का परिचय दिया, तो विश्वजयी अंग्रेजों को देख छोड़कर वापस जाना पड़ा |

एकता के बाधक तत्व – भारत में धर्म, भाषा, प्रांत, रंग, रूप, खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार की इतनी विविधता है किइसमें राष्ट्रिय एकता होना कठिन काम है |कहीं प्रांतवाद के नाम पर कश्मीर, पंजाब, नागालैंड, गोरखालैंड आदि अलग होने की बात करते है | कहीं हिंदी और अहिंदी प्रदेश का झगड़ा है | कही उत्तर-दक्षिण का भेद है | कहीं मंदिर-मस्जिद का विवाद है |

एकता तोड़ने के दोषी – राष्ट्रय एकता तोड़ने के वास्तविक दोषी हैं – राजनीतक नेता | वे अपने वोट-बैंक बनाने के लिए किसी को जाती के नाम पर तोड़तें है, किसी को धर्म, भाषा, प्रांत, पिछड़ा-अगड़ा, स्वर्ग-अव्रण के नाम पर |

एकता के तत्व – भारत के लिए सबसे सुखद बात यह है कि यहाँ एकता बनाए रखने वाले तत्वों की कमी नहीं है | राम-कृष्ण के नाम पर जहाँ सारे हिन्दू एक हैं, मुहम्मद के नाम पर मुसलमान एक हैं ; वहाँ गाँधी, सुभाष के नाम पर पूरा हिंदुस्तान एक है | आज जब कश्मीर पर सकंट घिरता है तो केरलवासी भी व्यथित होता है | पहाड़ों में भूकंप आता है तो सुचना भारत उसकी सहायता करने को उमड़ पड़ता है | जब अमरनाथ-यात्रा में फँसे नागरिकों को मुसलमान बचाते हैं, दंगों के वक्त हिन्दू पडोसी मुसलमानों को शरण देते है |

एकता दृढ़ करने के उपाए – राष्ट्रिय एकता को अधिक दृढ़ करने के उपाए यह है कि भेद्वाव पैदा करने वाले सभी कानूनों और नियमों को समाप्त किया जाय | सारे देश में एक ही कानून हो | अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन दिया जाय | सरकारी नोक्रियों में अधिक-से-अधिक दुसरे प्रान्तों में स्थानांतरण हों ताकि समूचा देश सबका साझा बन सके | सब नजदीक से एक-दुसरे का दुःख-दर्द जन सकें | राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन देने वाले लोंगो और कार्यों को आदर दिया जाये | कलाकारों और साहित्यकारों को एकता-वर्द्धक साहित्य लिखना चाहिए | इस पुनीत कार्य मैं समाचार-पत्र, दूरदर्शन, चलचित्र बहुत कुछ कर सकते हैं |





सैनिक की आत्मकथा

परिचय – मैं भारतीय थल सेना का जवान हूँ |नाम है – बलवान सिंह | मैं दिल्ली के गाँव में जन्मा तथा मधुबन (करनाल) के सैनिक स्कूल में पढ़ा | मेरी माँ बतलाती है के जिस दिन मेरा जानल हुआ, उसी दिन मेरे पिता भारत-पाक युद्ध से सफल होकर लोटे थे | मेरे सैनिल पिता को बड़ा था कि मैं सैनिक बनूँ |

प्रशिक्षण – जब मैं अठारह वर्ष का हुआ, मेरे पिता ने मुझे थल-सेना में भर्ती करा दिया |मैं शरीर से सवास्थ, सुगठित और मजबूत था ही | अतः मुझे शीघ्र ही चुन लिया गया | प्रशिक्षण के खाते-मीठे अनुभव मुझे आज भी याद हैं | मुझे सैनिक-प्रशिक्षण में तो खूब आनंद आता था, परंतु माँ-बाप से अलग रहने के कारण मन बहुत उदास रहता था |

कार्य के दौरान अनुभव – कठोर प्रशिक्षण के उपरांत मेरी पहली नियुक्ति जालंधर छावनी में हुई | उन दिनों पंजाब का आतंकबाद फन फैलाय खड़ा था | सैनिक-असैनिक कोई सुरक्षित नहीं था | ऐसे भयानक दिनों में रात-रात भर अकेले सड़क पर बदूंक ताने घूमना खतरे का काम था, परंतु मैंने तो यही सोच रखा था –

जिसने मरना सिख लिया है जीने का अधिकार उसी को |
जो काँटों के पथ पर आया, फूलों का उपहार उसी को ||
     ड्यूटी के दौरान मैंने लेह के बर्फीले इलाकों का भी आनंद 

लिया है और जेसलमेर की तपती बालू का भी | चुनावों के दौरान हमें एक स्थान से दुसरे स्थान पर जाना पड़ता है |

ज़िंदगी-एक दीवानगी – हम सैनिकों की ज़िंदगी में एक अजब दीवानापन होता है | हमारी किसी साँस का भरोसा नहीं | मौत हर दम हमारे नाचती है किंतु हम दीवाने उससे खेल खेलते हैं | हमारे सैनिक मित्र आपस में मिलकर हँसकर ज़िंदगी काट लेते हैं | हम कहीं भी हों, मस्ती हमारा साथ नहीं छोड़ती |

देश-प्रेम – हमारे जीवन में देश-प्रेम का नशा छाया रहता है | जब हम किसी नगर की अशांति को शांति में बदलकर विदा होते हैं तो मन में संतोष पैदा होता है | जब विपति में फँसे बाढ़-पीड़ितों या दुर्घटना-पीड़ितों को सहायता पहुँचाते हैं तो भी हमें आनंद मिलता है |

अनुशासन और कर्तव्य हमारा धर्म – मैं सैनिक हूँ | अनुशाशन और कर्तव्य-पालन मेरा धर्म है | चाहे काँटे हों या फूल, पत्थर हों या धुल, मुझे देश-सेवा में जुटना ही है | मेरे जीवन की एक ही आकांशा है –

न चाहुँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना |

यही वर दो मुझे माता, रहूँ भारत का दीवाना || 



मेरा प्यारा भारत देश 

भारत : हम सबका प्रिय – सभी प्राणी अपनी जन्मभूमि को जन से भी पियारा मानते हैं तथा उसी की सबसे सुंदर मानते हैं | हम भारतवासियों के लिए भी हमारा भारत सबसे प्रिय है |

प्राकृतिक सौंदर्य – प्राकृति ने भारत की देह का निर्माण एक सुंदर देवी के रूप में क्या है | हिमाचल की बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ उसका सुंदर मुकुट है | अटक से कटक तक फैली उसकी विस्तुत बाहें है | कन्याकुमारी उस देवी के चरण हैं जो तीन ओर से घिरे समुंद्र में विहार करने का निरंतर आनंद ले रहे है | गंगा-यमुना की धाराएँ उस देवी की छाती से निकलने वाला अमृत है जिसका पान करके देश के एक अरब पुत्र धन्य होते है |

विविधताओं का सागर – भारतवर्ष विविधताओं का जादू-भरा पिटारा है | इसमें पहाड़ियाँ भी है, समुंद्र भी ; जल-पूरित प्रदेश भी हैं तो सूखे रेगिस्तान भी ; हरियाली भी है ; उजाड़ भी ; तपती लू भी है तो शीतल हवाएँ भी ; बीहड़ वन भी हैं तो विस्तुत मैदान भी ; यहाँ वसंत भी है तो पतझड़ भी | यहाँ खान-पान, रहन-सहन, धर्म-साधना, विचार-चिंतन किसकी विविधता नहीं है ? यही विविधता हमारी शान है, हमारी समृद्धि का कारण है |

धन और ज्ञान का भंडार – भारतवर्ष को ज्ञान के कारण ‘जगद्गुरु’ तथा धन-वैभव के कारण ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था | भारत में जितने खनिज भंडार हैं, उतने अन्य किसी देश में नहीं | हमारी इसी संपति को लुटने के लिए लुटेरे बार-बार भारत पर आक्रमण करते रहे | आज भी भारत की कोख रत्नों से खली नहीं हुई है |

ज्ञान के क्षेत्र में सारा विश्व भारत का ऋणी है | शून्य और गणना- पद्धति भारतवर्ष की दें है | इसी पर विज्ञान की सारी सभ्यता टिकी हुईं है | यहाँ के शिल्प, कला- कौशल, ज्योतिष- ज्ञान विश्व भर को आलोक देते रहें हैं |  

सत्य, अध्यात्म और अहिंसा की धरती – भारत के लिए सबसे अधिक गौरव की बात यह है कि इस धरती ने विश्व को सत्य, अहिंसा धर्म और सर्वधर्मसमभाव का संदेश दिया | भारत में जैन, बोद्ध, हिन्दू जैसे विशाल धर्मो ने जनम लिया किंतु कभी दुसरे देश पर जबरदस्ती अधिकार करने का यत्न नहीं किया | यहाँ तक कि हमने आज़ादी की लड़ाई भी अहिंसा के अलौकिक अस्त्र से जीती | विशव की सभी समस्याओं पर विचार करने और उसका शंतितुर्ण हल धुंडने में भी भारत अग्रणी रहा है | आज भी अगर विशव-भर को शांति चाहिए तो उसे भारत की शरण में आना होगा |



देश-प्रेम

देश-प्रेम का अर्थ – देश-प्रेम का अर्थ है-देश से लगाव | मनुष्य जिस देश में जनम लेता है, जिसमें निवास करता है, जिसका अन्न खाकर बड़ा होता है, उसके प्रति लगाव होना स्वाभाविक है |

देश-प्रेम में त्याग – सच्चा देश-प्रेमी के लिए अपना तन-मन अर्पित कर देना चाहता है | अमेरिका के देशभक्त राष्टरपति अब्राहिम लिंकिन ने देशवासियों को यही संदेश दिया था – “मेरे देश्वासियो ! यह मत सोचो कि अमेरिका ने तुम्हारें लिए क्या किया है | तुम यह सोचो कि तुमने अमेरिका के लिए किया है ?”

एक पवित्र भावना – देश-प्रेम एक पवित्र भावना है ; निस्वार्थ प्रेम है, दीवानगी है | भगतसिंह को देश-प्रेम के बदले क्या मिला फाँसी ! सुभाष को क्या मिला मौत ! गाँधी को क्या मिला गोली | फिर भी सारा राष्ट्र इन महापुरुषों के बलिदान पर नाज़ करता है | देश के लिए बलिदान हो जाने से बढकर संसार में और कोई गौरव नहीं है |

देश-प्रेमी का जीवन-देश के लिए – देश-प्रेमी के लिए सव्देश पर मर जाना ही एक ध्येय  नहीं है | उसके जीवन का एक-एक शण देश-हित में लगता है | मुंशी प्रेमचंद लिखते है – “देश का उद्धार विलासियों के हाथ से नहीं हो सकता ; उसके लिए सच्चे त्याग होना चाहिए |”

देश-प्रेमियों की गौरवशाली परंपरा – भारतवर्ष देशभक्तों, संतों, महापुरषों का जनक है | यहाँ प्रारंभ से ही चाणक्य, चन्द्रगुप्त, शिवाजी, महाराणा प्रताप, तिलक, गोखले, मालवीय, आज़ाद, सुभाष आदि न जाने कितने महापुरषों ने बड़-चड़कर देश-प्रेम का परिचय दिया है | रानी लक्ष्मीबाई, सरोजिनी नायडू आदि नारियों ने देश-प्रेम में प्रशंसनीय भूमिका निभाई है | प्रोयोगशाला में दिन-रात एक करने वाला वेज्ञानिक, घायल-पीड़ित देशवासियों को रोग से मुकित दिलाने वाला | चिकित्सक, देश के लिए बड़े-बड़े बाँध, ताप-घर, बिजली-घर बनाने वाला इंजिनियर; ठेकेदार; व्यापारी; मजदुर; कारीगर भी देश-प्रेमी है, अगर वह हर कम में देश के गौरव को बढाने की बात सोचता है | देश को आगे बढाने की भावना से किया गया प्रत्येक कार्य देशभक्ति का पवित्र कार्य है |

देश-प्रेम-सर्वोच्च भावना – देश-प्रेम धन, दौलत, स्म्रीदी, सुख, वैभव-सबसे बड़ी भावना है | जैसे अपनी माँ गरीब, काली, करूप होते हुए भी सबसे प्यारी लगती है, उसी प्रकार अपने देश संसार भर की सुषमाओं से बढकर प्यारा लगता है |

देश-प्रेम की अनिवायर्ता – देश-प्रेम वह धागा है जिससे राष्ट्र के सभी मोती आपस में गुथें रहते है, सारे नागरिक देश से जुड़े रहते है | देश को कहीं भी चोट लगती है तो समूचे देश सिहर उठता है | अगर देशवासियों में प्रबल देश-प्रेम हो तो कोई विदेशी बुरी नजर से भारत को और आँख उठाकर नहीं देख सकता |


Wednesday, September 21, 2016



यदि मैं प्रधानमंत्री होता !

मेरी कल्पना – अगर मैं प्रधानमंत्री होता ! यदि यह कल्पना सच होती तो मैं देख का नक्शा बदल कर रख देता | मैं भारतवर्ष को मजबूत राष्ट्र बनाने के लिए जी-जान लगा देता | मैं अपनी सेनाओं को इतना मजबूत बना कि कोई भी देख हमारी सीमाओं में घुसपैठ करने का विचार ही न करता | न ही अंतरराष्ट्रीय मत की इतनी अधिक परवाह करता |

मेरी विदेश निति – मैं पड़ोसी देशों के साथ मित्र्तापुण संबंध रखता | अगर पडोसी देश हरारी दोस्ती का जवाब दुश्मनी से देता तो अवश्य ही उसकी ईंट से ईंट बजा देता | मेरा सिद्धांत यही होता –

“ह्र्दय हो प्रेम लेकिन शक्ति भी कर में प्रबल हो !”

देशद्रोह की समाप्ति – आज देख के अंदर देशद्रोहियों, भरष्टाचारियों, साम्प्रदायिक शक्तियों और शोषकों का बोलबाला है | भारत के चप्पे-चप्पे में विदेशी शत्रूओं के एजेंट छाय हुए हैं | मैं प्रधानमंत्री होता, तो इसे देशद्रोहियों को कुचलकर मरवा डालता |

भरष्टाचार पर रोक – वर्तमान भारत में भरष्टाचार का बोलबाला है | पिछले वर्षो में कितने बड़े-बड़े घोटाले हुए, किंतु किसी का भी बोल बाँका नहीं हुआ | इससे भरष्टाचार में लिप्त लोगों का उत्साह दुगुना हो गया है | अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो भरष्टाचार के विरूद्ध सखत कदम उठता | भ्रष्ट अधिकारियों को चुन-चुनकर दंड देता | ईमानदारी का व्यवहार करने वाले अधिकारयों को पुरस्कार देता |

सांप्रदायिकता पर रोक – भारत सांप्रदायिकता झगड़ो में काफी धन-बल नष्ट करता है | मेरा प्रयास होता कि सांप्रदायिक भावनाएँ न भड़कें | मैं हर प्रकार से अलाप्संख्यिकों की दुरी को कम करता | अलाप्संख्यिकों को रास्ट्रीय जीवन का अंग बनाने का प्रयास करता |

ओद्द्योगिक विकास पर बल - प्राधानमंत्री बन्ने पर मैं जनसंख्या-वृद्धि और बेरोजगारी के विरूद्ध अभियान छेड़ देता | शिक्षा, तकनीक और औधोगिक विकास के शेत्र में क्रांति ला देता | शिक्षा को रोज़गार मिलता | मैं देश के प्रतिभाशाली कलाकारों, वैज्ञानिक, खिलाडियों को पुरस्कारों से सम्मानित करता |

विदेशी संस्कृति पर रोक – आज भारत पर विदेशी संस्कृति के आक्रमण हो रहे है | महिलाओं को बाजारू संस्कृति का अंग बनाया जा रहा है | मैं इस बुरी प्रविर्ति पर रोक लगता | भारतीय संस्कृति और भारतीय मिट्टी का सम्मान बढानें के लिए हर संभव कोशिश करता |




भारत-पाक संबंध

भारत-पाक के जटिल संबंध – भर और पाकिस्तान की तुलना एक उदार पिता और उसके बिगडैल बेटे से की जा सकती है | अखंड भारत के भड़के हुए कट्टर मुसलमानों ने अलग देख की मांग की | अंग्रेजो ने पाकिस्तान नाम से एक अलग देख बनाकर दोनों को लड़ने-भिड़ने के लिए छोड़ दिया | आज तक ये दोनों देश नोचानोची करने में लगे हुए हैं |

“ हस कर लिया है पाकिस्तान 
लड़कर लेंगे हिंदुस्तान | ”

इसी आकांशा में को पालते-पालते पाकिस्तान ने 1948 में कश्मीर पर आक्रमण किया | 1965 और 1971 में युद्ध किये | तीनों बार पाकिस्तान को मुँह की खानी पड़ी | 1971 के युद्ध में तो पाक को ऐसी करारी मर पड़ी कि उसी के अपने दो टुकड़े हो गए | एक टुकड़ा बांग्लादेश के रूप में अलग देख बन गया |

पाकिस्तान की भारत-विरोधी निति – 1971 के युद्ध के पश्चात् पाकिस्तान चोट खाए सांप की भाँती कभी चैन से नहीं बैठा | उसने शीत-युद्ध जारी रखा | उसने बार-बार विश्व के देशों के समुख एक झूठ बोलने जारी रखा कि कश्मीर भारत का नहीं, पाकिस्तान का हिस्सा है | भारत ने सदा इस निति का विरोध किया |

पाकिस्तान षडयंत्र – पाकिस्तान ने भारत के हिस्से को भारत से अलग करने के अनेक षडयंत्र किए | सन 1980 से 1992  तक उसने पंजाब में आतंकबाद फ़ैलाने की कोशिश की | जब पंजाब में सफलता नहीं मिली तो कश्मीर में आतंकबाद का जल खड़ा किया | उनकी गुपत्चर एजेंसी ने आतंकबादियों को परिक्षण देकर भारत में बम-विस्फोट कराए | संसद-भारत पर आक्रमण कराए | मंदिरों में अशांति फैलाई |

भारत के शांति-प्रयास – इधर भारत अपनी शांति-निति पर अडिग रहा | भारत ने उसकी हर गलती सहकर माफ़ कर दी | पाकिस्तानी चूहे ने समझ लिया कि भारतीय हाथी कमज़ोर है | परंतु साथ ही पाकिस्तान को छोटा भाई कहते हुए दोस्ती का हाथ बड़ा दिया | अटल बिहारी वाजपेयी दुवारा बढ़ाए गए इस हाथ के अच्छे परिणाम आय | दोनों देशों के लोग आपस में क्रिकेट-हॉकी खेलने लगे | व्यापर भी करने लगे | फिल्मों तथा कविताओं का आदान-प्रदान करने लगे | आशा थी कि दोनों देश समय के साथ-साथ आपस में प्रेम से रहना सीखेंगे | परंतु मुंबई, बैंगलोर, जयपुर और अहमदाबाद बम-विस्फोट ने फिर से सिद्ध कर दिया कि पाकिस्तान पर भरोसा नहीं किया जा सकता |


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