Sunday, December 18, 2016


किसी फिल्म की समीक्षा 
‘चक दे इंडिया’ की कहानी – कल ही मुझे ‘चक दे इंडिया’ फिल्म देखने का सुअवसर मिला | इसमें मुख्य भूमिका शाहरुख खान ने निभाई है | इसकी कहानी खेल-राजनीति, खेल-भावना, सांप्रदायिक तनाव और जनता की लचर प्रतिक्रिया पर प्रश्नचिह खड़े करती है | फिल्म की कहानी इस प्रकार है – 
नायक शाहरुख खान भारतीय हॉकी टीम का कप्तान है | वह मुसलमान पठान है | पाकिस्तान के साथ खेलते हुए उसकी टीम 0-1 से पिछड़ रही है कि तभी भारतीय तेम को पैनल्टी स्ट्रोक का सुनहरा मौका मिलता है | कप्तान खान अधिक उत्साह और सावधानी में खुद स्ट्रोक लगाता है | दुर्भाग्य से निशाना चुकता है और भारत 1-0 से हार जाता है | मीडिया इस घटना को षड्यंत्र बनाकर पेश करता है | परिणामस्वरूप देश की जनता भड़क जाती है | देश भर में उपद्रव हो जाते हैं | खान के परिवार और मकान को उजाड़ डाला जाता है | वह रातोंरात गद्दार कहलाने लगता है तथा कहीं गुमनामी में खो जाता है |
सात साल बाद वह भारत की नौसिखिया महिला हॉकी टीम का कोच बनकर सामने आता है | वह देखता है कि सभी खिलाड़ने अलग-अलग प्रांतों से हैं | उनकी भाषा, आदतें और भावनाएँ भी भिन्न हैं | वह बड़ी युक्ति से उनमें भारतीयता की भावना भरता है तथा उनमें कठोर अनुशासन लाने का प्रयास करता है | टीम की सभी खिलाड़ने चिढ़ जाती हैं | उनमें आपस में भी झगड़े हो जाते हैं | वे सभी खान को कोच-पद से हटाने के लिए आवेदन कर देती हैं | खान विदाई में सबको होटल में पार्टी देता है | वहीँ एक यवक द्वारा पंजाबी खिलाड़िन को छेड़ने पर पंजाबी खिलाड़िन उसे पीट देती है | होटल में हंगामा हो जाता है | कई युवक लड़कियों की ओर झपटते हैं तो सारी टीम मिलकर युवकों को पीट डालती है | इस प्रकार उनमें एकता सुदृढ़ हो जाती है |
इस बीच हॉकी क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड तथा उनके प्रायोजक भी अड़ंगे डालते हैं | उन्हें हॉकी टीम की योग्यता पर भरोसा नहीं होता | परंतु खान उन युवतियों का मैच परुष हॉकी टीम के साथ करा देते हैं | उस मैच में लड़कियों का खेल देखकर सभी उत्साहित हो जाते हैं | वर्ल्ड कप में भारतीय टीम महला मैच 7-1 से हार जाती है | उसके बाद जीत की शुरुआत होती है जो अंत में वर्ल्ड कप जीतने तक चलती रहती है | भारत का व्ही मीडिया अब खान की पशंसा के पुल बाँध देता है |
प्रभाव,दृश्य, पात्र, सवांद – यह फिल्म पूरी तरह रोमांचक और प्रभावशाली है | इसमें हिंसा, प्रतिक्रोध, खीझ, संघर्ष, साहस, एकता, उत्साह, हार-जीत के प्रभावशाली दृश्य फिल्माए गए हैं | शाहरुख खान का व्यक्तित्व बहुत प्रभावी एवं संवेदनक्षम बन पड़ा है | लड़कियों के हाव-भाव में प्रांतीयता की तुनक, चहक और महक भरपूर है | संवाद दिल को छूने वाले हैं |
जीवन की वास्तविकता – यह फिल्म पूरी तरह यथार्थ है | मीडिया कैसे बेतुकी ख़बरों को उछालता है | जनता किस प्रकार अंधा गुस्सा और प्यार दिखाती है | खेल-राजनीति किस प्रकार गिरगिट की तरह रंग बदलती है | खिलाड़ियों में किस प्रकार प्रांतीय उन्माद पैदा होता है | कोच किन कठिनाईयों, तनावों और अपमानों का घूँट पीकर टीम-भावना को बनाए रखता है | टीम किस प्रकार हार-जीत के साथ डूबती-उतारती है – इसका फिल्मांकन बहुत कुशलता से हुआ है |
प्रेरणा – इस फिल्म से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम खिलाड़ियों के साथ सहानुभूति से व्यव्हार करें | अपनी सांप्रदायिक भावनाओं को उस पर न लादें | मीडिया जिम्मेदार बने | सबसे बढ़कर हम राष्ट्रिय एकता का व्यव्हार करें, प्रांतीयता का नहीं |


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