Friday, September 30, 2016



सामाजिक जीवन में भ्रष्टाचार

भरष्टाचार का बढ़ता स्वरूप – भारत के सामाजिक जीवन में आज भ्रष्टाचार का बोलबाला है | यहाँ का रिवाज़ है – रिश्वत लो और पकड़े जाने पर रिश्वत देकर छुट जाओ | नियम और कानून की रक्षा करने वाले सरकारी कर्मचारी सबसे बड़े भ्रष्टाचारी हैं | केवल तीन करोड़ में देश के सांसदों को खरीदना और उनका बिकना भ्रष्टाचार का सबसे शर्मनाक दृश्य है |

भ्रष्टाचार का प्रवाह ऊपर से नीचे की और बहता है | जब मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री स्वयं भ्रष्टाचार या घोटाले में लिप्त हों तो उस देश का चपरासी तक भ्रष्ट हो जाता है | यही स्थिति भारत की हो चुकी है | सरकारी कार्यलयों में बिना घुस दिए कोई काम नहीं होता | फर्जी बिल बनाए जाते हैं | बड़े-बड़े अधिकारी कागज़ों पर सड़कें, पुल आदि बनाते है और सता पैसा खुद खा जाते हैं | सरकारी सर्वेक्षण बताते हैं कि किसी भी योजना के लिए दिया गया 85% पैसा तो अधिकारी ही खा जाते हैं |

भ्रष्टाचार : एक नियमित व्यवस्था – अब तो प्रीमियम, डोनेशन, सुविधा-शुल्क या नए-नए नामों से भ्रष्टाचार को व्यवस्था का अंग बना दिया गया है | कहने का अर्थ है कि सरकार तक ने इसे स्वीकार कर लिया है | इसलिए व्यापारियों और व्यवसायियों का भी यही ध्येय बन गया है कि ग्राहक को जितना मर्जी लूटो | कर्मचारी ने भी सोच लिया है – खूब रिश्वत लो और काम से बचो |

भ्रष्टाचार : क्यों और कैसे – भ्रष्टाचार मनुष्यों की बदनीयती के कारण बढ़ा और उसमें सुधार करने से ही यह ठीक होगा | समाज के नियमों का पालन करने के लिए परिवार तथा विदयाल में संस्कार दिए जाने चाहिए | दुसरे, प्रशासन को स्वयं शुद्ध रहकर नियमों का कठोरता से पालन कराना चाहिए | हर भ्रष्टाचारी को उचित दंड दिया जाना चाहिए ताकि शेष सबको बाध्य होना पड़े | परंतु प्रशाशन अपनी जिम्मेदारी को नहीं समझ रहा | 

प्रशन यह है कि ऐसा कब हो पायगा ? यह समय पर निर्भर है | जब भी कोई दृढ़ चरित्रवान युवा नेतृत्व आर या पार की भावना से समाज जो प्रेरणा देगा, तभी यह मैली गंगा शुद्ध हो सकेगी |


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