Friday, September 23, 2016



छात्र-अनुशासन

अनुशासन का अर्थ और मह्त्व – अनुशासन की पहली पाठशाला है –परिवार | बच्चा अपने परिवार में जैसे देखते है, वैसा ही आचरण करता है | जो माता-पिता अपने बच्चों को अनुशासन में देखना चाहते हैं, वे पहले स्वयं अनुशासन में रहते है |

अनुशासन की प्रथम पाठशाला परिवार – अनुशासन की पहली पाठशाला है – परिवार | बच्चा अपने परिवार मन जैसे देखते है, वैसा ही आचरण करता है | जो माता-पिता अपने बच्चों को अनुशासन में देखते चाहते हैं, वे पहले स्वयं अनुशासन में रहते हैं |

व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के लिए अनुशासन आवश्यक – विद्यार्थी-जीवन में अनुशासन का होना अत्यंत आवश्यक है | विद्या-ग्रहण करने के मार्ग में अनेक बाधाएँ सामने आती हैं | उनमें सबसे बड़ी बाधा है – व्यवस्था | छात्र अपनी दिनचर्या को निश्चित व्यवस्था में नहीं ढाल पाते | कभी-कभी वे व्यवस्था बनाते भी हैं तो उसका पालन नहीं करते | अन्य आकर्षण, चलचित्र, दूरदर्शन के कार्यक्रम, खेल, मनोरंजन, गप्पे, आलस्य, कामचोरी आदि शत्रु उसे मार्ग से भटका देते हैं | इन शत्रुओं से लड़ने का एकमात्र उपाय है – कठोर अनुसाशन | महात्मा गाँधी कहते थे – “अनुशासन अव्यवस्था के लिए बही काम करता है तो तूफान और बाढ़ के समय किला और जहाज़ |”

आज दुर्भाग्य से शिक्ष्ण-संस्थाओं में अनुशासन्हीनता का बोलबाला होता जा रहा है | अधिकतर सरकारी विद्यालयों में किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं दिखाई देती | न अध्यापक कक्षा में पढ़ाने में रूचि लेते हैं, न अधिकारी अनुशासन को महत्व देते हैं | परिणामस्वरूप इनके कारण विद्या-प्राप्ति का मूल लक्ष्य ही नष्ट होता जा रहा है |

अनुसासन-एक महत्वपूरण जीवन-मूल्य – वास्तव में अनुशासन में रहना एक सवभाव है, एक आदत है | यह जीवन जीने का ढंग है | जिस प्रकार मनुष्य गंदगी में नहीं रह सकता, उसी भाँती सभ्य मनुष्य बिना अनुशासन के नहीं रह सकता | आज सभ्यता और अशभ्यता की पहचान ही यही रह गई है – अनुशासन |


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