Sunday, December 18, 2016


जब आवै संतोष धन, सब धन धुरि समान 

तृष्णा का दुःख – महात्मा गाँधी लिखते हैं – “यह वसुंधरा अपने सारे पुत्रों को धन-धन्य दे सकती है, किंतु ‘एक’ भी व्यक्ति की तृष्णा को पूरा नहीं कर सकती |” यह पंक्ति अत्यंत मार्मिक है | इसे पढ़कर यह रहस्य उद्घाटिल होता है कि मनुष्य का असंतोष उसकी समस्याओंका मूल है | उसकी प्यास कभी शांत नहीं होती |

दुःख का कारण – वासनाएँ – मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक विविध वस्तुओं के पीछे पागल हुआ घूमता है | कभी उसे खिलौने चाहिए, कभी खेल, कभी धन चाहिए, कभी यश, कभी कुर्सी चाहिए, कभी पद | इक सबके आकर्षण का कारण है – इसकी प्यास | मनुष्य इस प्यास को त्याग नहीं सकता | इस प्यास के मारे वह जीवन-भर इनकी गुलामी सहन करने को तैयार हो जाता है | वास्तव में उसकी गुलामी का कारण उसका अज्ञान है | उसे पता ही नहीं है कि वस्तुओं में रस नहीं है, अपितु इच्छा और इच्छा-पूर्ति में रस है | जिस दिन उसे अपाने इस मनोविज्ञान का बोध हो जाएगा, तब भी उससे यह गुलामी छोड़ी नहीं जा सकेगी, क्योंकि इच्छाएँ अभुक्त वेश्याएँ हैं जो मनुष्य को पूरी तरह पि डालती हैं और फिर भी जवान बनी रहती हैं |

वासनाओं का समाधान – इस प्रश्न का उत्तर गीता में दिया गया है – ज्ञान, वैराग्य और अभ्यास से मन की वासनाओं को शांत क्या जा सकता है | जब वस्तुएँ व्यर्थ हैं तो उन्हें छोड़ना सीखें | सांसारिक पदार्थ जड़ हैं, नश्वर हैं तो उनकी जगह चेतक जगत को अपनाना सीखें | परमात्मा का ध्यान करें | मन बार-बार संसार की और जाए तो साधनापुर्वक, अभ्यासपूर्वक उसे परमात्मा की ओर लगाएँ | इन्हीं उपायों से मन में संतोष आ सकता है | संतोष से स्थिरता आती है और स्थिरता से आनंद मिलता है | वास्तविक आनंद भी वही है जो स्थिर हो, चंचल ण हो | सांसारिक सुख चंचल हैं, जबकि त्यागमय आनंद स्थायी हैं | अतः यह सच है कि ‘ जब आवै संतोष धन, सब धन धुरि समान |’


Saturday, December 17, 2016


मन के हारे हार है, मन के जीते जीत 

मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति : मन – मानव की सबसे बड़ी शक्ति ‘मन’ है | मनुष्य के पास मन है, इसलिए वह मनुष है, मनुज है, मानव है | मानसिक बाले पर ही मनुष ने आज तक की यह सभ्यता विकसित की है | मन मनुष्य को सदा किसी-न-किसी कर्म में रत रखता है |

मन के दो पक्ष : आशा-निराशा – धुप-छाँव के समान मनव-मन के दो रूप हैं – आशा-निराशा | जब मन में शक्ति, तेज और उत्साह ठाठें मारता है तो आशा का जन्म होता है | इसी के बल पर मनुष्य हज़ारों विपतियों में भी हँसता-मुस्कराता रहता है |

निराश मन वाला व्यक्ति सारे साधनों से युक्त होता हुआ भी युद्ध हर बैठता है | पांडव जंगलों की धुल फाँकते हुए भी जीते और कौरव राजसी शक्ति के होते हुए भी हारे | अतः जीवन में विजयी होना है तो मन को शक्तिशाली बनाओ |

मन को विजय का अर्थ – मन की विजय का तात्पर्य है – काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे शत्रुओं पर विजय | जो व्यक्ति इनके वश में नहीं होता, बल्कि इन्हें वश में रखता है, वह पुरे विश्व पर शासन कर सकता है | स्वामी शंकराचार्य लिखते हैं – “जिसने मन जो जीत लिया उसने जगत को जीत लिया |”

मन पर विजय पाने का मार्ग – गीता में मन पर नियंत्रण करने के दो उपाय बाते गए हैं – अभ्यास और वैराग्य | यदि व्यक्ति रोज़-रोज़ त्याग या मोह-मुक्ति का अभ्यास करता रहे तो उसके जीवन में असीम बल बल आ सकता है |

मानसिक विजय ही वास्तविक वियज – भारतवर्ष ने विश्व को अपने मानसिक बल से जीता है, सैन्य-बल से नहीं | यही सच्ची विजय भी है | भारत में आक्रमणकारी शताब्दियों तक लड़-जीत कर भी भारत को अपना न बना सके, क्योंकि उनके पास नैतिक बल नहीं था | शरीर-बल से हारा हुआ शत्रु फिर-फिर आक्रमण करने आता है, परंतु मानसिक बल से परास्त हुआ शत्रु स्वयं-इच्छा से चरणों में लोटता है | इसीलिए हम प्रभु से य्ह्ही प्राथना करते हैं – मानसिक बल से परस्त हुआ शत्रु स्वयं-इच्छा से चरणों में लोटता है | इसीलिए हम प्रभु से यही प्रार्थना करते हैं – 

हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें |
दूसरों की जय से पहले, खुद को जय करें ||



पराधीन को सुख नहीं 

पराधीनता का आशय – पराधीनता का आशय है – दुसरे के अधीन | अधीनता बहुत बड़ा दुःख है | हर आदमी स्वतंत्र रहना चाहता है | यहाँ तक कि सोने के पिंजरे में बंद पक्षी भी राजमहल के सुखों और स्वादिष्ट भोगों को छोड़कर खुले आकाश में उड़ जाना चाहता है |

स्वतंत्रता : जन्मसिद्ध अधिकार – प्रत्येक बच्चा सवतंत्र पैदा होता है | किसी मनुष्य, देश, समाज या राष्ट्र को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी व्यक्ति, देश समूह या राष्ट्र को बलपूर्वक अपने अधीन करे | आज विश्व के अधिकांश संविधान यह स्वीकार कर चिके हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता का अधिकार है |
मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है –

अधिकार खोकर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है |
न्यायार्थ अपने बंधू को भी दंड देना धर्म है |

पराधीनता की हानियाँ – पराधीन व्यक्ति जीवित होते हुए भी मृत के समान होता है | वह दासों के समान परायी और बसी ज़िंदगी जीता है | वह सदा अपने मालिक की और टुकर-टुकर निहारता है | हितोपदेश में कहा गया है – “जो प्रधीन्होने पर भी जीते हैं तो मरे हुए कौन हैं ?”

पराधीनता के प्रकार – पराधीन केवल बही नहीं होता, जिसके पैरों में बेड़ियाँ हों या चारों और दीवारों का घेरे हो | वह व्यक्ति भी पराधीन होता हिया जिसका मन गुलाम है | जैसे अंग्रेजों ने भारतियों को आज़ाद कर दिया, परंतु अनके भारतियों के मन अब भी अंग्रेजों के गुलाम हैं | जैसे अंग्रेजों ने भारतियों को आज़ाद कर दिया, परंतु अनके भारतियों के मन अब भी अंग्रेज़ों के गुलाम हैं | वे आज भी अंग्रेज़ीदां होने में गर्व अनुभव करते हैं | भला ‘निज संस्कुती’ से उखड़े हुए ऐसे लोगों को स्वाधीन या स्वतंत्र कैसे कहें ?

आर्थिक पराधीनता – पराधीनता का एक अन्य महत्वपूर्ण प्रकार है – अधिक पराधीनता | गरीब देशों को न चाहते हुए भी अपने ऋणदाता देशों की कुछ गलत बारें माननी पड़ती हैं | अतः यदि भारतवासियों को आज़ादी का सुख भोगना है तो उन्हें पराधीनता की हर बेड़ी को तोड़ना होगा |



विपति कसौटी जो कसे सोई साँचे मीत
अथवा
मित्रता बड़ा अनमोल रत्न

जीवन की सरसता के लिए मित्र की आवश्यकता – ‘मित्रता’ का तात्पर्य है – किसी के दुःख-सुख का सच्चा साथी होना | सच्चे मित्रों में कोई दुराव-छिपाव नहीं होता | वे निश्छल भाव से अपना सुख-दुख दुसरे को कह सकते हैं | उनमें आपसी विश्वास होता है | विश्वास के कारण ही वे अपना ह्रदय दुसरे के सामने खोल पाते हैं |
मित्रता शक्तिवर्धक औषधि के समान है | मित्रता में नीरस से कम भी आसानी से हो जाते हैं | दो मित्र मिलकर दो से ग्यारह हो जाते है |

जीवन-संग्राम में मित्र महत्वपूर्ण – मनुष्य को अपनी ज़िंदगी के दुःख बाँटने के लिए कोई सहारा चाहिए | मित्रता ही ऐसा सहारा है | एडिसन महोदय लिखते हैं – ‘मित्रता ख़ुशी को दूना करके और दुःख को बाँटकर प्रसन्नता बढ़ाती है तथा मुसीबत कम करती है |’

सच्चे मित्र की परख और चुनाव – विद्वानों का कहना है कि अचानक बनी मित्रता से सोच-समझकर की गई मित्रता अधिक ठीक है | मित्र को पहचानने में जल्दी नहीं करनी चाहिए | यह काम धीरे-धीरे धर्यपूर्वक कारण चाहिए | सुकरात का बचन है- ‘ मित्रता करके में शीघ्रता मत करो, परंतु करो तो अंत तक निभाओ |’
मित्रता समान उम्र के, समान स्तर के, समान रूचि के लोगों में अधिक गहरी होती है | जहाँ स्तर में असमानता होगी, वहाँ छोटे-बड़े का भेद होना शुरू हो जाएगा |

सच्ची मित्र वाही है जो हमें कुमार्ग की और जाने से रोके तथा सन्मार्ग की प्रेरणा दे | सच्चा मित्र चापलूसी नहीं करता | मित्र के अवगुणों प्र पर्दा भी नहीं डालता | वह कुशलता-पूर्वक मित्र को उसके अवगुणों से सावधान करता है | उसे सन्मार्ग पर चलने में सहयोग देता है |

सच्चा मित्र मिलना सौभाग्य की बात – यह सत्य है कि सच्चा मित्र हर किसी को नहीं मिलता | विश्वासपात्र मित्र एक खजाना हैजो किसी-किसी को ही मिलता है | अधिकतर लोग तो परिचितों की भीड़ में अकेले रहते हैं | दख-सुख में उनका कोई साठी नहीं होता | जिस किसी को अपना एक सह्रदय मित्र मिल जाए, वह स्वयंक को सौभाग्यशाली समझे |





परोपकार


परोपकार का महत्व – परोपकार अर्थात् दूसरों के काम आना इस सृष्टि के लिए अनिवार्य है | वृक्ष अपने लिए नहीं, औरों के लियेफल धारण करते हैं | नदियाँ भी पाना जल स्वयं नहीं पीतीं | परोपकारी मनुष्य संपति का संचय भी औरों के कल्याण के लिए करते हैं | साडी प्रकुर्ती निस्वार्थ समपर्ण का संदेश देती है | सूरज आता है, रोशनी देकर चला जाता है | चंद्रमा भी हमसे कुछ नहीं लेता, केवल देता ही देता है | कविवर पंत के शब्दों में – 

हँसमुख प्रसून सिखलाते 
पलभर है, जो हँस पाओ |
अपने उर की सौरभ से 
जग का आँगन भर जाओ ||


परोपकार से प्राप्त आलौकिक सुख – परोपकार का सुख लौकिक नहीं, अलौकिक है | जब कोई व्यक्ति निस्वार्थ भाव से किसी छायल की सेवा करता है तो उस क्षण उसे पाने देवत्व के दर्शन होते हैं | वह मनुष्य नहीं, दीनदयालु के पद पर पहुँच जाता है | वह दिव्य सुख प्राप्त करता है | उस सुख की तुलना में धन-दौलत कुछ भी नहीं है | 

परोपकार के विविध उदाहरन – भारत में परोपकारी महापुरषों की कमी नहीं है | यहाँ दधीची जैसे ऋषि हुए जिन्होंने अपने जाति के लिए अपने शरीरी की हड्डियाँ दान में दे दीं | यहाँ सुभाष जैसे महँ नेता हुए जिन्होंने देश को स्वतंत्र कराने के लिए अपना तन-मन-धन और सरकारी नौकरी छोड़ दी | बुद्ध, महावीर, अशोक, गाँधी, अरविंद जैसे महापुरषों के जीवन परोपकार के कारण ही महान बन सके हैं |

परोपकार में ही जीवन की सार्थकता – परोपकार दिखने में घाटे का सौदा लगता है | परंतु वास्तव में हर तरह से लाभकारी है | महात्मा गाँधी को परोपकार करने से जो गौरव और समान मिला ; भगत सिंह को फाँसी पर चढ़ने से जो आदर मिला ; बुद्ध को राजपाट छोड़ने से जो ख्याति मिली, क्या वह एक भोगी राजा बन्ने से मिल सकती थी ? कदापि नहीं | परोपकारी व्यक्ति सदा प्रसन्न, निर्मल और हँसमुख रहता है | उसे पश्चाताप या तृष्णा की आग नहीं झुलसाती | परोपकारी व्यक्ति पूजा के योग्य हो जाता है | उसके जीवन की सुगंध सब और व्याप्त हो जाती है | अतः मनुष्य को चाहिए की वह परोपकार को जीवन में धारण करें | यही हमारा धर्म है |


Thursday, December 15, 2016



No Pains, No Gains

This saying signifies that nothing great and noble can be achieved without a good deal of effort, struggle and sacrifice. As William Penn puts it, “no pain, no palm, no throes, no throne; no fall, no glory, no cross, no crown”. There are not short-cuts to success or golden rules to grow rich or to acquire scholarship in a few hours.

In the witty words of G.B. Shaw, the golden rule is that there is no golden rule. The path of hard and systematic and since rework leads one to the haven of success. It is a myth that often idles is happier than those who take pairs and apply then shoulders to the wheel. Another wrong notion among us is that without genius a student cannot become a first-rate scholar, howsoever painstaking he may be otherwise, as a matter of fact, genius as defined by Edison, is ‘one percent inspiration and ninety nine percent perspiration’. Another write Hopkins says: ‘Gift, like genius, I often think means only an infinite capacity of taking pains.” Rome was not built in a day. 

Rightly says a poet

The heights by great men reached and kept,
Were not attained by sudden flight,
But they, while their companions slept,
Were touching upward in the night.




Knowledge is Power

There is a difference between ‘strength’ and ‘power’ we say ‘the power of the press’ and not ‘the strength of the press’. A tiger has strength and this is only physical. Contrarily, a man with ideas or knowledge has power which for superior to and dominates mere physical force. It is rightly said ‘a pen is mightier than a sword.’ Today man with has gradually mounting knowledge and wisdom has been able through science, to unravel the mysteries of nature and harness then for his own benefits. Brain, not brawn (muscles) rules the world. Man with his superior intelligence is capable of domesticating the wildest and most fierce animal. He with his knowledge of science, can soar in the sky without wings, and reached the most distant place in few hours. The point is that power resides in ideas and not in muscles of the body. A competent doctor with one or just two injections can save life of the mightiest wrestler, because of his knowledge of medical science.


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