Friday, September 30, 2016



महंगाई

महँगाई की समस्या – वर्तमान की अनेक समस्याओं में से एक महत्वपूर्ण समस्या है – महँगाई | जब से देश स्वतंत्र हुआ है, तब से वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं | रोजमर्रा की चीजों में 150 से 250 गुना तक की कीमत-वृद्धि हो चुकी है |

महँगाई बढ़ने के कारण – बाज़ार में महँगाई तभी बढ़ती है जबकि माँग अधिक हो, किंतु वस्तओं की कमी हो जाए | भारत में स्वतंत्रता के बाद से लेकर आज तक जनसंख्या में तीन गुना वृद्धि हो चुकी है | इसलिय स्वाभाविक रूप से तिन गुना मुँह और पेट भी बढ़ गए हैं | अतः जब माँग बढ़ी तो महँगाई भी बढ़ी | दुसरे, पहले भारत में गरीबी की रेखा के नीचे जीने वाले लोग अधिक थे | परंतु अब ऐसे लोगों की संख्या कम है | अब अधिकतर भारतीय पेट-भर अन्न-जल प् रहे हैं | इस कारण भी वस्तुओं की माँग बढ़ी है | बहुत-सी चीजों पर हम विदेशों पर निर्भर हो गए है | हमारे देश की एक बड़ी धनराशि पेट्रोल पर व्यय होती है | इसके लिए भारत कुछ नहीं कर पाया | अतः रोज-रोज पैट्रोल का भाव बढ़ता जा रहा है | परिणामस्वरूप हर चीज महँगी होती जा रही है | 

कालाबाज़ारी – महँगाई बढ़ने के कुछ बनावटी कारण भी होते हैं | जैसे – कालाबाज़ारी | बड़े-बड़े व्यपारी और पूंजीपति धन-बल पर आवश्यक वस्तुओं का भंडारण कर लेते हैं | इससे बाज़ार में अचानक वस्तुओं की आपूर्ति कम हो जाती है |

परिणाम – महँगाई बढ़ने का सबसे बड़ा दुष्परिनाम गरीबों और निम्न मध्यवर्ग को होता है | इससे उनका आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है | या तो उन्हें पेट काटना पड़ता है, या बच्चों की पढ़ाई-लिखाई जैसी आवश्यक सुविधा छीन लेनी पड़ती है |

उपाय – दैनिक उपयोग की वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि रोकने के ठोस उपाय किए जाने चाहिए | इसके लिए सरकार को लगातार मूल्य-नियंत्रण करते रहना चाहिए | कालाबाज़ारी को भी रोका जा सकता है | एस दिशा में जनता का भी कर्तव्य है कि वह संयम से काम लो |




सामाजिक जीवन में भ्रष्टाचार

भरष्टाचार का बढ़ता स्वरूप – भारत के सामाजिक जीवन में आज भ्रष्टाचार का बोलबाला है | यहाँ का रिवाज़ है – रिश्वत लो और पकड़े जाने पर रिश्वत देकर छुट जाओ | नियम और कानून की रक्षा करने वाले सरकारी कर्मचारी सबसे बड़े भ्रष्टाचारी हैं | केवल तीन करोड़ में देश के सांसदों को खरीदना और उनका बिकना भ्रष्टाचार का सबसे शर्मनाक दृश्य है |

भ्रष्टाचार का प्रवाह ऊपर से नीचे की और बहता है | जब मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री स्वयं भ्रष्टाचार या घोटाले में लिप्त हों तो उस देश का चपरासी तक भ्रष्ट हो जाता है | यही स्थिति भारत की हो चुकी है | सरकारी कार्यलयों में बिना घुस दिए कोई काम नहीं होता | फर्जी बिल बनाए जाते हैं | बड़े-बड़े अधिकारी कागज़ों पर सड़कें, पुल आदि बनाते है और सता पैसा खुद खा जाते हैं | सरकारी सर्वेक्षण बताते हैं कि किसी भी योजना के लिए दिया गया 85% पैसा तो अधिकारी ही खा जाते हैं |

भ्रष्टाचार : एक नियमित व्यवस्था – अब तो प्रीमियम, डोनेशन, सुविधा-शुल्क या नए-नए नामों से भ्रष्टाचार को व्यवस्था का अंग बना दिया गया है | कहने का अर्थ है कि सरकार तक ने इसे स्वीकार कर लिया है | इसलिए व्यापारियों और व्यवसायियों का भी यही ध्येय बन गया है कि ग्राहक को जितना मर्जी लूटो | कर्मचारी ने भी सोच लिया है – खूब रिश्वत लो और काम से बचो |

भ्रष्टाचार : क्यों और कैसे – भ्रष्टाचार मनुष्यों की बदनीयती के कारण बढ़ा और उसमें सुधार करने से ही यह ठीक होगा | समाज के नियमों का पालन करने के लिए परिवार तथा विदयाल में संस्कार दिए जाने चाहिए | दुसरे, प्रशासन को स्वयं शुद्ध रहकर नियमों का कठोरता से पालन कराना चाहिए | हर भ्रष्टाचारी को उचित दंड दिया जाना चाहिए ताकि शेष सबको बाध्य होना पड़े | परंतु प्रशाशन अपनी जिम्मेदारी को नहीं समझ रहा | 

प्रशन यह है कि ऐसा कब हो पायगा ? यह समय पर निर्भर है | जब भी कोई दृढ़ चरित्रवान युवा नेतृत्व आर या पार की भावना से समाज जो प्रेरणा देगा, तभी यह मैली गंगा शुद्ध हो सकेगी |




बेरोज़गारी : समस्या और समाधान

बेकारी की समस्या और अभिप्राय – आज भारत के सामने जो समस्याएँ कण फैलए खड़ी हैं, उनमें से एक चिंतनीय समस्या है – बेकारी | लोगों के पास हाथ हैं, पर काम नहीं है; प्रशिक्षण है, पर नौकरी नहीं है | 
आज देश में प्रशिक्षित और अप्रशिक्षित-दोनों प्रकार के बेरोज़गारों की फौज़ जमा है | फैक्ट्रियों, सड़कों, बाज़ारों में भीड़ है | शहरों में हज़ारों बेकार मज़दूरों के झुंड पर झुंड नज़र आ जाते हैं | रोज़गार कार्यालयों में करोड़ों बेकार युवकों के नाम दर्ज हैं | सौ नौकरियों के लिए हज़ारों से लाखों तक आवेदन-प्रत्र जमा हो जाते हैं | बेकारी का एक दुस्ता प्रकार है – अर्द्ध बेकार | कई लोगों का व्यवसाय वर्ष में छ: मास खाली रहते हैं | इसके अतिरिक्त कई लोग ऐसे हैं जो काम पर होते हुए भी यथायोग्य स्थान पर नियुक्त नहीं हैं |

बेकारी के कारण – बेकारी का सबसे बड़ा कारण है – बढ़ती हुई जनसंख्या | दूसरा कारण है, भारत में विकास के साधनों का आभाव होना | देश के कर्णधारों की गलत योजनाएँ भी बेकारी को बढ़ा रही हैं | गाँधी जी कहा करते थे – “हमारे देश को अधिक उत्पादन नहीं, अधिक हाथों द्वारा उत्पादन चाहिए |” उन्होंने बड़ी-बड़ी मशीनों की जगह लघु उद्योगों को प्रोत्साहन दिया | उनका प्रतीक था – चरखा | परंतु अधिकांश जन आधुनिकता की चकाचोंध में उस सच्चाई के मर्म को नहीं समझे | परिणाम यह हुआ कि मशीनें बढ़ती गई, हाथ खाली होते गए | बेकारों की फौज़ जमा हो गईं | आज के अधिकारी कंप्यूटरों और मशीनों का उपयोग बढ़ाकर रोज़गार के अवसर कम कर रहे हैं | बैंक, सार्वजनिक उद्योग नई नौकरियाँ पैदा करने की बजे अपने पुराने स्टाफ को ही जबरदस्ती निकलने में जुटे हुए हैं | यह कदम देश के लिए घातक सिद्ध होगा | आज भरक को पुन : पैतृक उद्योगों, धंधों, व्यवसायों की आवश्यकता है |

बेकारी बढ़ने का एक अन्य कारण है – बाबूगिरी की होड़ | हमारी दूषित शिक्षा-प्रणाली भी बेकारी बढ़ने का अन्य कारण है | यदि बचपन से ही बच्चे को व्यावसायिक शिक्षा दी जाए तो बेरोज़गारी कम हो सकती है |

समाधान – प्रत्येक समस्या का समाधान उसके कारणों में छिपा रहता है | अतः यदि ऊपर-कथित कारणों प्र प्रभावी रोक लगाई जाए तो बेरोज़गारी की समस्या का काफी सीमा तक समाधान हो सकता है | व्यावसायिक शिक्षा, लघु उद्योगों को प्रोत्साहन, मशिनिकरण प्र नियंत्रण, कंप्यूटरीकरण पर नियंत्रण, रोज़गार के नए अवसरों की तलाश, जनसंख्या पर रोक आदि उपायों को शीघ्रता से लागु किया जाना चाहिए |




सांप्रदायिकता : एक अभिशाप 

सांप्रदायिकता का अर्थ और कारण – जब कोई संप्रदाय स्वयं को सर्वश्रेष्ठ और अन्य स्म्प्दयों को निम्न मानने लगता है, तब सांप्रदायिकता का जन्म होता है | दूसरी तरफ भी कम अंधे लोग नहीं होते | परिणामस्वरूप एक संप्रदाय के अंधे लोग अन्य धर्मांधों से भिड पड़ते है और सारा जन-जीवन लहूलुहान कर देते हैं | इन्हीं अंधों को फटकारते हुए महात्मा कबीर ने कहा है –

हिंदू कहत राम हमारा, मुसलमान रहमाना |
आपस में दोऊ लरै मरतु हैं, मरम कोई नहीं जाना ||

सर्वव्यापक समस्या – सांप्रदायिकता विश्व-भर में व्याप्त बुराई है | इंग्लैंड में रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट ; मुसलिम देशों में शिया और सुन्नी ; भारत में बैाद्ध-वैष्णव, सैव- बैाद्ध, सनातनी, आर्यसमाजी, हिन्दू-सिक्ख झगड़े उभरते रहे हैं | एन झगड़ों के कारण जैसा नरसंहार होता है, जैसी धन-संपति की हानि होती है, उसे देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं |

भारत में सांप्रदायिकता – भारत में सांप्रदायिकता की शुरूआत मुसलमानों के भारत में आने से हुई | शासन और शक्ति के मद में अन्धें आक्रमणकारियों ने धर्म को आधार बनाकर यहाँ के जन-जीवन को रौंद डाला | धार्मिक तीर्थों का तोड़ा, देवी-देवताओं को अपमानित किया, बहु-बेटियों को अपवित्र किया, जान-माल का हरण किया | परिणामस्वरूप हिंदू जाति के मन में उन पाप-कर्मो के प्रति गहरी घ्रणा भर गई, जो आज तक भी जीवित है | बात-बात पर हिंदू-मुसलिम संघर्ष का भड़क उठना उसी घ्रणा का सूचक है |

सांप्रदायिक घटनाएँ – सांप्रदायिकता को भड़कने में अंग्रेज शासकों का गहरा षड्यंत्र था | वे हिन्दू-मुसलिम झगड़े फैलाकर शासक बने रहने चाहते थे | उन्होनें सफलतापूर्वक दोनों को लड़ाया | आज़ादी से पहले अनेक खुनी संघर्ष हुए | आज़दी के बाद तो विभाजन का जो संघर्ष और भीषण नर-संहार हुआ, उसे देखकर समूची मानवता रो पड़ी | शहर-के-शहर गाजर-मुली की तरह काट डाले गए | अयोध्या के रामजन्म-भूमि विवाद ने देश में फिर से सांप्रदायिक आग भड़का दी है | बाबरी मसजिद का ढहाया जाना और उसके बदले सैंकड़ों मंदिरों का ढहाया जाना ताजा घटनाएँ हैं |

समाधान – सांप्रदायिकता की समस्या तब तक नहीं सुलझ सकती, जब रक् कि धर्म के ठेकेदार उसे सुलझाना नहीं चाहते | यदि सभी धर्मों के अनुयायी दूसरों के मत का सम्मान करें, उन्हें स्वीकारें, अपनाएँ, उनके कार्यक्रमों में सम्मिलित हों, उन्हें उत्सवों पर बधाई देकर भाईचारे का परिचय दें | विभिन्न धर्मों के संघषों को महत्व देने की बजाय उनकी समानताओं को महत्व दें तो आपसी झगड़े पैदाही न हों | कभी-कभी ईद-मिलन या होली-दिवाली पर ऐसे दृश्य दिखाई देते हैं तो एक सुखद आशा जन्म लेती है | साहित्यकार और कलाकार भी सांप्रदायिकता से मुक्ति दिलाने में योगदान कर सकते हैं |


Thursday, September 29, 2016




शहरी जवान में बढ़ता प्रदूषण 

शहरों का निरंतर विस्तार और बढ़ती जनशंख्या – आज की सभ्यता को शहरी सभ्यता को शहरी सभ्यता कह सकते हैं | यद्पि भारत की अधिकांश जनता गाँवों में बस्ती है किंतु उसके र्ह्द्यों में बसते – शहर बढ़ रहे है, साथ-साथ जनशंख्या भी तेजी से बढती रही है | हर वर्ष भारत में एक नया ऑस्ट्रेलिया और जुड़ जाता है |

शहरों में बढ़ते विविध प्रकार के प्रदूषण – जन्शंख्या के इस बढ़ते दबाव का सीधा प्रभाव यहाँ के बयुमंडल पर पड़ा है | धरती कम, लोग अधिक | शेरोन की तो दुर्गति हो गई है | दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई जैसे महानगरों में हर प्रकार का प्रदूषण पाँव पसार रहा है | लोगों के पास पर्याप्त स्थान नहीं हैं | लाखों लोग झुग्गी-झोंपड़ियों में निवास करते हैं, जहाँ खुली धुप, वायु और जल तक का प्रबंध नहीं है | न उनके पास रहने को पक्के मकान हैं, न स्नानघ, न शौचालय | इसलिए उनका सारा वातावरण शौचालय जैसा दुर्गन्धपूर्ण हो गया है |

वायु-प्रदूषण – महानगरों की सड़कों के वाहन रोज लाखों गैलन गंदा धुआँ उगलते हैं | व्रक्षों को अभाव में यह धुआँ नागरिकों के फेफड़ों में जाता है और उनका स्वास्थ्य खराब हो गया है |

जल तथा धवनि प्रदूषण -  नगरों में जल के स्त्रोत भी दूषित हो चुके हैं | दिल्ली में बहने वाली यमुना पवित्र 
नदी नहीं, विशाल नाला बन चुकी है | नगरों के आसपास फैले उद्योग इतना रासायनिक कचरा उत्सर्जित करते हैं कि यहाँ की धरती और नदियों का जल प्रदूषित हो चूका है | शोर का कहना ही क्या ! वाहनों का शोर, कल-कारखानों की बड़ी-बड़ी मशीनों का शोर, सघन जनसंख्या का शोर, ध्वनि-विस्तारकों और कर्णबेधक संगीत-वाद्दों का शोर-इन सबके कारण शहरी जीवन तनावग्रस्त हो गया है |

प्रदूषण की रोकथाम के उपाय – शहरों में बढ़ रहे प्रदूषण को रोकने अत्यंत आवश्यक है | इसका सर्वोतम उपाय है – जन्शंख्या पर नियंत्रण | प्रयतन किया जाना चाहिए कि और गाँव तजकर नगरों की और न दौड़े | सरकार को चाहिए कि वह नगरों की सुविधाएँ गाँवों तक पहुँचाये ताकि शहरीकरण की अंधी दौड़ बंद हो |

प्रदूषण रोकने का दुस्ता उपाय है – सुविचार्पूर्ण नियोजन | हरियाली को यथासंभव बढ़ावा देना चाहिय | प्रदूषण बढ़ाने वाली फैक्टरियों को नगरों से बाहर ले जाना चाहिए | फैक्टरियों के प्रदूषित जल और कचरे को संसाधित करने का उचित प्रबंध करना चाहिए | शोर को रोकने के कठोर नियम बनाए जाने चाहिए तथा उन पर अमल किया जाना चाहिए |




प्रदूषण : एक समस्या

पर्यावरण का अर्थ – पर्यावरण का अर्थ है – हमारे चारों और का वातावरण | दुर्भाग्य से हमारा यही पर्यावरण आज दूषित हो गया है | प्रदूषण मुख्यत : तीन प्रकार का होता है – वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण तथा ध्वनि-प्रदूषण |

प्रदूषण के कारण – प्रदूषण का जन्म अंधाधुंध वैज्ञानिक प्रगति के कारण हुआ है | जब से मनुष्य ने प्रकृति के साथ मनचाही छेड़छाड़ की है, तब से प्रकृति मनुष्य पर कुपित है | मनुष्य ने अपने भवन सुंदर बनाने के लिए वन काटे, पहाड़, तोड़े, समतल मैदान बनाए, वृक्ष काटे, ईट-बजरी और तारकोल के निर्माण किए, विदुत-गृह और ताप-घर बनाए, परमाणु-भट्टियाँ बनाई, प्लास्टिक जैसी घातक कृत्रिम बनाएँ बनाई, प्लास्टिक जैसी घातक कृत्रिम बस्तुएँ बनाई, परमाणु हथियारों, बमों, कीटनाशकों का अनावश्यक निर्माण किया |

मनुष्य की इस अंधाधुंध प्रगति का दुष्परिणाम यह हुआ कि हमारा समूचा परिवेश जीवन-घातक तत्वों से भर गया है | महानगरों में स्वच्छ वायु में साँस लेने को तरस गया है आदमी | वायु-प्रदुषण के कारण ऑखों में जलन, तवचा में एलर्जी, साँस में कष्ट, प्लेग, डेंगू आदि कितनी ही प्राणघातक बीमारियाँ जन्म ले रही हैं |

अविवेकपूर्ण औद्योगिकीकरण और परमानिविक प्रयोगों के कारण विश्व-भर का मौसम-चक्र बिगड़ गया है | धरती पर गर्मी बढ़ रही है | वैज्ञानिकों को चेतावनी है कि यदि इसी प्रकार उर्जा का प्रवाह होता रहा तो हिमखंड पिघलेंगे, बाढ़े आएँगी, समुद्र-जल में वृद्धि होगी | रहने-योग्य भूमि और कम होगी | समुद्र ही नहीं, आकाश में फैली ओजोन गैस की सुरक्षा-छतरी में छेद हो जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप धरती का पर्यावरण विषाक्त हो जाएगा |

प्रदूषण का निवारण -  प्रदूषण से मुक्ति का सर्वोतम उपाय है – एस समस्या के प्रति सचेत होना | अन्य उपाय हैं – आसपास पेड़ लगाना, हरियाली को अधिकाधिक स्थान देना | अनावश्यक शोर को कम करना | विलास की वस्तुओं की बजाय सद्गिपूर्ण ढंग से जीवनयापन करना | वनों की कटाई पर रोक लगाना | लकड़ी के नए विकल्प खोजना | फैक्टरियों को दूषित जल और धुएँ के निष्कासन का उचित उपाय खोजना | घातक बीमारियाँ पैदा करने वाले उद्योगों को बंद करना | परमाणु विस्फोटों पर रोक लगाना | एन उपायों को स्वयं पर लागु करना तथा समाज को बाध्य करना ही प्रदूषण से बचने का एकमात्र उपाय है |




दहेज-प्रथा एक गंभीर समस्या 

दहेज का बदलता स्वरूप -  भारतीय नारी का जीवन जिन समस्याओं का नाम सुनते ही कॉप उठता है – उनमें सबसे प्रमुख है – दहेज | प्ररंभ में दहेज़ कन्या के पिता दुवरा स्वेच्छा-से  अपनी बेटी को दिया जाता था | विवाह के समय बेटी को प्रोमोपहार देना अच्छी परंपरा थी | आज भी इसे प्रेम-उपहार देने में कोई बुराई नहीं है |

दुर्भाग्य से आज दहेज-प्रथा एक बुराई का रूप धारण करती जा रही है | आज दहेज प्रेमवश देने की वास्तु नहीं, अधिकार पूर्वक लेने की वास्तु बनता जा रहा है | आज वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से जबरदस्ती पैसा, वस्त्र और वस्तुएँ माँगते हैं | यह माँग एक बुराई है |

दहेज के दुष्परिणाम - दहेज़ के दुष्परिणाम अनेक हैं | दहेज़ के आभाव में योग्य कन्याएँ अयोग्य वरों को सौंप दी जाती है | दूसरी और, अयोग्य कन्याएँ धन की ताकत से योग्यतम वारों को खरीद लेती हैं | दोनों ही स्थितियों में पारिवारिक जीवन सुखद नहीं बन पाना |

गरीब माता-पिता दहेज के नाम से भी घबराते हैं | वे बच्चों का पेट काटकर पैसे बचाने लगते हैं | यहाँ तक कि रिश्वत, गबन जैसे अनैतिक कार्य करने से भी नहीं चुकते |

दहेज का राक्षसी रूप हमारे सामने तब आता है, जब उसके लालच में बहुओं को परेशान किया जाता है | कभी-कभी उन्हें इतना सताया जाता है कि वे या तो घर छोड़कर मायके चली जाती हैं या आत्महत्या कर लेती हैं | कई दुष्ट वर तो स्व्यं अपने हाथों से नववधू को जला डालते है |

समाधान के उपाय – दहेज की बुराई को दूर करने के सचे उपाय देश के नवयुवकों के हाथ में हैं | अतः वे विवाह की कमान अपने हाथों में लें | वे अपने जीवनसाथी के गुणों को महत्व दें | विवाह ‘प्रेम’ के आधार पर करें, दहेज़ के आधार पर नहीं | कन्याएँ भी दहेज के लालची युवकों को दुत्कारें तो यह समस्या तुरंत हल हो सकती है |

लड़की का आत्मनिर्भर बनना – लड़कियों का आत्मनिर्भर बनना भी दहेज रोकने का एक अच्छा उपाय है | लडकियाँ केवल घरेलू कार्य में ही व्यस्त न रहें, बल्कि आजीविका कमाएँ ; नौकरी या व्यवसाय करें | इससे भी दहेज की माँग में कमी आयगी |

कानून के प्रति जागरूकता – दहेज की लड़ाई में कानून भी सहायक हो सकता है | जब से ‘दहेज निषेद विधेयक’ बना है, तब से वर पक्ष द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों में कम आई है | परंतु इस बुराई का जड़मूल से उन्मूलन तभी संभव है, जब से वर पक्ष द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों में कमी आई है | परंतु इस बुराई का जड़मूल से उन्मूलन तभी संभव है, जब युवक-युवतियाँ स्वयं जाग्रत हों |


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