Wednesday, December 07, 2016


समय का सदुपयोग

समय जीवन है – फैंकलिन का प्रशिद्ध कथन है –‘वकत को बरबाद न करो कियोंकि जीवन इसी से बना है |’ समय ही जीवन है | जीवन क्या है – जीने का कुछ वक्त | मृत्यु के बाद तो समय का कोई अर्थ नहीं रह जाता | अतः समय सबसे मूल्यवान है |

समय का सदुपयोग – समय का सदुपयोग यही है कि प्रत्येक कार्य निच्चत समय पर कर दिया जाए | उचित घडी बीत जाने पर किया गया कार्य निष्फल होता है | गोस्वामी तुलसीदास लिखते है –
का बरषा जब कृषि सुखाने | समय चुकि पुनि का पछिताने

उचित समय की अग्रिम प्रतीक्षा करनी पड़ती है | समय की अपेक्षा करने वाले को समय का रथ बुरी तरह रौंद डालता है | शेक्सपीयर का कथन है – “ मैंने समय को नष्ट किया और अब समय मुझे नष्ट कर रहा है |’

समय की पाबंदी – समय के प्रति सचेत तथा गंभीर रहना समय का सबसे बड़ा सम्मान है | समय के पाबंद रहकर समय की बचत की जा सकती है | यदि सारी रेलगाड़ियाँ समय पर छुटें और समय से पहुँचे ; सारे उत्सव-त्योहार ठिक समय पर प्रारंभ होकर ठिक समय पर समाप्त हों और सभी कार्य निश्चित समय पर हों, तो सभी मनुष्यों का समय बाख सकता है | राष्ट्रपिता गाँधी जी समय के पाबंद थे | वे एक मिनट की देरी को भी देरी मानते थे |

सफलता में समय की भूमिका – जीवन में सफलता पाने के लिए समय की अनुकूलता का होना | आवश्यक है | यदि संयु अनुकूल न हो तो मनुष्य के सरे प्रयत्न निष्फल हो जाते हैं | पढ़ाई के वक्त पढ़ाई, खेल के समय खेल, शादी के समय मौज़ और गृहस्थी के समे ज़िम्मेदारी – ये सब वकत पर ही अच्छे लगते हैं | जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता, वह वकत के थपेड़े खाता रहता है |



श्रम का महत्व 

संसार में आज जो भी ज्ञान-विज्ञान की उन्नति और विकास है, उसका कारण है परिश्रम – मनुष्य परिश्रम के सहारे ही जंगली अवस्था से वर्तमान विकसित अवस्था तक पहुँचा है | उसके श्रम से खेती की | अन्न उपजाया | वस्त्र बनाए | घर, मकान, भवन, बाँध, पुल, सड़कें बनाई | पहाड़ों की छाती चीरकर सड़कें बनाने, समुद्र के भीतर सुरंगें खोदने, धरती के गर्भ से खनिज-तेल निक्कालने, आकाश की ऊचाइयों में उड़ने में मनुष्य ने बहुत परिश्रम किया है |

परिश्रम करने में बुद्धि और विवेक आवश्यक – परिश्रम केवल शरीर की किर्याओं का ही नाम नहीं है | मन तथा बुद्धि से किया गया परिश्रम भी परिश्रम कहलाता है | एक निर्देशक, लेखक, विचारक, वैज्ञानिक केवल विचारों, सलाहों, और यक्तियों को खोजकर नवीन अविष्कार करता है | उसका यह बोद्धिक श्रम भी परिश्रम कहलाता है |
परिश्रम से मिलने वाले लाभ – परिश्रम का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता मिलती है | दुसरे, परिश्रम करने वाला मनुष्य सदा सुखी रहता है | उसे मन-ही-मन प्रसन्नता रहती है कि उसने जो भी भोगा, उसके बदले उसने कुछ कर्म भी किया | महात्मा गाँधी का यह विश्वाश था कि “जो अपने हिस्से का काम किए बिना ही भोजन पाते हैं, वे चोर हैं |”

परिश्रमी व्यक्ति का जीवन स्वाभिमान से पूर्ण होता है, जबकि एय्याश दूसरों पर निर्भर तथा परजीवी होता है जबकि विलासी जन सदा भाग्य के भरोसे जीते हैं तथा दूसरों का मुँह ताकते हैं |

उपसंहार – वेदवाणी में कहा गया है – “ बैठने वाले का भाग्य भी बैठ जाता है और खड़े होने वाले का भाग्य भी खड़ा हो जाता है | इसी प्रकार सोने वैल का भाग्य भी सो जाता है और पुरुषार्थी का भाग्य भी गतिशील हो जाता है | चले चलो, चले चलो |” इसीलिए स्वामी विवेकानंद ने सोई हुई भारतीय जनता को कहा था – ‘उठो’, जागो और लक्ष्य-प्राप्ति तक मत रुको |’




चरित्र-बल 

चरित्र एक महाशक्ति – बर्टल लिखते हैं – ‘चरित्र एक एसा हीरा है, जो हर किसी पत्थर को घिस सकता है |’ चरित्र केवल शक्ति ही नहीं, सब शक्तियों पर छा जाने वाली महाशक्ति है | जिसके पास चरित्र रूपी धन होता है, उसके सामने संसार-भर की विभूतियाँ, संपतियाँ और सुख-सुविधाएँ घुटने टेक देती हैं |

चरित्र पर सर्वस्व सम्पूर्ण – राणा के चरित्र पर भामाशाह का धन भी समप्रित हो गया | सुभाष के चरित्र को देखकर असंख्य युवकों-युवतियों ने धन, संपति, खून -  यहाँ तक कि अपना पूरा जीवन तक होम कर दिया | मुट्ठी भर हड्डियों वाले बापू पर विश्व की कौन-सी संपति कुर्बान नहीं थी ? संतों-महात्माओं को जितना धन-यश, वैभव और भक्ति मिलती है, उसका एक अल्पांश भी बड़े-बड़े धन्नासेठों को नहीं मिलता | चरित्र तो सब शक्तियों का बादशाह है |

चरित्र जा जन्म – चरित्र जन्मजात गुणों और आदान से ढाले गए व्यवहार को मिलकर बनता है | गाँधीजी का उदहारण सामने है | वे प्रितिभा में अत्यंत सामान्य थे | परंतु उन्होंने सत्य, अहिंसा और न्याय के जो गुण अपने जीवन में ढाले, उसी के परिणामस्वरुप उन्हें ऐसा उज्जवल चरित्र मिला जिससे सारे विश्व को प्रकाश प्राप्त हुआ | इसीलिए बोर्डमैन लिखते हैं –

“कर्म को बोओ और आदाल की फसल काटो ; आदत को बोओ और चरित्र की फसल काटो ; चरित्र को बोओ और भाग्य की फसल काटो |”

चरित्र साधना है | इसे अपने ही प्रयास से पैसा किया जा सकता है | इसका तरीका भी बहुत सरल है – सद्गुणों पर चलना, अवगुणों से बचना | प्रेम, त्याग, करुणा, मानवता, अहिंसा को अपनाना तथा लोभ, मोह, निंदा, उग्रता, क्रोध, अहंकार को छोड़ना | परंतु यह सरल-सा मार्ग ही साधना के बिना बहुत कठिन हो जाता है |

चरित्र-बल के लाभ- चरित्रवान व्यक्ति स्वयं को धन्य अनुभव करता है | उसे पाना जीवन सफल प्रतीत होता है | संसार की सारी खुशियाँ उसके चरों और घुमती हैं | उसके चरों और आशा और उत्साह का ऐसा प्रकाश-मंडल घिर आता है कि संसार के कष्ट भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते | चरित्रवान व्यक्ति को मिले काँटे भी फुल बन जाते हैं | अपमान भी सम्मान बन जाते हैं, जेल के सींखचे उसके लिए मंदिर बन जाते हैं, विष के प्याले अमृत बन जाते हैं |




वन और हमरा पर्यावरण 

वन और पर्यावरण – वन और पर्यावरण का गहरा संबंद है | ये सचमुच जीवनदायक हैं | ये वर्षा लाने में सहायक होते हैं और धरती की उपजाऊ-शक्ति को बढ़ाते हैं | वन ही वर्षा के धारासार जल को अपने भीतर सोखकर बाढ़ का खतरा रोकते हैं | यही रुका हुआ जल धीरे-धीरे सरे पर्यावरण में पुन: चला जाता है | वनों की कृपा से ही भूमि का कटाव रुकता है | सुखा कम पड़ता है तथा रोगिस्तान का फैलाव रुकता है |

प्रदूषण-निवारण में सहायक – आज हमारे जीवन की सबसे बड़ी समस्या है – पर्यावरण-प्रदूषण | कार्बन डाइआक्साइड, गंदा, धुआँ, कर्णभेदी आवाज, दूषित जल-इन सबका अचूक उपय है – वन सरंक्षण | वन हमारे द्वारा छोड़ी गई गंद साँसों को, कार्बन डाइआक्साइड को भोजन के रूप में ले लेते हैं और बदले में हमें जीवनदायी आक्सीजन प्रदान करते हैं | इन्ही जंगलों में असंख्य, अलभ्य जीव-जंतु निवास करते हैं जिनकी कृपा से प्राकृतिक संतुलन बना रहता है | आज शहरों में उचित अनुपात में पेड़ लगा दिए जाएँ तो प्रदूषण की भयंकर समस्या का समाधान हो सकता है | परमाणु ऊर्जा के खतरे को तथा अत्यधिक ताप को रोकने का सशक्त उपय भी वनों के पास है |

वनों की अन्य उपयोगता – वन ही नदियों, झरनों और अन्य प्राकुतिक जल-स्रोतों के भंडार हैं | इनमें ऐसी दुर्लभ वनस्पतियाँ सुरक्षित रहती हैं जो सारे जग को स्वास्थ्य प्रदान करती हैं | गंगा-जल की पवित्रता का कारण उसमें मिल्ली वन्य औषधियाँ ही हैं | इसके अरिरिक्त वन हमें, लकड़ी, फुल-पट्टी, खाद्द-पदार्थ, गेंद तथा अन्य सामन प्रदान करते हैं |

वन-सरंक्षण की आवश्यकता – दुर्भाग्य से आज भारतवर्ष में केवल 23 % वन रह गए हैं | अंधाधुंध कटाई के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है | वनों का संतुलन बनाए रखने के लिए 10% और अधिक वनों की आवश्यकता है | जैसे-जैसे उद्दोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, वाहन बढ़ते जा रहे हैं, वैसे-वैसे वनों की आवश्यकता और अधिक बढ़ती जाएगी |



विज्ञापन और हमारा जीवन 

विज्ञापन का उद्देश्य – किसी वास्तु, विचार, क्रायक्रम या संदेश के प्रचार-प्रसार के लिए जो साधन-सामग्री प्रयोग में लायी जाती है, उसे विज्ञापन कहते हैं | विज्ञापन का उद्देश्य संबंधित वास्तु या संदेश को दूर-दूर तक फैलाना होता है |

विज्ञापनों के विविध प्रकार – विज्ञापनों के अनेक प्रकार होते हैं | सामाजिक विज्ञापनों के अंतर्गत दहेज, नशा, परिवार-नियोजन आदि संदेश आते हैं | विभिन्न कार्यक्रमों, रैलियों, आंदोलनों के विज्ञापन भी इसके अंतर्गत आते हैं | कुछ विज्ञापन विवाह, नौकरी, संपति की खरीद-बेच संबंदी होते हैं | सबसे लोकप्रिय और लुभावने विज्ञापन होते हैं – व्यापारिक विज्ञापन | व्यापारी और अद्दोग्पति अपने माल को दूर दूर तक बेचने के लिए अत्यंत आकषर्क विज्ञापनों का प्रयोग करते हैं |

निर्णय को प्रभावित करने में विज्ञापनों को भूमिका – मनुष्य कौन-सा माल खरीदे-इसमें विज्ञापनों की भूमिका सबसे बड़ी होती है | कोई भी व्यक्ति दुकान पर खड़ा होकर विविध वस्तुओं में से प्रसिद्ध वस्तुओं कोही चुन पाता है | चाहे बाजार में कितने भी श्रेष्ठ साबुन उपलब्ध हों, किंतु ग्राहक उन्हीं को खरीदता है जिसका उनसे विज्ञापन सुना है | जब मनुष्य भुत साडी विविधताओं में फँस जाता है तो विज्ञापन ही निर्णय करने में सहायक होते हैं |

विज्ञापनों का सामाजिक दायित्व – विज्ञापन प्रभावकारी होते हैं | इसलिए उनका सामाजिक दायित्व भी बहुत बड़ा होता है | प्राय: माल बेचने के लिए भ्रामक विज्ञापन दिए जाते हैं | गलत तथा दूषित माल बेचने के लिए भी आकर्षक सितारों का उपयोग किया जाता है | पीछे शाहरुख़ खान से खा गया कि वे कोका कोला या पेप्सी आदि हानिकारक पेयों का विज्ञापन ण करें | परंतू उन्होंनें पैसे लेलोभ में इसकी जिम्मेदारी सरकार पर डाल दी | वास्तव में विज्ञापन से जुड़े हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि वे भ्रामक विज्ञापन न छापें | इससे समाज में गलत वस्तुओं और संदेशों का प्रचार होता है |

निष्कर्ष – निष्कर्ष यह है कि विज्ञापनों में समाज की प्रभावित करने की अदभुत शक्ति है | ये सरकार, व्यापर तथा समाज के लिए वरदान हैं | परंतु गलत हाथों में पड़कर इसका दुरुपयोग भी हो सकता है | इस दुरुपयोग से बचा जाना चाहिए |






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