Sunday, December 18, 2016


यहाँ चाह वहाँ राह
कहावत की भाव, चाह से तात्पर्य – ‘जहाँ चाह, वहाँ, राह’ एक कहावत है | इसका तात्पर्य है – जिसके मन में चाहत (इच्छा) होती है, उसके लिए वहाँ रास्ते अपने-आप बन जाया करते हैं | ‘चाह’ का अर्थ है – कुछ करने या पाने की तीव्र इच्छा |
सफलता के लिए कर्म के प्रति रूचि और समर्पण – सफलता पाने के लिए करम में रूचि होना अत्यंत आवश्यक है | जो लोग केवल इच्छा करते हैं किंतु उसके लिए कुछ करना नहीं चाहते, वे खयाली पुलाव पकाना चाहते हैं | उसका जीवन असफल होता है | सफल होने की लिए कर्म के प्रति पूरा समर्पण होना चाहिए | जयशंकर प्रसाद ने लिखा है –

ज्ञान दुर्कुछ्किर्य भिन्न है 
इच्छा क्यों पूरी हो मन की |
एक-दुसरे से न मिल सकें 
यही विडंबना है जीवन की ||

कठिनाईयों के बीच मार्ग-निर्माण – कर्म के प्रति समर्पित लोग रास्ते की कठिनाईयों से नहीं घबराया करते | कविकर खंडेलवाल के शब्दों में – 

जब नाव जल में छोड़ दी 
तूफान ही में मोड़ दी 
दे दी चुनौती सिंधु को 
फिर पार क्या, मँझधार क्या !

वास्तव में रस्ते की कठिनाइयाँ मनुष्य को चुनौती देती हैं | वे युवकों के पौरुष को ललकारती हैं | उसी में से कर्मवीरों को काम पूरा करने की प्रेरणा मिलती है | इसलिए कठिनाईयों को मार्ग-निर्माण का साधन माना चाहिए |

कोई उदाहरण, सूक्ति – देश को स्वतंत्रता कैसे मिली ? गाँधी जी ने सत्याग्रह का प्रयोग क्यों किया ? अंग्रेजी अनुसार सत्य और अहिंसा के पथ पर रहते हुए विरोध किया | अंग्रेजों की डिग्रियाँ फाड़ डालीं | भारत में आकर नमक कानून तोड़ा | भारत छोड़ों आंदोलन चलाया | परिणाम यह हुआ कि सारा भारत जाग उठा | एक दिन 

भारत स्वतंत्र हो गया | एक गईं की पंक्ति है –
तू चल पड़ा तो चल पड़ेगी साथ सारी भारती |
निष्कर्ष, प्रेरणा – इस कहावत से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि प्रबल इच्छा को मन में धारण करो | वह इच्छा शक्ति अपने-आप रास्ते तलाश लेगी | इच्छा शक्ति वह ज्वालामुखी है जो पहाड़ों की छाती फोड़कर भी प्रकट हो जाती है |


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